भाजपा ‘सत्ता विरोधी लहर’ से बच नहीं सकती

Edited By Pardeep,Updated: 26 Dec, 2018 04:47 AM

bjp can not escape  anti incumbency

जैसे -जैसे वर्ष 2018 समाप्ति के करीब पहुंच रहा है, पीछे नजर डाल कर देखना उचित होगा कि राजनीतिक तौर पर यह वर्ष कैसा रहा। यह विशेष तौर पर इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसने सभी राजनीतिक दलों को कुछ सबक सिखाए हैं। कुछ महीने पहले तक किसी ने भी इस बात...

जैसे -जैसे वर्ष 2018 समाप्ति के करीब पहुंच रहा है, पीछे नजर डाल कर देखना उचित होगा कि राजनीतिक तौर पर यह वर्ष कैसा रहा। यह विशेष तौर पर इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसने सभी राजनीतिक दलों को कुछ सबक सिखाए हैं। 

कुछ महीने पहले तक किसी ने भी इस बात पर संदेह नहीं जताया था कि 2019 में मोदी वापसी करेंगे लेकिन अब यह आसान नहीं रह गया है। और भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि इस वर्ष में भाजपा की कलाबाजियां कम से कम अस्थायी तौर पर रुक गई हैं जिससे मोदी सरकार तथा उनकी पार्टी को झटका पहुंचा है। इस वर्ष में भाजपा की पराजय पहले कर्नाटक में शुरू हुई और फिर दिसम्बर में राजस्थान, छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश में, जोकि भाजपा के गढ़ थे। अब मोदी अपराजेय नहीं रहे। दिसम्बर में हिन्दी पट्टी में चुनावी परिणाम दिखाते हैं कि भाजपा सत्ता विरोधी लहर से बच नहीं सकती, यहां तक कि अपने गढ़ों में भी।

कांग्रेस का मनोबल बढ़ा
दूसरे, राजस्थान, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में प्रभावशाली विजयों के बाद राहुल गांधी नीत कांग्रेस का मनोबल बढ़ा है और इसका चुनावी भविष्य अच्छा दिखाई देता है। इसके बाद राहुल अपने अधिकार वाले एक नेता के तौर पर उभरे हैं। कांग्रेस अब अपेक्षाकृत 5 बड़े राज्यों कर्नाटक, पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी है इसलिए कांग्रेस मुक्त भारत अब एक वास्तविकता नहीं रहा। पार्टी ने यह भी दिखाया है कि इसके पास मजबूत क्षेत्रीय नेता हैं। 

स्थिति दिसम्बर 2017 में बदलनी शुरू हुई जब भाजपा को गुजरात में बहुत कम अंतर से बहुमत मिला। फिर मई 2018 में कांग्रेस ने कर्नाटक में सरकार बनाने के लिए एक छोटी पार्टी जद (एस) को समर्थन देने का हैरानीजनक निर्णय लिया ताकि भाजपा को रोका जा सके। यह दिखाता है कि गठबंधन विपक्ष के लिए बेहतरीन रास्ता है। सोनिया गांधी, राहुल गांधी, देवेगौड़ा, मायावती, ममता बनर्जी तथा अजित सिंह आदि सहित वरिष्ठ विपक्षी नेताओं का एक-दूसरे का हाथ थामे हुए चित्र एक कहानी बताता था। तब से गांधी तथा किसी समय सिमट चुकी कांग्रेस अब और अधिक केन्द्रित तथा तर्कपूर्ण दिखाई देती है। विपक्ष 2019 में एक सांझा भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने का प्रयास कर रहा है।

तीसरे, भाजपा के गठबंधन तनाव के संकेत दिखा रहे हैं क्योंकि इसके सहयोगी भाजपा के ‘बड़े भाई’ जैसे व्यवहार को लेकर अपनी चिंता प्रकट रहे हैं। कुछ ने इस वर्ष के दौरान राजग को छोड़ दिया, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण मार्च में तेलुगु देशम पार्टी का अलग होना था। उपेन्द्र कुशवाहा के नेतृत्व वाली बिहार की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) राजग छोडऩे वाली पार्टियों में नवीनतम है। भाजपा के लिए और भी खराब बात यह कि ये दोनों कांग्रेस नीत यू.पी.ए. में शामिल हो गई हैं। एक अन्य हैरानीजनक बात तेलंगाना में हालिया विधानसभा चुनावों में कांग्रेस तथा तेलुगु देशम पार्टी के बीच गठजोड़ होना है। 1982 में तेदेपा के जन्म से ही दोनों पाॢटयां कट्टर विरोधी रही हैं। 

