विश्व में संसदों की प्रतिष्ठा को आघात आस्ट्रेलिया की संसद में ‘अश्लील हरकतें’

Edited By ,Updated: 09 Apr, 2021 02:29 AM

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लोकतंत्र में संसद को जनता के हितों की पहरेदार माना जाता है परंतु आज विश्व के कुछ देशों में संसदों की गरिमा पर ही आंच आने लगी है जिसके परिणामस्वरूप लोकतंत्र को आघात पहुंच रहा है। उदाहरणस्वरूप उत्तरी कोरिया में एक दशक से अधिक

लोकतंत्र में संसद को जनता के हितों की पहरेदार माना जाता है परंतु आज विश्व के कुछ देशों में संसदों की गरिमा पर ही आंच आने लगी है जिसके परिणामस्वरूप लोकतंत्र को आघात पहुंच रहा है। उदाहरणस्वरूप उत्तरी कोरिया में एक दशक से अधिक समय से सत्तारूढ़ तानाशाह ‘किम जोंग’ ने संसद के तमाम अधिकार छीन कर देश को हर लिहाज से कंगाल बना दिया है जहां आम लोगों का जीना दूभर होता जा रहा है। इसके विपरीत अतीत में इसी का अभिन्न अंग रहा दक्षिण कोरिया अपनी लोकतंत्रवादी नीतियों के चलते आज विश्व के समृद्ध देशों में गिना जाता है। 

संसदीय परम्पराओं के दमन का एक अन्य उदाहरण रूस पर सन् 2000 से काबिज राष्ट्रपति ‘व्लादिमीर पुतिन’ हैं जिन्होंने सत्ता की हवस में संसद में अपने विरोधियों की आवाज दबा कर सन 2036 तक अपने राष्ट्रपति बने रहने का विधेयक पारित करवा लिया है।

अमरीका की संसद ‘कैपिटल हिल’ को सबसे बड़ी चोट पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 6 जनवरी को पहुंचाई जब उनके समर्थकों द्वारा ‘कैपिटल हिल’ में की जा रही भारी तोड़-फोड़ रोकने के लिए पुलिस द्वारा गोली चलाने से 4 लोगों की मौत हो गई तथा अनेक लोग घायल हो गए। इससे पूर्व अमरीकी संसदीय परम्परा को अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने अपने कार्यालय में एक कर्मचारी मोनिका लेविंस्की के साथ ओरल सैक्स करके ठेस पहुंचाई थी जिसके लिए उन्हें 1998 में महाभियोग का सामना करना पड़ा और देशवासियों से माफी मांगनी पड़ी थी। 

इसी प्रकार म्यांमार में सेना द्वारा संसद भंग करके वहां की लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित नेता  ‘आंग-सान-सू-की’ समेत अन्य नेताओं को जेल में डालने के विरुद्ध इन दिनों आंदोलन जोरों पर है जिसमें अब तक 500 के लगभग लोगों की मौत हो चुकी है और सेना ने निर्वाचित सांसदों को अपने घर जाने के लिए कह दिया है। भारत के बारे में तो पाठकों ने 8 अप्रैल के अंक में प्रकाशित श्री शांता कुमार के लेख में पढ़ा ही होगा कि,‘‘संसद का अधिकांश समय शोर-शराबे, बॉयकाट और टोका-टोकी में बीत जाता था।’’ ‘‘जब कभी किसी बड़े नेता का स्वर्गवास हो जाता तो सदन में दो मिनट का मौन रखा जाता और सदन में पूर्णत: शांति रहती। तब मैं अक्सर कहा करता था कि लोक सभा या तो ‘शोर सभा’ बन गई है या ‘शोक सभा’।’’ 

जहां आज भी भारत की संसद में ऐसे ही दृश्य देखने को मिलते हैं, वहीं आस्ट्रेलिया की संसद तो सबसे आगे निकल गई है, जहां अनेक नेताओं पर आधा दर्जन से अधिक महिलाएं यौन शोषण के आरोप लगा चुकी हैं। संसद के भीतर महिला कर्मचारियों और महिला सांसदों तक के साथ बलात्कार और यौन शोषण के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। एक महिला अधिकारी ने आरोप लगाया था कि संसद में सांसदों के लिए न सिर्फ देह व्यापार करने वालों को लाया जाता है बल्कि संसद के ‘प्रेयर रूम’ (प्रार्थना कक्ष) को यौन क्रियाओं के लिए इस्तेमाल किया जाता है। गत मास लीक हुए एक वीडियो में वहां सांसद सैक्स करते दिखाई दिए थे। 

23 मार्च को संसद के स्टाफ के कुछ सदस्यों द्वारा संसद के भीतर अश्लील हरकतें करने का भी एक वीडियो लीक हुआ तथा देर रात कुछ न्यूज चैनलों ने सत्तारूढ़ पार्टी के पुरुष स्टाफ मैंबरों को संसद के भीतर महिला मंत्रियों की मेजों के ऊपर हस्त मैथुन करते हुए फोटो प्रदर्शित किए। आस्ट्रेलिया में सत्तारूढ़ लिबरल पार्टी की सांसद ‘होली ह्यूज’ भी सांसदों पर यौन शोषण के गंभीर आरोप लगा चुकी है। अनेक पीड़िताओं का कहना है कि देश के किसी न किसी नेता या अधिकारी ने या तो उन्हें गलत तरीके से छुआ या उनकी बेइज्जती की। इसके विरुद्ध आवाज उठाने पर उनका चरित्र हनन किया गया और वे खामोश हो गईं क्योंकि उन पर नौकरी या न्याय में से किसी एक को चुनने के लिए दबाव बनाया गया। 

इसी कारण अनेक वर्तमान और पूर्व सांसदों ने आस्ट्रेलिया की संसद को ‘टेस्टोस्टेरॉन’ (पुरुष यौन हार्मोन) का तहखाना करार दिया है जहां प्रत्येक मंत्री के कमरों में फ्रिज शराब से भरे रहते हैं। इस बारे आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ‘स्कॉट मौरिसन’ की पत्नी ने तो यहां तक कहा है कि, ‘‘मेरे पति व देश के प्रधानमंत्री को एक पिता की तरह इन मामलों पर सोचना चाहिए।’’ उक्त घटनाक्रमों से स्पष्ट है कि संसदीय परम्परा और गरिमा को ठेस पहुंचाने का यह सिलसिला किसी एक देश या एक महाद्वीप तक ही सीमित नहीं है जिसे रोकना लोकतंत्र के हित में अत्यंत आवश्यक है।—विजय कुमार

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