देश में बढ़ रही आत्महत्या की प्रवृत्ति बच्चों और युवाओं में यह समस्या अधिक

Edited By ,Updated: 10 Nov, 2019 11:55 PM

increasing suicide trend in the country

एक ओर देश में आर्थिक तंगी के कारण किसान बड़ी संख्या में आत्महत्या कर रहे हैं तो दूसरी ओर विभिन्न कारणों से लोगों में आत्महत्या करने की दुष्प्रवृत्ति बड़ी तेजी से बढऩे से बड़ी संख्या में परिवार उजड़ रहे...

एक ओर देश में आर्थिक तंगी के कारण किसान बड़ी संख्या में आत्महत्या कर रहे हैं तो दूसरी ओर विभिन्न कारणों से लोगों में आत्महत्या करने की दुष्प्रवृत्ति बड़ी तेजी से बढऩे से बड़ी संख्या में परिवार उजड़ रहे हैं। स्थिति की गंभीरता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि हमारे देश में मानसिक तनाव के परिणामस्वरूप प्रतिदिन लगभग 366 लोग आत्महत्या कर रहे हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की 2015 की एक रिपोर्ट के अनुसार बड़े महानगरों में आत्महत्या के प्रतिदिन लगभग 54 मामले दर्ज किए जा रहे हैं।

युवाओं की बात करें तो इस रिपोर्ट के अनुसार 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों में आत्महत्या की सर्वाधिक घटनाएं दिल्ली में देखने को मिलीं जबकि 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति घंटे एक छात्र आत्महत्या कर रहा है।

विशेषज्ञों के अनुसार हमारे शिक्षा संस्थानों में बच्चों को शरीर सौष्ठव बनाने और उन्हें सामाजिक चुनौतियों का सामना करने के लिए तो थोड़ा-बहुत तैयार किया जाता है परंतु दुर्भाग्यवश अधिकांश शिक्षा संस्थान और अध्यापक अभी तक छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को समझने में पूरी तरह सक्षम नहीं हैं। 

मनोरोग विशेषज्ञों के अनुसार बच्चों में मानसिक समस्याएं बढऩे के कारण विशेष रूप से उनके व्यवहार में बदलाव आ रहा है और आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है। हालत यह है कि 4 से 16 वर्ष के आयु वर्ग में 12 प्रतिशत भारतीय बच्चे मनोवैज्ञानिक समस्याओं से पीड़ित हैं। 20 प्रतिशत बच्चों में मनोरोग के लक्षण पाए गए हैं।

माता-पिता की ओर से परीक्षाओं में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए बच्चों पर डाला जा रहा दबाव भी उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। साथी छात्रों द्वारा छेड़छाड़ और कटाक्ष, पढ़ाई में कमजोर होना, प्रेरणा का अभाव और समाज में न घुलने-मिलने तथा माता-पिता और अध्यापकों को अपनी समस्या न बताने की प्रवृत्ति के कारण यह समस्या गंभीर होती जा रही है।

इस स्थिति को छात्रों, अध्यापकों और माता-पिता के सामूहिक प्रयासों और शिक्षण से ही सुधारा जा सकता है। माता-पिता को समझना चाहिए कि हर बच्चा ‘टॉप’ नहीं कर सकता इसलिए बच्चों की कुशलता और प्रतिभा को समझ कर ही उनको आगे बढऩे के लिए प्रेरित करना चाहिए ताकि इस प्रतियोगी दौर में वे स्वयं को अकेला न समझें।

यह इस बात का प्रमाण है कि लोगों में निराशा और हताशा से जूझने की समझ स्कूलों में देने की आवश्यकता है। इसके साथ ही संयम और सहनशीलता को बढ़ाने के लिए स्कूलों में काऊंसिंग की व्यवस्था की भी जरूरत है। — विजय कुमार

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