Edited By ,Updated: 17 Jul, 2015 12:04 AM
मुम्बई विस्फोट कांड के मुख्य अभियुक्तों में से एक और पाकिस्तान के हाथों खेलने वाले याकूब मेमन की फांसी पर देश के अंदर राजनीति शुरू हो गई है।
(विष्णु गुप्त): मुम्बई विस्फोट कांड के मुख्य अभियुक्तों में से एक और पाकिस्तान के हाथों खेलने वाले याकूब मेमन की फांसी पर देश के अंदर राजनीति शुरू हो गई है। सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि मजहब के नाम पर अपराधी और सैंकड़ों लोगों को मौत की नींद सुलाने वाले के बचाव में तर्क पर तर्क दिए जा रहे हैं। तथाकथित धर्मनिरपेक्ष और विदेशी पैसे पर पलने वाले बुद्धिजीवी जहां फांसी की सजा को राज्य की हिंसा करार देकर विरोध कर रहे हैं, वहीं तथाकथित धर्मनिरपेक्ष व मुस्लिम तुष्टीकरण का खेल खेलने वाली राजनीतिक पार्टियां अपने वोट बैंक के चश्मे से देखकर विरोध कर रही हैं। कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, समाजवादी पार्टी ने याकूब मेमन की फांसी का विरोध करते हुए कहा है कि यह कदममजहब विरोधी दृष्टिकोण को साबित करता है और मुस्लिम समुदाय को आतंकित व उत्पीड़ित करने जैसा कदम है।
महाराष्ट्र की भाजपा सरकार ने आगामी 30 जुलाई को याकूब मेमन की फांसी निर्धारित की है। यह जानना जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट ने मुम्बई बम धमाकों में शामिल होने के लिए याकूब मेमन को फांसी की सजा सुनाई थी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ याकूब मेमन ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर की थी जो राष्ट्रपति ने खारिज कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी याकूब मेमन की फांसी पर अपनी मुहर लगा दी है। याकूब मेमन को कब की फांसी हो जाती अगर महाराष्ट्र की तत्कालीन कांग्रेस-राकांपा सरकार गंभीर होती।
देश की शांति और सद्भाव को भंग करने वाले और अपनी मजहबी हिंसक मानसिकता के पोषण के लिए निर्दोष लोगों को मौत की नींद सुलाने वाले अपराधियों और आतंकवादियों पर दया का भाव रखना खतरनाक है। हमें अगर सही में आतंकवाद और देशद्रोही हिंसा से मुक्ति चाहिए तो शांति और मानवता के दुश्मनों पर दया व संरक्षण की खतरनाक प्रक्रिया से मुक्त होना होगा। अगर हम ऐसा नहीं कर सकते तो फिर हम शांति-सद्भाव की उम्मीद नहीं कर सकते और मजहबी आतंकवाद को नियंत्रित भी नहीं कर सकते। मजहबी मानसिकता के पोषण के लिए आतंकवाद का खेल खेलने वालों को कड़ा संदेश और सबककारी प्रहार जरूरी है।
आतंकवादियों की फांसी पर दुनिया के नजीर को ध्यान में रखना चाहिए। दुनिया में कथित तौर पर मानवाधिकार संगठनों और आतंकवादियों-विखंडनवादियों के विरोध को दरकिनार कर फांसी की सजा को सुनिश्चित किया गया है। यह बात सिर्फ अमरीका, चीन जैसे देशों की नहीं है बल्कि मुस्लिम देशों ने भी आतंकवादियों और खूंखार अपराधियों को फांसी पर लटकाने में संकोच नहीं किया है। उदाहरण के तौर पर पाकिस्तान, बंगलादेश, ईरान, मिस्र, अफगानिस्तान, मलेशिया आदि देशों में पिछले एक साल के दौरान हजारों लोगों को फांसी पर चढ़ाया गया है। ऐसेे देश यह समझ गए हैं कि मजहब के नाम पर आतंकवादी संगठनों और आतंकवादियों को संरक्षण देने का सीधा अर्थ संप्रभुता के साथ खिलवाड़ करना है।
बंगलादेश अपने यहां दर्जनों आतंकवादियों को फांसी पर चढ़ा चुका है। पाकिस्तान में बच्चों के स्कूल पर हमला कर डेढ़ सौ से ज्यादा बच्चों की हत्या करने वाले आतंकवादियों और अपराधियों को फांसी पर चढ़ाने का अभियान शुरू हुआ था। पाकिस्तान कई दर्जन आतंकवादियों और खूंखार अपराधियों को फांसी पर टांग चुका है। मिस्र कट्टरपंथी मुस्लिम ब्रदरहुड के दर्जनों लोगों को फांसी दे चुका है और कई आतंकवादियों को फांसी की सजा सुना चुका है। एमनैस्टी इंटरनैशनल जैसे मानवाधिकार संगठन के विरोध के बावजूद पाकिस्तान, बंगलादेश, ईरान और मिस्र में फांसी देने का अभियान नहीं रुका है।
