‘बजट में बुजुर्गों और असंगठित मेहनती लोगों पर भी हो ध्यान’

Edited By ,Updated: 11 Jan, 2021 03:05 AM

budget should also focus on the elderly and the unorganized hard working people

केवल आंदोलन और धरनों या क्षेत्र विशेष की लॉबी और प्रतिनिधियों के दबाव और सलाह से नीति अथवा बजट तय होना क्या उचित है। दुर्भाग्य यह है कि आजादी के 73 साल बाद भी समाज में शांत भाव से रहने वाले अधिसंख्यक नागरिकों की न्यूनतम

केवल आंदोलन और धरनों या क्षेत्र विशेष की लॉबी और प्रतिनिधियों के दबाव और सलाह से नीति अथवा बजट तय होना क्या उचित है। दुर्भाग्य यह है कि आजादी के 73 साल बाद भी समाज में शांत भाव से रहने वाले अधिसंख्यक नागरिकों की न्यूनतम सुविधाओं और लाभ के लिए केवल प्रतीकात्मक योजनाओं और बजट का प्रावधान रहता है। 

इसमें कोई शक नहीं कि नरेंद्र मोदी की सरकार ने हाल के वर्षों में किसानों और गरीबों के लिए आवास, स्वास्थ्य, उत्पादन वृद्धि के लिए नई लाभकारी योजनाएं शुरू कीं। लेकिन देश के बुजुर्गों और असंगठित क्षेत्र के करोड़ों लोगों के जीवनयापन और न्यूनतम सुविधाओं के लिए आगामी बजट तथा नीतियों में अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं अगले वित्तीय वर्ष के बजट पर उच्च स्तरीय विचार-विमर्श कर रहे हैं। इसी बजट से राज्यों की भी कई योजनाएं क्रियान्वित होती हैं। राष्ट्रीय स्तर पर प्राथमिकता तय रहने से समाज के सर्वांगीण विकास में सहायता मिलती है। 

यों भारतीय परिवारों में बुजुर्गों के सम्मान और संरक्षण की परम्परा रही है। लेकिन सामाजिक आर्थिक विकास के साथ व्यावहारिक समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। संक्रांति काल में पश्चिमी देशों की तरह सरकारी स्तर पर सामाजिक सुरक्षा के समुचित प्रबंध नहीं हैं। इस संदर्भ में पिछले दिनों एजवेल फाऊंडेशन द्वारा प्रधानमंत्री को भेजे गए सुझावों से समस्या के महत्वपूर्ण पहलुओं का अंदाजा लग सकता है। फाऊंडेशन के प्रमुख हिमांशु रथ करीब तीन दशकों से देश के वरिष्ठ नागरिकों की समस्याओं के समाधान के लिए राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाए हुए हैं। 

दिलचस्प बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र संघ तक उनके प्रयासों पर ध्यान देने के साथ सहयोग कर रहा है । कुछ कार्पोरेट कंपनियां भी कार्पोरेट उत्तरदायित्व के नियमों के आधार पर थोड़ा सहयोग कर रही हैं, लेकिन यह पहाड़ जैसी समस्या के लिए कुछ मीटर की ऊंचाई छूने जैसा है। दुनिया के लोकतांत्रिक देशों में ही नहीं चीन और रूस जैसे देशों में भी सरकारों ने साठ से अधिक आयु वाले लोगों के लिए अधिकतम प्रावधान कर रखे हैं। अब समय रहते मोदी सरकार को श्री गणेश के आदर्श मंत्र-माता पिता की परिक्रमा और सेवा से विश्व की परिक्रमा और धर्म पालन को प्राथमिकता देने पर विचार करना चाहिए। 

