‘जाली रजिस्ट्रियों’ का युग होगा समाप्त

Edited By ,Updated: 01 Mar, 2015 01:40 AM

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सम्पत्ति के जाली कागजातों, जाली रजिस्ट्रियों और स्टाम्प पेपरों को लेकर तमाम किस्म के गोरखधंधों की शिकायतें वर्षों से हम सुनते आ रहे हैं लेकिन लगता है कि अगले महीने से ई-स्टाम्पिंग के युग की ...

(संजीव शुक्ल) सम्पत्ति के जाली कागजातों, जाली रजिस्ट्रियों और स्टाम्प पेपरों को लेकर तमाम किस्म के गोरखधंधों की शिकायतें वर्षों से हम सुनते आ रहे हैं लेकिन लगता है कि अगले महीने से ई-स्टाम्पिंग के युग की शुरूआत के साथ ही ये सब कुछ बदलने वाला है। इससे जहां लोगों को बिना परेशानी के सुरक्षित व्यवस्था मिलने की उम्मीद है, वहीं जाली स्टाम्प पेपरों की बिक्री से सरकार को लगाए जाने वाले चूने की परेशानियों से भी निजात मिलेगी। भारतीय स्टाम्प अधिनियम में केन्द्र सरकार द्वारा आवश्यक संशोधन पहले ही किए जा चुके हैं जिससेपेपरों की परम्परागत बिक्री और इस्तेमाल की जगह अब ई-स्टामिं्पग व्यवस्था शुरू किए जाने का रास्ता साफ हो गया है।

नई व्यवस्था का फायदा यह होगा कि लोगों को स्टाम्प या स्टाम्प पेपरों को खरीदने के लिए विक्रेताओं, बैंकों तथा ट्रेजरी दफ्तरों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। वे अपनी सुविधानुसार घर बैठे ही इन्हें ऑनलाइन हासिल कर सकेंगे। वर्तमान व्यवस्था में यह समस्या आम है कि किसी को यदि 20 रुपए का स्टाम्प चाहिए और वह बाजार में उपलब्ध न हो तो उसे अधिक रुपए वाला स्टाम्प इस्तेमाल करना पड़ता है जिसके लिए जाहिर है कि खरीददार को अधिक पैसा भी देना होता है। नई व्यवस्था में यह परेशानी खत्म हो जाएगी।

ऑनलाइन आपको वही मिलेगा जिसकी जरूरत होगी। हर ई-स्टाम्प सर्टीफिकेट का एक विशिष्ट नम्बर होगा जिसके साथ छेड़छाड़ कर पाना सम्भव नहीं होगा। स्टाम्प पेपर असली है या नकली, इसका पता भी ऑनलाइन पूछताछ (इंक्वायरी) मोड्यूल से लगाया जा सकता है।

इस व्यवस्था के तहत जब स्टाम्प पेपर खरीदा जाएगा तो खरीददार का नाम, पता, खरीद का मकसद इत्यादि सारी जानकारी पेपर पर छपी होगी और साथ ही यह रिकॉर्ड ऑनलाइन भी उपलब्ध होगा। वर्तमान व्यवस्था में भी हालांकि हर खरीददार का नाम व पता इत्यादि रजिस्टर में दर्ज किया जाता है लेकिन कई बार होता यह है कि लम्बा समय बीत जाने के बाद या तो लिखाई समझ में नहीं आती या रजिस्टर ही गायब हो जाता या फट जाता है। अर्थात खरीदने वाले का रिकॉर्ड ढूंढ पाना असम्भव-सा हो जाता है। गलत लोग इसी खामी का फायदा उठाते हैं।

चालू व्यवस्था के तहत सिक्योरिटी प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कार्पोरेशन ऑफ इंडिया द्वारा छापे जाने वाले नॉन ज्यूडीशियल स्टाम्प पेपरों की खरीद बड़े पैमाने पर ट्रेजरी करती है जिसके लिए सुरक्षा का इंतजाम तथा स्टाफ आदि की भी व्यवस्था करनी पड़ती है। यद्यपि इन कागजों के अपने सिक्योरिटी फीचर होते हैं लेकिन पंजीकरण अधिकारी के स्तर पर यह पता लगा पाना असम्भव होता है कि पेपर असल है या नकली।

नई व्यवस्था से इसी प्रकार की परेशानियां दूर होंगी। स्टाम्प पेपर खरीदते समय खरीददार को अपना मोबाइल नम्बर देना होगा जिस पर उसे एक कोड एस.एम.एस. के जरिए भेजा जाएगा जैसा कि बैंकों में पहले ही इस्तेमाल हो रहा है। इस कोड के जरिए ही स्टाम्प पेपर जनरेट होगा। इससे यह सुनिश्चित होगा कि अमुक मोबाइल नम्बर वाला व्यक्ति ही स्टाम्प पेपर खरीद रहा है। मोबाइल नम्बर किसके नाम पर है इस बात की जानकारी मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर से भी हासिल की जा सकती है।

इसके अलावा पंजीकरण अधिकारी को ऑनलाइन ही स्टाम्प पेपर को डीफेस (विकृत) करना होगा और साथ ही पेपर पर डीफेसमैंट कोड अंकित करना होगा जिससे उसके पुन: इस्तेमाल का खतरा खत्म हो जाएगा। इस व्यवस्था के तहत पुरानी तारीखों (बैक डेट) में काम किया जाना भी सम्भव नहीं होगा जो धोखाधड़ी का सबसे बड़ा कारण है। कहने का अर्थ यह है कि नई व्यवस्था के तहत हर खरीददार का रिकॉर्ड होगा और उसे ढूंढने में कोई समस्या भी नहीं होगी।

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