Edited By ,Updated: 12 Jun, 2023 04:20 AM
2 जून को हुई बालासोर रेल दुर्घटना जिसमें 288 यात्रियों की जान चली गई, की जांच सी.बी.आई. को सौंप दी गई है।
2 जून को हुई बालासोर रेल दुर्घटना जिसमें 288 यात्रियों की जान चली गई, की जांच सी.बी.आई. को सौंप दी गई है। इस दुर्घटना के पीछे मानवीय भूल या तोडफ़ोड़ के मुद्दे को लेकर काफी कुछ लिखा गया है लेकिन घटना के वास्तविक कारणों का पता तो जांच पूरी होने के बाद ही चलेगा परंतु अधिक संभावना इस दुर्घटना के पीछे मानवीय भूल ही व्यक्त की जा रही है। इस संबंध में हम बुलेट ट्रेनों के लिए प्रसिद्ध जापान से काफी कुछ सीख सकते हैं। वहां रेल दुर्घटनाओं से बचाव के लिए कड़े मापदंड तय किए गए हैं और 600 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गाडिय़ां दौडऩे के बावजूद दुर्घटना नहीं होती।
वहां सिग्नलिंग और पटरियां बदलने के लिए इलैक्ट्रॉनिक इंटरलाकिंग प्रणाली से दुर्घटनाओं से बचाव होता है और एक ही पटरी पर 2 गाडिय़ों के आ जाने पर यह प्रणाली सभी को अलर्ट कर देती है। उन्नत सिग्नल प्रणाली द्वारा रेलगाडिय़ों के आवागमन, गति आदि पर नजर रखी जाती है तथा 2 रेलगाडिय़ों के बीच सुरक्षित दूरी बनी रहे इसकी निगरानी की जाती है। टक्कर से बचाव के लिए आधुनिक सुपर कम्प्यूटरों की सहायता से रेलगाडिय़ों के चलने के समय, रूट आदि का निर्धारण किया जाता है।
जापान में रेलगाड़ी रोकने की आटोमैटिक तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इसके द्वारा रेलगाडिय़ों की गति नियंत्रित की जाती है और एमरजैंसी में अपने आप ब्रेक लग जाते हैं। यह प्रणाली खतरे की स्थिति में सिग्नल लांघ जाने पर गाड़ी को अपने आप रोक देती है। जापान में रेलगाडिय़ों में सुरक्षा को सर्वोपरि महत्व दिया जाता है। वहां ट्रेन ड्राइवरों से लेकर समूचे रेलवे स्टाफ को विधिवत सुरक्षा संबंधी प्रशिक्षण दिया जाता है कि संकट का सामना किस प्रकार किया जाए। यही नहीं, वहां तो यात्रियों को भी रेल यात्रा के दौरान किसी अप्रिय स्थिति का सामना करने की शिक्षा दी जाती है।
किसी भी प्रकार की तकनीकी खराबी से बचने के लिए नियमित रूप से निगरानी और जांच-पड़ताल की जाती है। जापान में सम्पूर्ण रेल ढांचे में बेहतरीन सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है। इसी प्रकार के सुरक्षा उपायों का परिणाम है कि वहां पिछले 10 वर्षों में रेलों में लापरवाही का एक भी मामला सामने नहीं आया है। द सैंट्रल जापान रेलवे कम्पनी (जे.आर. सैंट्रल) के अनुसार 18 मई, 2015 को जापान में एक बुलेट ट्रेन के एक 36 वर्षीय ड्राइवर को पेट दर्द के कारण शौचालय जाना पड़ा था।
उसने अपने कंडक्टर को, जिसके पास ड्राइविंग लाइसैंस नहीं था, कॉकपिट में बुलाया और उसे ट्रेन नियंत्रित करने के लिए कहकर स्वयं लगभग 3 मिनट के लिए शौचालय गया था। उस समय ट्रेन 150 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ रही थी तथा उसमें 160 यात्री सवार थे। ड्राइवर के अपनी सीट छोड़ कर जाने की घटना से यात्रा पर न तो कोई असर पड़ा और न ही कोई दुर्घटना हुई। जब रेलवे कम्पनी ने अधिकारियों को इस बारे जानकारी दी तो उन्हें इसके लिए क्षमा मांगनी पड़ी और ड्राइवर पर कार्रवाई की गई।
जापान में अंतिम बार रेल दुर्घटना 2005 में हुई थी जिसमें आमा गस्की शहर में एक रेलगाड़ी के पटरी से उतर जाने के कारण 107 लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद से वहां के रेल प्रशासन ने रेल दुर्घटनाओं से बचाव के लिए बड़े कठोर नियम बनाए हुए हैं। नियमों के अनुसार यदि ड्राइवर असहज अनुभव करता है तो तब उसे अपने ट्रांसपोर्ट कमान सैंटर को सूचित करना अनिवार्य होता है। वह अपने कंडक्टर को भी काम संभालने को कह सकता है यदि उसके पास ड्राइविंग लाइसैंस हो।
भारत में भी जापान जैसे रेलगाडिय़ों में सुरक्षा उपाय अपनाने की जरूरत है। बेशक हम ट्रेनों का आधुनिकीकरण कर रहे हैं और वन्दे भारत और तेजस जैसी हाईस्पीड गाडिय़ां चला रहे हैं मगर हमें मैनुअल विधि पर निर्भर होने की बजाय इलैक्ट्रॉनिक प्रणालियों का उपयोग करना चाहिए। भारत में तो आमतौर पर देखने में आता है कि सिग्नल इत्यादि के लिए मैनुअल तरीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
मशीनों के रख-रखाव में हमें आधुनिक तकनीक का ही प्रयोग करना चाहिए। हम भारतीयों की यह आदत होती है कि हर काम के लिए हम खुद ही डाक्टर, इंजीनियर बन जाते हैं। हमें इस आदत को अब नकारना होगा। यह यकीनी बनाना पड़ेगा कि पिछले लम्बे समय से होती आ रही इस प्रकार की दुर्घटनाएं भविष्य में न हों।