'पंजाब केसरी का 57वें वर्ष में प्रवेश' 'महान नेता लाला लाजपत राय को समर्पित'

Edited By Updated: 13 Jun, 2021 05:01 AM

punjab kesari enters 57th year   dedicated to the great leader lala lajpat rai

आज आपका प्रिय ‘पंजाब केसरी’ 57वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। हमें याद है कि जब पूज्य पिता लाला जगत नारायण जी ने ‘हिंद समाचार’ (उर्दू) के बाद हिन्दी दैनिक ‘पंजाब केसरी’ आरंभ करने का

आज आपका प्रिय ‘पंजाब केसरी’ 57वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। हमें याद है कि जब पूज्य पिता लाला जगत नारायण जी ने ‘हिंद समाचार’ (उर्दू) के बाद हिन्दी दैनिक ‘पंजाब केसरी’ आरंभ करने का फैसला करके हमसे बात की तो श्री रमेश जी और मैं सोच में पड़ गए। धन के अलावा हमारी चिंता थी कि हमें स्टाफ कहां से मिलेगा और छपाई कैसे होगी। अत: जब हमने इस संबंध में कुछ समय मांगा तो वह बोले, ‘‘इसे रोकना नहीं। प्रभु की कृपा से सब ठीक हो जाएगा।’’ 

पिता जी के कथन अनुरूप ही स्टाफ भी आ गया और 13 जून, 1965 को 3000 प्रतियों के साथ ‘पंजाब केसरी’ का प्रकाशन शुरू हुआ जो आज सफलता की बुलंदियां छू रहा है। यह पूज्य पिता जी के आशीर्वाद और दृढ़ संकल्प से ही हुआ है। इस अवसर पर हम पूज्य पिता जी द्वारा लिखित 13 जून, 1965 के प्रवेशांक में प्रकाशित संपादकीय निम्र में प्रस्तुत कर रहे हैं : 

‘महान नेता की स्मृति में’
‘‘दैनिक पंजाब केसरी’ का प्रवेशांक पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने में मुझे जितना हर्ष हो रहा है उसका अनुमान पाठक नहीं लगा सकते। आज मेरी आंखों के सामने लाहौर सैंट्रल जेल का स पूर्ण चित्र घूम गया है जब मैंने आदरणीय लाला लाजपत राय जी के चरणों में बैठ कर प्रतिज्ञा की थी कि मैं हिन्दी में उनके नाम पर दैनिक पत्र निकालने के बाद ही अपना जीवन सफल मानूंगा।’’ ‘‘1920 में जब महात्मा गांधी जी ने देश को स्वतंत्र करवाने के लिए कालेज और स्कूल छोड़ कर स्वाधीनता संग्राम में जुट जाने के लिए भारतीय छात्रों को ललकारा था तो उस समय मैंने लॉ-कालेज का त्याग कर दिया। 

‘‘मेरे पिता उन दिनों लायलपुर में एक माननीय वकील के मुंशी थे। उनकी अच्छी आय तथा अच्छी जान-पहचान थी। मैं उनकी एकमात्र संतान था। उनका यह दृढ़ विचार था कि मैं वकील बन कर लायलपुर में अच्छी पोजीशन प्राप्त करूंगा और उनका नाम भी रोशन करूंगा तथा आर्थिक स्थिति भी अच्छी हो जाएगी।’’ ‘‘परन्तु जब उन्होंने पढ़ाई अधूरी छोडऩे का मेरा निर्णय सुना तो हमारा परिवार बेचैन हुआ व मेरे माता-पिता तो भौंचक्के ही रह गए। उन्होंने व परिवार के अन्य बुजुर्गों ने पूरा प्रयत्न किया पर जब मैंने अपना निश्चय अटल रखा तो सब मौन हो गए।’’ 

‘‘मैंने लाहौर कांग्रेस में काम करना शुरू कर दिया। स्व. लाला ठाकुर दास कपूर के संसर्ग में कार्य करने का मौका मिला। उन्होंने मुझे लाहौर जिला कांग्रेस का संयुक्त महामंत्री बना दिया। मैंने कुछ समय काम किया और कांग्रेस के स्वयंसेवकों को कंबल और रोटी आदि हवालात व जेल में देने के अपराध में मुझे गिर तार कर लिया गया।’’ ‘‘मेरे जीवन में मोड़ उस समय शुरू हुआ जब मुझे लाहौर सैंट्रल जेल भेजा गया। यह मेरी प्रथम जेल यात्रा थी। मैं जब जेल की ड्योढ़ी में पहुंचा तो लाला फिरोज चंद, अचिंत राम और अन्य सज्जन लाला लाजपत राय जी के साथ भेंट कर रहे थे।  इन भाइयों ने आदरणीय लाला जी से मेरा परिचय करवाया कि मैं उनका साथी हूं।’’ 

