ब्लैक थंडर-टू : क्या ‘खालिस्तानी आतंकवाद’ तब खत्म हो सकता था

Edited By ,Updated: 01 Aug, 2020 01:59 AM

black thunder two could khalistani terrorism end then

मैं विशेष रूप से आप्रेशन ब्लैक थंडर-टू के तौर पर पंजाब में अपने दिनों के लिए वापस जाता हूं क्योंकि यह मेरी आंखों के सामने प्रकट हुआ जिसे राष्ट्रवादी आतंकवाद के रूप को निपटने के लिए पुरातन तरीका अपनाया गया। मुझे सबसे पहले यह उल्लेख करना होगा कि...

मैं विशेष रूप से आप्रेशन ब्लैक थंडर-टू के तौर पर पंजाब में अपने दिनों के लिए वापस जाता हूं क्योंकि यह मेरी आंखों के सामने प्रकट हुआ जिसे राष्ट्रवादी आतंकवाद के रूप को निपटने के लिए पुरातन तरीका अपनाया गया। मुझे सबसे पहले यह उल्लेख करना होगा कि आतंकवाद का राष्ट्रवादी रूप क्या है? यह सबसे पहले स्पष्ट रूप से उत्तरी आयरलैंड में प्रकट हुआ था और उसके बाद स्पेन में जहां बेसियो ने अपनी एक अलग स्थिति की  तलाश में आतंकवाद का सहारा लिया। यह महसूस किया गया कि आतंकियों के मस्तिष्क को धो देने से आतंकवादी समस्या का समाधान नहीं निकाला जा सकता क्योंकि राष्ट्रवादी का स्वरूप भावनाओं पर आधारित है। 

जब एक आतंकवादी को नीचे गिराया जाता है तब तत्काल ही उसके स्थान पर एक या दो प्रतिस्थापन मिल जाते हैं, जो भावनाओं से प्रेरित होते हैं इसलिए हत्यारों को बेअसर करना एक जरूरी बात है लेकिन उस समुदाय से दोस्ती करना और भी महत्वपूर्ण है जिससे आतंकवादी संबंध रखते हैं। सरकार का मुख्य मंतव्य दिल और दिमाग जीतना होना चाहिए। उस समुदाय के साधारण सदस्यों के साथ व्यवहार में न्याय सुनिश्चित किया जाना चाहिए। उन लोगों में सुरक्षाबलों, सेना और विशेषकर पुलिस में कुछ को भर्ती करना है।

उनकी निर्णय लेने में भागीदारी बनानी चाहिए। विशेषज्ञों ने इसे पुरातन तरीके के रूप में देखा है। इस बात को अपने दिमाग में रखने के दौरान मैंने सोचा कि मैं व्यक्तिगत रूप से ग्रामीणों के साथ बातचीत करूंगा और उनसे पूछूंगा। मैं अपने स्वयं के लोगों के लिए न्याय करने की प्रतिबद्धता दोहराना चाहता था और उसी समय बेगुनाहों के हत्यारों से आबादी का छुटकारा पाना चाहता था। 

जब चमन लाल ने आई.जी.पी. सरहदी जिलों के आई.जी.पी.के तौर पर चार्ज संभाला। सीमावर्ती जिलों में अंतक्रियाएं और भी लगातार तीव्र हो गईं। के.पी.एस. गिल ने अप्रैल या मई 1988 को मेरे स्थान पर पंजाब के डी.जी.पी. का कार्यभार संभाला। उस समय मुम्बई में प्रोस्टैट के लिए मेरी सर्जरी की जा रही थी। मुझे राज्यपाल के सलाहकार के रूप में नियुक्त करने का फैसला किया गया। पंजाब उस समय राष्ट्रपति शासन के अधीन था। मंत्रियों को दिए गए आधे से ज्यादा पोर्टफोलियो मुझे आबंटित किए गए। बाकी के पोर्टफोलियो गवर्नर ने अपने पास रखे। मैं ऐसी घटनाओं  के इस मोड़ से खुश था। क्योंकि इससे आम आदमी का भरोसा जीता जा सकता था। 

इस नई भूमिका में मैं कई नागरिकों से उनकी शिकायतों के साथ मिला। मैंने उन्हें ध्यानपूर्वक सुना और जो कुछ भी मैं उन्हें राहत प्रदान कर सकता था, मैंने किया। मैं सरपंचों से भी मिला। उनमें से कुछ आधा दर्जन मुझे दोपहर में मिले और मुझे उस सड़क को दिखाने के लिए ले जाना चाहते थे जो पी.डब्ल्यू.डी. की किताबों में तो पूरी हो चुकी थी मगर वास्तविक तौर पर उस सड़क का निर्माण अभी शुरू नहीं हुआ था। मुझे यकीन नहीं हुआ कि क्या इस तरह का घोटाला भी संभव है? लेकिन सरपंच सारी स्थिति से अवगत थे और मुझसे बेहतर जानते थे।

मुझे अधीक्षण अभियंता को निलंबन के अधीन रखना पड़ा। उसके खिलाफ जांच अनिवार्य थी। अपनी नई भूमिकाओं की इन परिचयात्मक टिप्पणियों के साथ मैं स्मृति में आगे बढऩा चाहता हूं। ब्लैक थंडर-2 में मेरी नई भूमिका शुरू हुई। एक दिन सुबह मुझे अपने कार्यालय से फोन आया जोकि अमृतसर शहर के एक युवा एस.पी. का था। उसने मुझे बताया कि आतंकियों ने स्वर्ण मंदिर में सेंधमारी की तथा उन्होंने सी.आर.पी.एफ. के डी.आई.जी.पी. एस.एस. विर्क को गोली मार दी। विर्क उस समय स्वर्ण मंदिर के आसपास अपने सैनिकों का निरीक्षण कर रहे थे। गोली ने विर्क के जबड़े की हड्डी तोड़ दी। इससे उनके आदमी क्रोधित हो गए। 

