हिंसाग्रस्त जम्मू-कश्मीर के लोग अब होने लगे आतंकवादियों के विरुद्ध एकजुट

Edited By Updated: 10 Jul, 2022 04:08 AM

people of violence hit jammu and kashmir are now uniting against terrorists

हम अक्सर लिखते रहते हैं कि पाकिस्तान के पाले हुए आतंकवादी जम्मू-कश्मीर में अल्पसंख्यकों के साथ-साथ प्रवासी लोगों को पलायन करने के लिए विवश करने के अलावा अपने ही भाई-बंधुओं की हत्या

हम अक्सर लिखते रहते हैं कि पाकिस्तान के पाले हुए आतंकवादी जम्मू-कश्मीर में अल्पसंख्यकों के साथ-साथ प्रवासी लोगों को पलायन करने के लिए विवश करने के अलावा अपने ही भाई-बंधुओं की हत्या करके व उनके परिवारों की मुश्किलें बढ़ा कर आखिर किसका भला कर रहे हैं! 

25 जून को जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी युवाओं से आतंकवाद का रास्ता छोडऩे का अनुरोध किया और कहा, ‘‘रोज 3-4 युवक मारे जा रहे हैं। यानी हमारी स्थानीय आतंकवादियों की भर्ती बढ़ गई है। मैं अपील करती हूं कि यह सही नहीं है और आपको इसे छोड़ देना चाहिए।’’ 

इसी बारे हमने अपने 28 जून के संपादकीय ‘युवा हथियार छोड़ दें : महबूबा’  में लिखा था कि, ‘‘पंजाब केसरी द्वारा संचालित ‘शहीद परिवार फंड’ में आर्थिक मदद के लिए आवेदन करने वाले आतंकवाद पीड़ितों में अब अधिकांश जम्मू-कश्मीर के मुस्लिम परिवार ही आ रहे हैं।’’ इस बीच जम्मू-कश्मीर के लोगों के आतंकवादियों के प्रति नजरिए में चंद सकारात्मक बदलावों के उदाहरण सामने आए हैं : 

* 3 जुलाई को रियासी जिले की माहौर तहसील से लगभग 35 किलो मीटर दूर ‘तुकसिन ढोक’ नामक गांव के निवासियों ने जंगल में छिपने को पहुंचे ‘लश्कर-ए-तैयबा के 2 वांछित आतंकवादियों को पकडऩे के बाद रस्सियों से बांध कर उन्हें पुलिस के हवाले कर दिया। 

* 6 जुलाई को कुलगाम के ‘हादीगाम’ गांव में आतंकवादियों की घेराबंदी के दौरान घर से भाग कर आतंकवादी बने तथा ‘लश्कर’ के हिट स्क्वायड ‘द रजिस्टैंस फ्रंट’ में शामिल 2 स्थानीय युवाओं नदीम और कफील ने अपनी मां और पुलिस की अपील पर आत्मसमर्पण कर दिया जिसके बाद उनके कब्जे से आपत्तिजनक सामग्री, हथियार व गोला-बारूद बरामद किया गया। 
घाटी में इस वर्ष सुरक्षा बलों के समक्ष आतंकवादियों के आत्मसमर्पण का यह पहला अवसर है। नदीम की मां ने उससे आत्मसमर्पण करने की अपील करते हुए कहा, ‘‘नदीम सरैंडर कर दो। जिस जेहाद के लिए तुम निकले हो, वह तुम पर हराम है। हथियार छोड़ दो और बाहर निकल आओ। तुम्हारी मां तुमसे कह रही है।’’महबूबा मुफ्ती ने उक्त आतंकवादियों को आत्मसमर्पण के लिए राजी करने पर सुरक्षा बलों के प्रयासों की सराहना करते हुए ट्वीट किया कि : 

‘‘सुरक्षा बलों को आतंकवादियों के परिजनों से सहयोग मिलने और आत्मसमर्पण के लिए राजी करने पर 2 जिंदगियां बचाने के लिए धन्यवाद। इस तरह के प्रयास जारी रहने चाहिएं ताकि आतंकवाद में शामिल होने वाले युवाओं को अपना जीवन जीने का दूसरा मौका दिया जा सके।’’

* 8 जुलाई को कश्मीर घाटी में बदलाव का तीसरा उदाहरण ‘हिजबुल मुजाहिदीन’ के पोस्टर ब्वाय और खूंखार आतंकवादी बुरहान वानी की छठी बरसी पर देखने को मिला, जिसे सुरक्षा बलों ने दक्षिण कश्मीर में 8 जुलाई, 2016 को एनकाऊंटर में मार गिराया था तथा इसके बाद घाटी एवं जम्मू क्षेत्र के कुछ हिस्सों में 5 महीनों तक जारी रही ङ्क्षहसक घटनाओं में 100 से अधिक लोग मारे गए तथा हजारों लोग घायल हुए थे।

पिछले 5 वर्षों के विपरीत इस बार 8 जुलाई को आतंकवादियों की ओर से न तो कोई समारोह आयोजित किया गया और न ही किसी हड़ताल का आह्वान किया गया। कश्मीर घाटी की सभी मस्जिदों में जुमे की नमाज के बाद लोग सीधे 10 जुलाई को पडऩे वाली ईद की खरीदारी के लिए बाजारों की ओर निकल गए। यहां तक कि बुरहान के गृहनगर पुलवामा में भी हड़ताल नहीं हुई। 

* इस बार 8 जुलाई को इंटरनैट सेवाओं को भी नहीं रोका गया जबकि पिछले पांच वर्षों से प्रशासन 8 जुलाई को इंटरनैट सेवाएं बंद करता रहा है। जम्मू-कश्मीर के लोगों द्वारा 2 आतंकवादियों को पकड़ कर पुलिस के हवाले करना, मां की अपील पर 2 आतंकवादियों का पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण करना और खूंखार आतंकवादी बुरहान वानी की बरसी पर इस बार घाटी में विरोध प्रदर्शन का न होना यहां लोगों में आ रहे सकारात्मक बदलाव के आरंभ का संकेत है। 

यदि इसी प्रकार आम लोग, भटके हुए युवाओं के माता-पिता और सुरक्षा अधिकारी उन्हें सही रास्ते पर लौट आने के लिए प्रेरित तथा आतंकवादियों द्वारा अपने ही भाई-बंधुओं का खून बहाने के दुष्परिणामों के बारे में जागरूक  करें तो शायद घाटी में सुख-समृद्धि और शांति का 30 वर्ष पहले वाला दौर वापस आने में अधिक समय न लगे।—विजय कुमार  

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