‘‘मेरे मामा श्री लाल चंद जी, जो लाला लाजपत राय जी के परिचित थे, वह भी मुझे जेल में छोडऩे आए हुए थे। उन्होंने लाला लाजपत राय जी को बताया कि जगत नारायण मेरा भांजा है। यह प्रथम बार जेल आ रहा है और अपने माता-पिता की एकमात्र संतान है। इसके माता-पिता बहुत घबराए हुए हैं। आप इसे घबराने नहीं देना।’’ 

‘‘मैंने लाला लाजपत राय जी के प्रथम बार दर्शन किए थे। मुझे जेल का कोई अनुभव नहीं था। एक घंटे के बाद जब मुझे उस वार्ड में पहुंचाया गया जहां लाला जी बैठे थे तो मेरा बड़े उत्साह व प्यार से स्वागत किया गया। आदरणीय लाला लाजपत राय जी के साथ पंजाब के सब नेता मुझे दरवाजे पर लेने आए। जब मेरे नाम के नारे लगे तो मुझे लगा जैसे उन्होंने मेरी उदासी दूर करने के लिए यह सब किया है।’’ ‘‘लाला लाजपत राय जी ने मेरे लिए अपने पास ही कोठरी खाली करवाई थी जहां केवल नेता रहते थे। जब नेताओं ने एक दुबले-पतले 21 वर्षीय युवक को देखा तो उन्हें परेशानी हुई कि लाला जी ने मेरा इतना स्वागत क्यों किया।’’ 

‘‘आदरणीय लाला लाजपत राय जी ने मुझे अपने पुत्र के समान जेल में रखा और उनके संपर्क में जेल प्रवास के दौरान मेरे मन में विचार आया कि क्या मुझे इनकी स्मृति में कोई विशेष कार्य करने का अवसर मिलेगा।’’ ‘‘उस समय जेल में लाला लाजपत राय जी के साथ पंजाब के बड़े-बड़े नेता थे और उनके साथ दैनिक ‘वंदे मातरम’ के 6-7 संपादक थे जिन्हें बारी-बारी अंग्रेज सरकार बंदी बनाकर लाई थी। उनमें बाबू राम प्रसाद, रायजादा शांति नारायण और श्री कर्म चंद शुक्ला के नाम उल्लेखनीय हैं। इनके साथ ही मौलाना जफर अली, उनके सुपुत्र और अन्य संपादक ‘जमींदार’ अखबार के थे। सैयद हबीब भी जेल में हमारे साथ थे। उस जेल में सारा वातावरण पत्रकारों का था जहां मुझे अढ़ाई वर्ष रहने का मौका मिला। तभी मैंने फैसला किया था कि रिहा होकर मैं समाचारपत्र में ही कार्य करूंगा।’’ 

‘‘मेरे रिहा होने पर लाला लाजपत राय जी मुझे ‘सर्वेंट्स ऑफ पीपुल्स सोसायटी’ का सदस्य बनाना चाहते थे पर मैं स्वतंत्र काम करना चाहता था। श्रद्धेय भाई परमानंद जी उन दिनों इसके प्रधान थे। उन्होंने मुझे अपने हिन्दी साप्ताहिक ‘आकाशवाणी’ का संपादक बना कर विरजानंद प्रैस से मासिक वेतन देने का भी प्रबंध कर दिया।’’ ‘‘कई कारणों से मुझे ‘आकाशवाणी’ को छोडऩा पड़ा परंतु कुछ समय के बाद भाई जी ने ‘आकाशवाणी’ और ‘विरजानंद प्रैस’ मुझे बेच दिए। मैंने ‘आकाशवाणी’ को चलाने का प्रयास किया परंतु इसमें सफल न हुआ। कुछ समय के लिए इसे दैनिक भी किया परंतु काफी घाटा पडऩे पर बंद कर दिया।’’ 

‘‘इसके बाद स्वर्गीय बाबू पुरुषोत्तम दास टंडन जी ने पंजाब केसरी लाला लाजपत राय जी की पुण्य स्मृति में ‘पंजाब केसरी’ नामक हिन्दी साप्ताहिक निकाला। मैं भी उससे संबंधित था। स्व. पंडित भीम सेन जी उसके पहले संपादक थे।’’ ‘‘उनके बाद पं. अमरनाथ विद्यालंकार इसके संपादक बने। ब्रिटिश सरकार ने हम दोनों पर मुकद्दमा बना दिया। हम जेल चले गए और पत्र बंद हो गया। रिहा होने पर पुन: ‘पंजाब केसरी’ चलाने का प्रयत्न किया पर सफल नहीं हो सके।’’ 

