जम्मू-कश्मीर में युवा हथियार छोड़़ दें : महबूबा काश यह बात उन्होंने पहले कही होती

Edited By ,Updated: 28 Jun, 2022 03:24 AM

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स्वतंत्रता से अब तक जम्मू-कश्मीर में 2 राजनीतिक परिवारों की बड़ी भूमिका रही है। शेख अब्दुल्ला, उनके बेटे फारूक अब्दुल्ला और उसके बाद उमर अब्दुल्ला तीनों यहां के मुख्यमंत्री रहे। इनके अलावा

स्वतंत्रता से अब तक जम्मू-कश्मीर में 2 राजनीतिक परिवारों की बड़ी भूमिका रही है। शेख अब्दुल्ला, उनके बेटे फारूक अब्दुल्ला और उसके बाद उमर अब्दुल्ला तीनों यहां के मुख्यमंत्री रहे। इनके अलावा ‘पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी’ (पी.डी.पी.) के संस्थापक मुफ्ती मोहम्मद सईद तथा उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती ने भी जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के तौर पर पद संभाला। शेख अब्दुल्ला के परिवार ने प्रदेश पर लगभग 25 वर्ष तथा मुफ्ती मोहम्मद सईद और उनकी बेटी महबूबा ने लगभग 6 वर्ष तक शासन किया। इनके अलावा प्रदेश में साढ़े 8 वर्ष राज्यपाल का शासन तथा शेष अवधि में अन्य मुख्यमंत्रियों गुलाम मोहम्मद सादिक, सईद मीर कासिम, गुलाम मोहम्मद शाह, गुलाम नबी आजाद का शासन रहा। 

महबूबा मुफ्ती ने पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद की मृत्यु के बाद 4 अप्रैल, 2016 को भाजपा के सहयोग से प्रदेश में गठबंधन सरकार बनाई, परंतु कानून- व्यवस्था नियंत्रित करने में विफल रहने के कारण भाजपा द्वारा समर्थन वापस ले लेने पर 19 जून, 2018 को उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। जम्मू-कश्मीर में 20 जून, 2018 से राज्यपाल शासन रहा और 19 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटा दिया गया तथा 20 दिसंबर, 2019 को जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगाया गया। 

उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर के हालात तब से खराब होने शुरू हुए, जब महबूबा मुफ्ती की छोटी बहन रूबिया सईद का 7 दिसम्बर, 1989 को जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जे.के.एल.एफ.) ने उस समय अपहरण कर लिया था जब वी.पी. सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चे की केंद्रीय सरकार में इनके पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद गृह मंत्री थे। रूबिया को आतंकवादियों से छुड़वाने के लिए केंद्र सरकार ने 5 खूंखार आतंकवादियों को रिहा करने की मांग स्वीकार कर ली थी। राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि यदि उस समय केंद्र सरकार आतंकवादियों के आगे घुटने न टेकती तो कश्मीर में ऐसे हालात कभी न होते। 

1989 में यहां से कश्मीरी पंडितों के विस्थापन का सिलसिला भी शुरू हो गया। इनकी 2019 में घर वापसी शुरू होने का हल्का सा संकेत मिला था, जब अक्तूबर,1990 में यहां से पलायन करके जाने वाले श्री रोशन लाल मावा ने वापस आकर श्रीनगर में अपनी दुकान दोबारा खोली पर अनंतनाग जिले के ‘लोकभवन’ गांव के श्री ओंकार नाथ के बेटे अजय पंडिता की 8 जून, 2020 को आतंकियों द्वारा हत्या से इनकी वापसी के प्रयासों को भारी धक्का लगा। अब 25 जून को श्रीनगर में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए महबूबा ने स्थानीय युवाओं से आतंकवाद का रास्ता छोडऩे का अनुरोध किया। महबूबा ने कहा, ‘‘प्रतिदिन 3 या 4 युवक मारे जा रहे हैं। यानी हमारी स्थानीय आतंकवादियों की भर्ती बढ़ गई है। मैं अपील करती हूं कि यह सही नहीं है और आपको इसे छोड़ देना चाहिए।’’ 

महबूबा मुफ्ती ने यह भी कहा कि उन लोगों को भी मारा गया है जिन्होंने हथियार नहीं उठाए थे। इसके साथ ही उन्होंने कश्मीरी पंडितों की लक्षित हत्याओं बारे कहा कि ‘‘मौलवियों सहित अन्य लोगों को इस बात पर जोर देना चाहिए कि कश्मीरी पंडित समाज का हिस्सा हैं।’’ महबूबा द्वारा पाक प्रायोजित विदेशी और स्थानीय आतंकवादियों द्वारा जारी हिंसा के जवाब में सुरक्षा बलों की कार्रवाई में मारे जाने वाले आतंकवादी युवाओं को हिंसा का मार्ग त्यागने के लिए कहना सही है। 

यही बात यदि महबूबा मुफ्ती ने पहले कही होती तो शायद बेहतर होता। अतीत की घटनाएं साक्षी हैं कि कश्मीर में सक्रिय पाक समॢथत एवं स्थानीय आतंकवादी अल्पसंख्यकों के साथ-साथ प्रवासी लोगों को पलायन करने के लिए विवश करने के अलावा सरकारी कार्यालयों, पुलिस एवं सुरक्षा बलों आदि में कार्यरत अपने ही भाई-बंधुओं की हत्या करके और उनके परिवारों की मुश्किलें बढ़ा कर आखिर किसका भला कर रहे हैं? उल्लेखनीय है कि पंजाब केसरी द्वारा संचालित ‘शहीद परिवार फंड’ में राहत लेने के लिए आवेदन करने वाले आतंकवाद पीड़ित अधिकांश जम्मू-कश्मीर के मुस्लिम परिवार ही होते हैं।—विजय कुमार 

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