‘बाल मित्र थाने’ खोलना सराहनीय कदम

Edited By Updated: 09 Apr, 2022 05:13 AM

commendable step to open  bal mitra thana

...जिसका काम उसी को साजे, और करे तो डंडा बाजे! बाल अपराध के मामले अब पारंपरिक पुलिस थानों को नहीं सौंपे जाएंगे। अलग से व्यवस्था की जा रही है। उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की

...जिसका काम उसी को साजे, और करे तो डंडा बाजे! बाल अपराध के मामले अब पारंपरिक पुलिस थानों को नहीं सौंपे जाएंगे। अलग से व्यवस्था की जा रही है। उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सिफारिश पर किशोर अपराध से जुड़े प्रत्येक किस्म के मामलों को सुलझाने के लिए उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में ‘बाल मित्र थाना’ खोलने का निर्णय हुआ है। फैसला निश्चित रूप से सराहनीय है, इससे आपराधिक प्रवृत्ति वाले किशोरों को सही रास्ते पर लाने में मदद मिलेगी। देश में जैसे महिलाओं से जुड़े मामलों के लिए ‘महिला थाने’ हैं, डिजिटल धोखाधड़ी के लिए ‘साइबर थाने’ बने हैं, ठीक उसी तर्ज पर ‘बाल मित्र थानों’ को स्थापित किया जाएगा। 

बाल अधिकार संरक्षण विषय से जुड़े देशभर के असंख्य कार्यकत्र्ता लंबे समय से मांग उठाते भी आए हैं कि छोटे-बड़े अपराधों में नौनिहालों की संलिप्तता पर पुलिस उन्हें वयस्कों की तरह दंडित न करे, बल्कि उनके लिए अलग से थाने बनाए जाएं, जहां उनकी बेहतर तरीके से सुनावाई हो और नम्रतापूर्वक काऊंसलिंग की जाए, ताकि गलत रास्तों को त्यागकर बच्चे अच्छे संस्कारों की ओर दोबारा से मुड़ सकें। बच्चों के अपराध में संलिप्त होने के कुछ बुनियादी कारण हैं।

एकल परिवारों के बच्चों की वैयक्तिक स्वतंत्रता में अत्यधिक वृद्धि होने से उनके नैतिक मूल्य क्षरण होते जा रहे हैं। मोबाइल फोन, कम्प्यूटर और इंटरनैट की लतों ने बच्चों को तनाव-अवसाद की दलदल में धकेल दिया है जिससे वह अपराध जगत का हिस्सा बन रहे हैं। बाल मित्र थाने कैसे होंगे, कार्यशैली कैसी होगी और उनमें तैनाती किन अधिकारियों की होगी, इसका खाका तैयार हुआ है। 

थानों में सिर्फ सादे कपड़ों में पुलिसकर्मियों की तैनात रहेगी जिनमें अन्य थानों की तरह एक इंस्पैक्टर या एस.एच.ओ. होगा, स्टॉफ में करीब आठ-दस उप-निरीक्षक और एकाध महिला उप-निरीक्षक रहेंगी। ये तामझाम और अतिरिक्त खर्च का भार सरकार इसलिए उठाना चाहती है ताकि बढ़ते बाल अपराधों पर अंकुश लगाया जाए। शायद राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की मौजूदा रिपोर्ट ने यह सब करने पर मजबूर किया है। बीते एक वर्ष में नाबालिगों द्वारा अंजाम दी गई आपराधिक घटनाओं में 842 हत्या, 981 हत्या का प्रयास, 725 अपहरण केस शामिल हैं। ये संगीन मामले हैं, जिनमें उत्तर प्रदेश अव्वल है। 

