महत्वपूर्ण मुद्दों पर सहयोगियों के साथ बैठकें करने की शिअद की मांग भाजपा को माननी चाहिए

Edited By ,Updated: 27 Dec, 2019 01:47 AM

bjp should accept sad s demand to hold meetings with allies on important issues

1998 से 2004 तक प्रधानमंत्री रहे श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा के गठबंधन सहयोगी तेजी से बढ़े और उन्होंने राजग के मात्र तीन दलों के गठबंधन को विस्तार देते हुए 26 दलों तक पहुंचा दिया था। श्री वाजपेयी ने अपने किसी भी गठबंधन सहयोगी को कभी...

1998 से 2004 तक प्रधानमंत्री रहे श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा के गठबंधन सहयोगी तेजी से बढ़े और उन्होंने राजग के मात्र तीन दलों के गठबंधन को विस्तार देते हुए 26 दलों तक पहुंचा दिया था। श्री वाजपेयी ने अपने किसी भी गठबंधन सहयोगी को कभी शिकायत का मौका नहीं दिया परंतु उनके राजनीति से हटने के बाद भाजपा के कई सहयोगी दल विभिन्न मुद्दों पर असहमति के चलते इसे छोड़ गए। यहां तक कि 25 से अधिक वर्षों से इसका सबसे पुराना और महत्वपूर्ण सहयोगी दल शिव सेना भी इससे नाता तोड़ कर अलग हो गया है। 

उल्लेखनीय है कि केंद्र एवं राज्यों की विभिन्न गैर भाजपा शासित सरकारों की चूकों के कारण भाजपा को देश में उभरने का मौका मिला। लोकसभा चुनावों (2014) में प्रचंड विजय के साथ भाजपा तेजी से आगे बढ़ी और देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन गई। मार्च, 2018 में 13 राज्यों में भाजपा की अकेली सरकार तथा 6 राज्यों में सहयोगियों के साथ 19 राज्यों में सरकार थी पर 23 दिसम्बर, 2019 को झारखंड में हार के बाद 8 राज्यों में इसकी अपनी व 8 अन्य राज्यों में सहयोगी दलों के साथ मिल कर संयुक्त सरकारें रह गईं तथा इसके शासन के अधीन भू-भाग भी अब 70 प्रतिशत से घट कर मात्र 34 प्रतिशत रह गया है।

इस स्थिति के लिए भाजपा के आलोचक इसके नेताओं के ‘अहंकार’ को जिम्मेदार बताते हैं। यह सिलसिला झारखंड में हार के बाद भी थमा नहीं और अब इसे छत्तीसगढ़ के 10 नगर निगमों के लिए हुए चुनावों में 9 नगर निगमों में भारी पराजय का सामना करना पड़ा है। इस समय जबकि एन.आर.सी. और सी.ए.ए. को लेकर देश में घमासान मचा हुआ है, इस मुद्दे पर सिर्फ गैर भाजपा विपक्षी दलों में ही नहीं बल्कि राजग के घटक दलों में भी भारी नाराजगी देखने को मिल रही है। 

जहां जद (यू) और लोजपा एन.आर.सी. को लेकर असहमति व्यक्त कर चुके हैं वहीं अब शिवसेना के बाद राजग के सबसे पुराने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने भी एन.आर.सी. से पूर्ण असहमति व्यक्त करते हुए सी.ए.ए. को लेकर हो रहे देश व्यापी प्रदर्शनों से पैदा स्थिति पर विचार करने के लिए राजग के भागीदार दलों की बैठक बुलाने तथा महत्वपूर्ण मुद्दों पर बैठकें नियमित रूप से करने की मांग कर दी है। अभी तक शिअद ने सी.ए.ए. पर भाजपा के पक्ष में स्टैंड ले रखा था तथा शिअद सुप्रीमो सुखबीर बादल ने गृह मंत्री अमित शाह से सी.ए.ए. में मुसलमानों को शामिल करने की अपील करते हुए कहा था कि ‘‘मेरा विनम्र निवेदन है कि मुसलमानों को भी सी.ए.ए. में शामिल करें।’’ परंतु अब शिअद के एक वरिष्ठ नेता एवं सांसद नरेश गुजराल ने कड़े शब्दों में एन.आर.सी. को समाप्त करने की मांग करते हुए कहा है कि ‘‘राजग की बैठक में नागरिकता कानून जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा का न होना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है और शायद इसीलिए राजग के अनेक घटक दल सी.ए.ए. और एन.आर.सी. के मुद्दे पर दुखी हैं।’’ 

‘‘हम आज श्री वाजपेयी जी के समय को याद करते हैं जिन्होंने 20 पार्टियों को एक धागे में पिरोकर रखा था और खास बात यह थी कि उनके दौर में हर पार्टी खुश थी तथा हर पार्टी को सम्मान भी दिया जाता था।’’‘‘वाजपेयी जी के उस अंदाज को जिस भाजपा नेता ने सीखा था वह थे अरुण जेतली। जब तक जेतली जी जीवित थे तब तक सभी पाॢटयों में एक चैनल था जो हमेशा खुला रहता था। दुर्भाग्य की बात है कि उनके जाने के बाद राजग का वह चैनल वास्तव में काम नहीं कर रहा।’’श्री गुजराल ने यह भी कहा कि ‘‘मुसलमानों को सी.ए.ए. में शामिल करना चाहिए और मोदी सरकार को अर्थव्यवस्था पर अधिक ध्यान देना चाहिए ताकि युवाओं के लिए अधिक रोजगार पैदा किए जा सकें। हम एन.आर.सी. के पूर्णत: विरुद्ध हैं अत: इसे समाप्त किया जाना चाहिए।’’ संभवत: श्री गुजराल के यह बयान देने से पहले शिअद ने इस विषय पर भाजपा नेतृत्व से चर्चा करने की कोशिश की होगी परंतु अपनी बात अनसुनी रहने पर वह सार्वजनिक रूप से उक्त बयान देने को विवश हुए हों।

जो भी हो, भाजपा नेतृत्व को अपने सहयोगी दलों को साथ लेकर चलकर उनकी सहमति से ही संवेदनशील मुद्दों पर निर्णय लेने चाहिएं। जिस प्रकार कांग्रेस ने क्षेत्रीय दलों और गठबंधन की राजनीति का महत्व समझा है और महाराष्ट्र एवं झारखंड में सरकारें बनाने में सफलता प्राप्त की है उसी प्रकार भाजपा नेतृत्व को भी अपने सहयोगी दलों को विश्वास में लेना चाहिए ताकि उनकी नाराजगी उसकी सफलता के मार्ग में अवरोध पैदा न करे।—विजय कुमार 

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