क्या यही है गांधी जी को सच्ची श्रद्धांजलि

Edited By ,Updated: 30 Jan, 2023 05:15 AM

is this the true tribute to gandhiji

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बलिदान के कारण, 16 अगस्त, 1946 से जारी उस हिंसक दौर का अंत हुआ, जो अखंड भारत के विभाजन की कहानी बयां करता है। 30 जनवरी, 1948 एक ऐसा दिन था जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की गोली मार कर हत्या कर दी गई।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बलिदान के कारण, 16 अगस्त, 1946 से जारी उस हिंसक दौर का अंत हुआ, जो अखंड भारत के विभाजन की कहानी बयां करता है। 30 जनवरी, 1948 एक ऐसा दिन था जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की गोली मार कर हत्या कर दी गई। उस समय उनकी आयु 78 वर्ष की थी। अपने जीवन के ज्यादातर वर्षों को गांधी जी ने देश के लिए समॢपत किया। हालांकि यह दिन बलिदान दिवस के तौर पर मनाया जाता है मगर आज 75 वर्षों बाद हम में से कितने लोग होंगे जो उनके लिए आज प्रार्थना करेंगे या भारत को एक ही झंडे तले प्रेरित कर आजादी की लड़ाई जताने के लिए उनका आभार प्रकट करेंगे। 

1757 में प्लासी के युद्ध के बाद ब्रिटिश शासन के शुरू होने से ही भारतीय, ब्रिटिश शासन का विरोध करते रहे हैं। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम ने लोगों को एक साथ आने के लिए प्रेरित किया मगर पूरा राष्ट्र आगे नहीं आया। 1919 में जब गांधी जी ने पूरे राष्ट्र को प्रेरित किया और असहयोग आंदोलन चलाया तो न केवल आम आदमी बल्कि अमीर उद्योगपति, जागीरदार, युवा, वृद्ध, पुरुष और महिलाएं एक साथ आगे आए। गांधी जी की एक आवाज पर अपनी पढ़ाई को छोड़ छात्र और महिलाएं सड़कों पर उतर आए और ब्रिटिश शासन की क्रूरताओं के खिलाफ अहिंसा के सिद्धांत पर चलते हुए आजादी की लड़ाई में कूद पड़े जो अपने आप में एक मिसाल है। 

गुरुदेव रबिंद्र नाथ टैगोर जोकि गांधी जी से 8 वर्ष बड़े थे कई बार उनके साथ कई बातों पर असहमत थे फिर भी सामाजिक न्याय और भारत में शिक्षा तथा ब्रिटिश शासन से आजादी के मसले पर दोनों में आम सहमति थी। विचारों की भिन्नता होने के बावजूद टैगोर ने महात्मा गांधी को ‘महात्मा’ और गांधी जी ने उन्हें ‘गुरुदेव’ की संज्ञा दी।

शायद यह एक बड़ी मिसाल होगी कि विचारों की असहमति के बावजूद आप दूसरे व्यक्ति की भावनाओं का सम्मान करते हैं। फिर भी ‘आधुनिक भारत’ के निर्माण में अपना योगदान देने वाले गांधी जी का सम्मान करने और उन्हें समझने में आज की युवा पीढ़ी क्यों असमर्थ है? क्या इसका कारण यह है कि आज के राजनीतिक प्रचार ने वास्तविक ऐतिहासिक तथ्यों को धुंधला बना डाला है? क्या आज का युवक राजनीति में ईमानदार रहना या रोजमर्रा के जीवन में अङ्क्षहसा का पालन करना एक बोझ समझता है? 

असहिष्णुता की एक बड़ी मिसाल शायद महात्मा गांधी की हत्या है। नाथू राम गोडसे ने खुद ही अदालत में माना था कि वह गांधी जी के अङ्क्षहसा और सजातीय समाज वाले सिद्धांत से विरोधाभास रखते थे। यहां तक कि पाकिस्तान को पैसे का हिस्सा देने और मुसलमानों के प्रति नर्म रवैया रखने के लिए नाथू राम गांधी जी के विचारों से सहमत नहीं था। यही कारण था कि उसने गांधी जी की हत्या की। 

क्या अब यही सिद्धांत है कि यदि आप किसी के विचारों या उसके तत्व ज्ञान से सहमति न रखते हों तो आप उसकी हत्या कर डालें? क्या लोकतंत्र की दिशा देने वाली रोशनी हमें यही रास्ता दिखाती है? क्या एक ऐसे व्यक्ति के लिए हमारी यही सच्ची श्रद्धांजलि है जिसने न केवल भारतीयों को बल्कि अश्वेतों को अमरीका में, अफ्रीकियों को दक्षिण अफ्रीका में, पूर्वी जर्मनी में जर्मनों को, पोलैंड में पोलिश लोगों को अङ्क्षहसा का प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित किया? आज भारत में लोग न केवल गांधी जी के पुतले ही जला देते हैं बल्कि उनके लिए अभद्र शब्दों का इस्तेमाल भी कर देते हैं। वे इसे अपनी व्यक्तिगत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की संज्ञा दे सकते हैं परंतु क्या अब हमारे गणतंत्र का सिद्धांत यह रहेगा कि कोई भी व्यक्ति जो अलग विचार रखता हो, दूसरे धर्म या फिर अन्य जाति का हो, उसकी हत्या कर दी जाए?

Let's Play Games

Game 1
Game 2
Game 3
Game 4
Game 5
Game 6
Game 7
Game 8

Trending Topics

IPL
Royal Challengers Bengaluru

190/9

20.0

Punjab Kings

184/7

20.0

Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

RR 9.50
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!