चोरी की घटनाओं में बेतहाशा इजाफा हुआ है, करीब 6081 घटनाएं दर्ज हुई हैं। लूट की 955 और डकैती की 112 घटनाएं भी सामने आई हैं। ये घटनाएं सभ्य समाज के लिए ङ्क्षचता का विषय हैं। यह रिपोर्ट कोरोना काल की है, जिस पर सभी राज्यों के बाल संरक्षण आयोग गंभीर हैं, सभी अपने स्तर पर कुछ न कुछ करने की रणनीति बना रहे हैं। हाल के वर्षों में आपराधिक वारदातों में बच्चों की संलिप्तता का ट्रैंड तेजी से बढ़ा है। सरकार का एक प्रयास है शायद ‘बाल मित्र थानों’ के जरिए इस अपराध को थामा जा सके। थानों में महिला-पुरुष कांस्टेबल सभी सादे कपड़ों में रहा करेंगे। थानों में जब आपराधिक प्रवृत्ति से जुड़े बच्चों के केस आएंगे तो किशोरों को डराने की बजाय अपराध से दूर रखने की कवायद होगी। 

प्रत्येक बाल मित्र थाने में आपराधिक बच्चों की काऊंसलिंग की भी व्यवस्था का प्रबंध रहेगा। थानों में खिलौने से लेकर पढऩे वाली ज्ञानवर्धक पुस्तकें भी होंगी और पुलिसकर्मियों के अलावा बाल कल्याण समिति के लोग भी बच्चों से मिलते रहेंगे। बाल अपराधों की रफ्तार को रोकने के लिए कुछ इसी तरह लीक से हटकर कुछ अलग करना ही होगा, तभी कुछ हो सकेगा वरना स्थितियां खराब होती चली जाएंगी। किशोर अपराधों की संख्या का बढऩा न सिर्फ चिंतित करता है, बल्कि सोचने पर भी मजबूर करता है कि युवा किन रास्तों पर चल पड़े हैं। 

बढ़ती बाल अपराध की घटनाएं हम से ही बारम्बार सवाल करती हैं कि क्या इन घटनाओं के लिए वास्तव में कच्ची मिट्टी जैसे मन वाले नौनिहाल ही जिम्मेदार हैं या कहीं न कहीं हमारे लालन-पालन व सामाजिक माहौल में व्याप्त कमियां हैं? बाल अपराधों को रोकने के लिए अभी तक सरकारी स्तर पर जितने भी प्रयास किए गए वे उतने सफल नहीं हुए, इसलिए नौनिहालों से जुड़े मसलों के निस्तारण के लिए ‘बाल मित्र थाने’ समय की दरकार हैं। 

अक्सर देखने में आता है कि आपराधिक प्रवृत्ति वाले बच्चों से विनम्रतापूर्वक व्यवहार नहीं किया जाता, उनके साथ थानों में पुलिसकर्मी वयस्कों जैसा बर्ताव करते हैं जिससे बच्चे सुधरने की बजाय और बिगड़ जाते हैं। बच्चों को हथकड़ी लगाने का प्रावधान नहीं है, फिर भी पुलिसकर्मी लगाते हैं। किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम-2000 के मुताबिक एक किशोर यदि किसी भी आपराधिक गतिविधि में शामिल है तो कानूनी सुनवाई और सजा के लिए उसके साथ एक वयस्क की तरह व्यवहार नहीं किया जाएगा। 

हिंदुस्तान में बीते तीन वर्षों में किशोरों के खिलाफ 4,18,385 अपराध दर्ज हुए जिनमें पॉक्सो-एक्ट के तहत करीब 1,34,383 मामले दर्ज किए गए। ये सभी आंकड़े सोचने पर मजबूर करते हैं। इन घटनाओं को तत्काल प्रभार से कम करने के लिए समूचे देश को सोचना होगा। यह जिम्मेदारी सिर्फ हुकूमतों की ही नहीं, हम सभी की है। सामूहिक प्रयासों से ही बच्चों का सर्वांगीण विकास होगा और उन्हें सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण में दोबारा से लौटाना होगा।-डा. रमेश ठाकुर
 

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