‘‘1942 में जब अंग्रेजों ने गांधी जी के सत्याग्रह आंदोलन में सब नेताओं को गिर तार कर लिया तो मुझे भी स्यालकोट जेल में पंजाब के सब नेताओं और वर्करों के साथ रहने का मौका मिला। तभी मैंने हिन्दी और उर्दू दैनिक निकालने की बात सब नेताओं के साथ की परंतु उत्साह न मिल सका। मेरे अपने मन में यह संकल्प अवश्य था कि किसी समय दैनिक पत्र निकालना ही है।’’

‘‘यह संकल्प देश के विभाजन के बाद पूरा हुआ जब जालंधर में ‘दैनिक जय ङ्क्षहद’ शुरू किया गया। श्री वीरेंद्र जी लाहौर में इसे निकालते थे। मैंने उनकी अनुपस्थिति में इसे निकाला और उन्होंने मेरे साथ मिल कर इसे चालू रखने का निश्चय किया। हम इकट्ठे चल न सके तो फिर मैंने ‘हिंद समाचार’ (उर्दू) निकाला। काफी कठिनाइयों के बाद आज यह अपने पैरों पर खड़ा हो गया है। प्रभु ने ही इस पत्र को पंजाब के दैनिक पत्रों में चोटी पर पहुंचाया है।’’ 

‘‘आज महान नेता लाला लाजपत राय जी की पुण्य स्मृति में हिन्दी दैनिक ‘पंजाब केसरी’ पाठकों की सेवा में प्रस्तुत किया जा रहा है। हमें पूर्णत: पता है कि पंजाब में हिन्दी पत्र चलाना बहुत कठिन है। हजारों रुपए मासिक का घाटा कई वर्ष तक सहन करना पड़ेगा परंतु जो संकल्प 1923 और 1924 में पूज्य लाला लाजपत राय जी के चरणों में जेल में बैठ कर किया था वह आज पूर्ण हुआ है।’’ ‘‘मैं आदरणीय लाला लाजपत राय जी की चरण रज का सहस्त्रांश भी नहीं हूं पर इतना अवश्य कहना चाहता हूं कि मैंने जो स्वयं में थोड़ी-बहुत निर्भीकता ग्रहण की है वह मैंने लाला जी के चरणों में बैठ कर ही सीखी थी।’’ 

‘‘प्रभु के दरबार में मेरी यह प्रार्थना है कि आज जब हम आदरणीय लाला लाजपत राय जी की स्मृति में ‘पंजाब केसरी’ आरंभ कर रहे हैं तो हमारे परिवार को प्रभु वह बल दें कि हम लाला लाजपत राय जी के पवित्र नाम को इस पत्र में उज्ज्वल करें तथा उनके बताए मार्ग पर चल कर पंजाब और भारतवर्ष की सेवा पूर्ण निर्भीकता से करें ताकि हमारा प्रांत और देश पूरी तरह पनप सके।’’ ‘‘परमात्मा हमें बल दें कि हम इसके द्वारा जनता की सेवा निजी हितों से ऊपर उठ कर करें व सत्य के मार्ग से विचलित न हों।

झे पूर्ण आशा है कि पाठकवृंद भी इस प्रयास में पूर्ण सहयोग करके ‘ङ्क्षहद समाचार’ की भांति ‘पंजाब केसरी’ को सफलता के शिखर पर पहुंचा देंगे ताकि ‘हिंद समाचार परिवार’ जनता के दरबार में सुर्खरू हो सके कि भारत की राष्ट्रभाषा में समाचार पत्र जारी करके उन्होंने अपना कत्र्तव्य निभाने का प्रयत्न किया है। —जगत नारायण’’जिन आदर्शों और संकल्पों को लेकर पूज्य पिता जी ने ‘पंजाब केसरी’ का प्रकाशन शुरू किया था, ‘पंजाब केसरी’ के 57वें वर्ष में प्रवेश करते हुए ‘पंजाब केसरी परिवार’ उन पर चलने के लिए प्रयत्नशील है और रहेगा। —विजय कुमार 

Related Story

    IPL
    Royal Challengers Bengaluru

    190/9

    20.0

    Punjab Kings

    184/7

    20.0

    Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

    RR 9.50
    img title
    img title

    Be on the top of everything happening around the world.

    Try Premium Service.

    Subscribe Now!