पी.डी.पी.-भाजपा प्रयोग असफल
इससे पहले जम्मू-कश्मीर में पी.डी.पी.-भाजपा प्रयोग विफल हो गया, जो यह साबित करता है कि भारतीय राजनीति में असामान्य गठजोड़ लम्बे समय तक नहीं चल सकते। बिहार में भाजपा ने जीतन राम मांझी के हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) का समर्थन खो दिया। शिवसेना इसे छोडऩे की धमकी दे रही है। पवन कल्याण की जन सेना ने भी आंध्र प्रदेश में इसे छोड़ दिया है। दूसरी ओर कांग्रेस ने तेदेपा तथा जद (एस) का हाथ थाम कर ऐसा काम किया है जिसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था। चौथे, भाजपा अथवा इसके सहयोगी आज सात राज्यों में शासन कर रहे हैं और यह प्रारम्भिक दिनों के मुकाबले एक बड़ा बदलाव है जब सैवन सिस्टर्स कहलाते इन राज्यों पर लम्बे समय तक कांग्रेस का शासन था। भाजपा ने अपने पंख पश्चिम, पूर्व तथा मध्य भारत में फैलाने के अतिरिक्त कर्नाटक में अपनी जड़ें जमाकर साबित कर दिया है कि यह एक अखिल भारतीय पार्टी बन गई है। उत्तर-पूर्व अब कांग्रेस मुक्त बन गया है। 

कृषि संकट
पांचवें, कृषि संकट के कारण गत 20 वर्षों के दौरान 30 लाख से भी अधिक किसानों ने आत्महत्याएं की हैं। कुछ राज्यों में चुनावी नुक्सान का सामना करने के बावजूद भाजपा इससे इंकार करती है। 2019 के चुनावों में यह सबसे बड़े मुद्दों में से एक बनने वाला है। जब अक्तूबर-नवम्बर में 30,000 किसान दिल्ली पहुंच गए थे, तो भाजपा को इसका संज्ञान लेना चाहिए था। वे बिना शर्त कर्ज माफी के साथ-साथ एम.एस. स्वामीनाथन आयोग के सुझावों को लागू करवाना चाहते हैं, जो एक ऐसी मांग है जिसे एक के बाद एक आने वाली सरकारें नजरंदाज करती रही हैं। विपक्ष के साथ-साथ भाजपा को भी एक नया रास्ता तलाशना होगा क्योंकि विभिन्न राज्यों द्वारा कृषि ऋण माफी कोई उत्तर नहीं है। उन्हें और अधिक रचनात्मक समाधानों की जरूरत है। 

छठे, नोटबंदी तथा जी.एस.टी. से उत्पन्न समस्याओं का समाधान करने की जरूरत है। यह स्पष्ट है कि नोटबंदी ने लोगों को कड़ी चोट पहुंचाई और यहां तक कि 2 वर्ष बाद भी अनौपचारिक तथा कृषि क्षेत्र अभी भी इस संकट को झेल रहे हैं। नौकरियों में कमी भी स्पष्ट दिखाई देती है। सातवें, बसपा प्रमुख मायावती को राजनीतिक तौर पर नजरंदाज नहीं किया जा सकता और 2019 में अधिक से अधिक पाॢटयां गठबंधन बनाने के लिए उनके पीछे दौड़ती दिखाई देंगी। आठवें, राष्ट्रीय पाॢटयां क्षेत्रीय क्षत्रपों को पराजित करने में सक्षम नहीं, जैसा कि तेलंगाना राष्ट्र समिति के प्रमुख के. चन्द्रशेखर राव ने साबित किया है। इसके साथ ही भाजपा भी दक्षिण में अपना विस्तार करने में सक्षम नहीं। वर्ष 2019 दिखाएगा कि राजनीतिक पार्टियों 2018 में सीखे सबकों पर कितना अमल करती हैं। यह चुनाव परिणामों से दिखाई दे जाएगा लेकिन राजग तथा यू.पी.ए. दोनों को मतदाताओं को लुभाने के लिए एक नए कथानक की जरूरत होगी।-कल्याणी शंकर

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!