जब मुस्लिम देश भी आतंकवादियों और खूंखार अपराधियों को फांसी देने में पीछे नहीं हैं तब भारत को पीछे क्यों रहना चाहिए। भारत आतंकवादियों और खूंखार अपराधियों पर दया और संरक्षण का भाव क्यों रखे? हाल के वर्षों में भारत में 2 आतंकवादियों को फांसी पर चढ़ाया गया है। कांग्रेस की पिछली सरकार ने पाकिस्तान के आतंकवादी और मुम्बई हमले के दोषी कसाब को फांसी पर चढ़ाया था। कश्मीर के आतंकवादी और भारतीय संसद पर हुए आतंकवादी हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी पर लटकाया गया था। कसाब को फांसी पर लटकाने से पाकिस्तान की नाराजगी का डर दिखाया जाता रहा था जबकि कसाब के दोषी होने के सभी प्रमाण भारत के पास थे।
अफजल गुरु की फांसी को लेकर बहुत हो-हल्ला मचाया गया था। कहा गया था कि अगर अफजल गुरु को फांसी पर लटकाया गया तो कश्मीर के हालात काबू से बाहर हो जाएंगे, कश्मीर में आतंकवादी हिंसा रोकना मुश्किल होगा। इतना ही नहीं बल्कि यह भी कहा गया था कि आतंकवादी संगठन भारत के खिलाफ युद्ध का ऐलान करेंगे। यह सब आशंका और डरावना तर्क इसलिए दिया गया था ताकि किसी न किसी तरह कसाब और अफजल गुरु की फांसी रुकवाई जा सके। कसाब और अफजल गुरु की फांसी सुनिश्चित होने के बाद सारी आशंकाएं गलत साबित हुर्ईं और डरावने तर्क बेअर्थ साबित हुए थे।
कसाब और अफजल गुरु की फांसी को लेकर विदेशी पैसे पर पलने वाले बुद्धिजीवियों ने जिस तरह की आशंका व्यक्त की थी और जिस तरह की डरावनी परिस्थितियां उत्पन्न होने का खतरा बताया था उसी तरह की भाषा याकूब मेमन की फांसी पर भी बोली जा रही है। याकूब मेमन की फांसी को सीधे मजहब के साथ जोड़ दिया गया है। कहा जा रहा है कि याकूब मेमन को अगर फांसी पर चढ़ाया जाएगा तो मुस्लिम समुदाय में गलत संदेश जाएगा। मुस्लिम नरेन्द्र मोदी के राज में वैसे भी डरे हुए हैं और उनके साथ भेदभाव हो रहा है। खासकर सोशल साइटों पर याकूब मेमन की फांसी पर तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग ने काफी नकारात्मक ढंग से अभियान छेड़ रखा है। यहां तक कहा जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी सरकार याकूब को फांसी पर चढ़ाकर हिन्दुओं को खुश करना चाहती है और भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहती है जबकि याकूब मेमन की फांसी में नरेन्द्र मोदी सरकार की कोई भूमिका नहीं है। याकूब मेमन की फांसी की घोषणा महाराष्ट्र सरकार ने की है। महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों को फॉलो करते हुए याकूब मेमन की फांसी सुनिश्चित की है।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडऩवीस ने साफ तौर पर कहा है कि फांसी पर भाजपा कोई राजनीति नहीं कर रही है, भाजपा का कोई छुपा हुआ एजैंडा भी नहीं है और न ही मुस्लिम समुदाय को आतंकित करने का कोई एजैंडा है। यह शुद्ध रूप से कानूनी प्रकिया है।
मुम्बई बम विस्फोट कांड में 265 लोग मारे गए थे, जबकि 800 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। मुम्बई विस्फोट कांड में मारे गए उन लोगों की जान की क्या कोई कीमत नहीं थी तथा घायल हुए उन लोगों के दुख-दर्द की क्या कोई कीमत नहीं है? तथाकथित बुद्धिजीवी और मुस्लिम तुष्टीकरण का खेल खेलने वाली राजनीतिक पार्टियां मुम्बई विस्फोट कांड में मारे गए 265 और घायल हुए 800 से अधिक लोगों के बारे में कोई बात तक नहीं करती हैं।
मारे गए लोगों के परिजनों का दुख-दर्द क्यों नहीं समझा जाना चाहिए? मारे गए लोगों के परिजन सिर्फ याकूब मेमन ही नहीं बल्कि सभी आरोपियों को मौत की सजा देने की मांग करते रहे हैं। मुम्बई बम विस्फोट कांड पाकिस्तान की एक साजिश थी और इसे आई.एस.आई. ने अंजाम दिया था। याकूब मेमन और दाऊद इब्राहिम जैसे आतंकवादी/ अपराधी आई.एस.आई. के गुर्गे रहे हैं। दाऊद इब्राहिम अभी भी पाकिस्तान में रह रहा है। महाराष्ट्र सरकार को तथाकथित विदेशी पैसे पर पलने वाले बुद्धिजीवियों और मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने वाली पार्टियों के विरोध को नजरअंदाज कर अपने निर्णय पर अडिग रहना चाहिए। देश विरोधी आतंकवादियों और अपराधियों को कड़ा और सबककारी संदेश देना जरूरी है।