उसके साथ-साथ पुलिस भी आक्रोश में आ गई क्योंकि वह विर्क को अपना मानती थी। विर्क पंजाब से संबंध रखते थे। इससे पहले वह मेरे अपने गृह राज्य महाराष्ट्र से पंजाब में डैपुटेशन पर आए थे। युवा एस.पी. सुरेश अरोड़ा मुझसे चाहते थे कि मैं उन्हें गुरुद्वारे में से आरोपियों को पकडऩे के लिए प्रवेश ले सकूं। सुरेश के.पी.एस. गिल से निर्देश पाने के लिए उनके सही स्थान के बारे में पता नहीं कर पाए थे। मुझे भी उनके बारे में कोई सुराग नहीं मिला था। के.पी.एस. गिल के कार्यालय को भी उनके ठिकाने के बारे में कोई सूचना न थी। उनके निवास से भी सूचना नहीं मिल पा रही थी। 

मैंने सुरेश से कहा कि वह अपने बल को तैयार रखें। स्वर्ण मंदिर में प्रवेश के लिए राजनीतिक मंजूरी की जरूरत थी। मैंने तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री बूटा सिंह से बात की। उन्होंने एन.एस.जी. को सतर्क कर दिया। अगली ही सुबह वह पहुंच गए और सर्कट हाऊस में मुझे सूचना दी गई। पिछली शाम चंडीगढ़  से आने के बाद मैं अमृतसर में डेरा डाले हुए था। एन.एस.जी. के बाद के.पी.एस. गिल ने रिपोर्ट की तथा आप्रेशन का जिम्मा लिया। अगले कुछ दिन के.पी.एस. गिल, राज्यपाल तथा मैं प्रत्येक दिन दिल्ली जाते रहे हैं और प्रधानमंत्री तथा बूटा सिंह को आप्रेशन की प्रगति के बारे में बताते रहे हैं। 

के.पी.एस. गिल जल्दबाजी में थे। मगर डी.आई.बी. एम.के. नारायण ज्यादा चौकस थे। उनकी आंखों तथा कानों ने उनको बताया कि जल्दबाजी में उन्हें इसलिए नहीं बुलाया गया क्योंकि सिख ग्रामीणों ने महसूस किया कि आतंकवादियों ने लक्ष्मण रेखा को पार कर लिया है। इसलिए उन्होंने उनका समर्थन रोक दिया। उन्होंने अकाली मांग पर अपनी प्रतिक्रिया न देने का निर्णय लिया। एक पल तो के.पी.एस. ने एन.एस.जी. को अपने साथ स्वर्ण मंदिर के किसी हिस्से तक पहुंचने का आदेश दिया जिसे प्रधानमंत्री तथा गृह मंत्री ने अनुमोदित नहीं किया था। मेरी क्लीयरैंस के लिए उन्होंने मुझे फोन किया। 

बेशक मैंने धैर्य की सलाह दी।  ब्लैक थंडर-2 के लाइव प्रसारण के साथ के.पी.एस. गिल ने  विश्व पटल पर एक बड़ी छाप छोड़ी। उन्होंने सुबह से रात तक अनथक परिश्रम किया ताकि हमारे मिशन को सफल बनाया जाए। उन्होंने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने आई.जी.पी. (बार्डर) को मुझे अनुरोध करने के लिए भेजा कि मैं आप्रेशन वाले स्थल पर न आऊं। हो सकता है वह उस क्रैडिट से अलग हो जाते जिसके वह हकदार थे। इसलिए मैं उनकी इच्छा के साथ गया। वह पूरा श्रेय पाने के हकदार थे। वह किसी अन्य अधिकारी के साथ कुछ भी सांझा नहीं करना चाहते थे। 

आतंकवादियों के आत्मसमर्पण के बाद एक दर्जन सरपंचों ने सर्कट हाऊस में मुझे बुलाया। उन्होंने बताया कि उन लड़कों के लिए वह सभी सम्मान खो चुके हैं जिसके लिए वह कहते थे कि वह खुद के लिए नहीं बल्कि समुदाय के लिए नि:स्वार्थ रूप से लड़ रहे हैं। वह चाहते थे कि के.पी.एस.गिल घेराबंदी, सर्च आप्रेशन तथा घरों के तलाशी को बंद कर दें। गिल ने सी.आर.पी.एफ. को इसे जारी रहने देने का आदेश दिया। जब मैंने महसूस किया कि उनका अनुरोध उचित था। मगर के.पी.एस. गिल ने अन्यथा सोचा। 

मामला मेरे और उनके द्वारा राज्यपाल सिद्धार्थ शंकर रे के समक्ष पेश किया गया था कि हम अपने लाभों को ब्लैक थंडर-2 द्वारा और मजबूत करना चाहते थे। यह दृश्य प्रबल हुआ। मेरा विचार है कि दिल और दिमाग जीतने के इस सही क्षण को खारिज कर दिया गया था। आतंक के खिलाफ युद्ध में जटसिख समुदाय को अपनी तरफ पाने का एक वास्तविक अवसर खो दिया गया था। खालिस्तान आतंकवाद से पार पाने के लिए देश को 4 से 5 वर्ष और लग गए।-जूलियो रिबैरो (पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!