एजवेल फाऊंडेशन ने सही मुद्दा उठाया है। वर्तमान आॢथक दौर में केवल 600 से 1000 रुपए की मासिक पैंशन से क्या  किसी बुजुर्ग दंपत्ति का रहने खाने का खर्च चल सकता है? खासकर यदि उसने जीवन भर कोई नियमित नौकरी नहीं की हो या विधवा महिला हो। जिसके पास अपना घर न हो और किराए पर रहते हों। गरीबों को अपना घर बनाने के लिए अनुदान राशि है, पर कस्बों शहरों में बुढ़ापे में क्या दो अढ़ाई लाख से कोई साधारण घर भी बना सकेगा। इसी तरह यदि नौकरीपेशा व्यक्ति ने जीवन भर पेट काटकर कुछ लाख बैंक में फिक्स करके रखा है, तो ब्याज दर कम होती जा रही है और यदि ब्याज से अधिक मिले तो उस पर टैक्स लग रहा है।

इस दृष्टि से बुजुर्गों के लिए 5 से दस हजार रुपए मासिक पैंशन का प्रावधान देश के रिटायर्ड सांसदों, विधायकों की भारी पैंशन से कटौती करके भी किया जा सकता है। इसी तरह निम्न मध्यम वर्ग के वरिष्ठ नागरिकों के लिए विदेशों की तरह न्यूनतम ब्याज दरों पर आवास या वाहन के लिए पांच लाख तक के बैंक ऋण का प्रावधान हो सकता है। 

सरकारी रिकार्ड के अनुसार इस समय करीब चौदह करोड़ बुजुर्ग आबादी है और 2026 तक यह संख्या सत्रह करोड़ से अधिक हो जाएगी। इसी तरह असंगठित क्षेत्र में करीब पचास करोड़ से अधिक लोग अनुमानित होंगे। मोदी सरकार ने कुछ श्रेणियों के लिए दो तीन योजनाओं का प्रावधान किया  है, लेकिन कई राज्य सरकारें उन्हें सही ढंग से क्रियान्वित भी नहीं कर सकी हैं। मजदूरों के अलावा कला, साहित्य, संगीत, कारीगरी से जुड़े हजारों परिवारों के लिए तो कोई प्रावधान ही नहीं हैं। जिला, प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार पाने वाले लोगों को साठ-सत्तर की आयु के बाद न्यूनतम सुविधाएं जुटाना मुश्किल है। पिछले वर्षों के दौरान साहित्य, कला, संगीत अकादमी के राष्ट्रीय अथवा पद्म पुरस्कारों से सम्मानित कलाकारों या साहित्यकारों की दयनीय हालत की चर्चा  मीडिया में होती रही है। क्या किसी अन्य देश में ऐसी दुर्दशा दिखने को मिल सकती है? 

अमरीका जैसे संपन्न देश के राष्ट्रपति पद पर रहते हुए बराक ओबामा ने सार्वजनिक रूप से स्वीकारा था कि ‘वरिष्ठजनों और श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा अपरिहार्य है। हमें ऐसी सामाजिक सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध रहना होगा।’ उनका ही नहीं भारत के कई नेताओं और स्वयंसेवी संगठनों का सुझाव रहा है कि मध्यमवर्गीय नौकरीपेशा लोगों को अपने माता-पिता के रख रखाव के लिए आय कर में विशेष छूट का प्रावधान भी होना चाहिए। अमरीका या यूरोपीय देशों में अधिकृत समाजसेवी - स्वयंसेवी संगठनों को दान सहायता का एक कारगर फार्मूला है। 

बुजुर्गों के लिए काम करने वाली संस्थाओं के लिए भारत में ऐसा प्रावधान क्यों नहीं हो सकता है? धार्मिक संस्थाओं और कई न्यासों को भी आय कर में भारी रियायतें हैं। उनका एक बड़ा हिस्सा देवता की प्रतिमूर्ति बुजुर्गों के लिए अनिवार्य रूप से देने का प्रावधान क्यों नहीं हो सकता है। यदि स्वाभिमानी बुजुर्ग 60 की आयु के बाद भी सही ढंग से स्वरोजगार जैसा कोई उपक्रम करना चाहे, तो सरकार बजट में उनके लिए एक नई योजना के साथ धनराशि का प्रावधान कर सकती है।-आलोक मेहता
 

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