सीट शेयरिंग में घाटे का सौदा करने को मजबूर कांग्रेस

Edited By Updated: 29 Feb, 2024 05:51 AM

congress forced to deal with loss in seat sharing

कभी देश में एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस क्षेत्रीय दलों से लोकसभा चुनाव की सीटों को लेकर घाटे का सौदा करने को मजबूर हो गई है। कांग्रेस की यह हालत पिछले लोकसभा चुनाव में और हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त खाने के बाद हुई है।

कभी देश में एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस क्षेत्रीय दलों से लोकसभा चुनाव की सीटों को लेकर घाटे का सौदा करने को मजबूर हो गई है। कांग्रेस की यह हालत पिछले लोकसभा चुनाव में और हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त खाने के बाद हुई है। कमजोर होती कांग्रेस से रिक्त हुआ राजनीतिक स्थान क्षेत्रीय दल ले रहे हैं। कांग्रेस की स्थिति यह हो गई है कि यदि राजनीति में टिकना है तो क्षेत्रीय दलों के सामने झुकना होगा। कांग्रेस क्षेत्रीय दलों से गठबंधन करके करीब 70 सीटों की कुर्बानी दे चुकी है। इन सीटों पर पिछली बार कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था। 

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 421 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इनमें से कांग्रेस मात्र 52 सीटें ही जीतने में कामयाब हो सकी। जिस तरह कांग्रेस क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन कर रही है, उससे आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सबसे बड़े दल के तौर पर उभर कर आने पर ब्रेक लग सकता है। ऐसी हालत में केंद्र में यदि गैर-भाजपा गठबंधन बहुमत में आता भी है तो कांग्रेस के लिए कप्तान की भूमिका निभा पाना मुश्किल होगा। हालांकि विगत विधानसभा चुनाव को यदि लोकसभा चुनाव की भविष्यवाणी मानें तो विपक्षी गठबंधन की केंद्र में सरकार बनने की संभावना क्षीण है। 

लोकसभा चुनाव 2024 के लिए कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच दिल्ली के अलावा हरियाणा, गुजरात, गोवा और चंडीगढ़ में भी गठबंधन हुआ है। आम आदमी पार्टी 46 में से 7 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। गोवा और चंडीगढ़ के लिए भी अरविंद केजरीवाल ने अपने उम्मीदवार को चुनाव लड़ाने की तैयारी की थी, लेकिन गठबंधन के बाद उन्होंने अपना फैसला बदल दिया। गोवा में एक सीट पर उम्मीदवार का ऐलान करने के बाद आम आदमी पार्टी ने दोनों सीटें कांग्रेस को दी हैं। दिल्ली में भी पहले आम आदमी पार्टी ने 6 सीटों पर चुनाव लडऩे की बात कही थी, लेकिन बाद में 4 सीटों पर ही समझौता कर लिया। दिल्ली में कांग्रेस को आम आदमी पार्टी से 3 सीटों पर चुनाव लडऩे की सहमति पर समझौता करना पड़ा। 

अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी 7 में से 4 सीटों - पश्चिमी दिल्ली, दक्षिणी दिल्ली, पूर्वी दिल्ली और नई दिल्ली-पर चुनाव लड़ेगी। शेष 3- उत्तर पूर्वी दिल्ली, उत्तर पश्चिम दिल्ली और चांदनी चौक संसदीय सीट से कांग्रेस चुनाव लड़ेगी। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने दिल्ली की सभी 7 सीटों पर जीत दर्ज की थी। लगातार 2 बार लोकसभा चुनाव में ‘आप’ और ‘कांग्रेस’ के प्रत्याशी एक भी सीट पर जीत दर्ज करने में कामयाब नहीं हुए। 

गुजरात में 26 में से 2 सीटें अनुसूचित जाति और 4 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। आम आदमी पार्टी 2 और कांग्रेस 24 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। कांग्रेस की कमजोर राजनीतिक हालत का फायदा उठाने से गठबंधन का कोई भी दल नहीं चूक रहा है। हर दल जितना हो सके कांग्रेस की बांह  मरोड़ने में जुटा हुआ है। समाजवादी पार्टी के तीखे तेवर दिखाने के बाद कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा घाटा हुआ है। कांग्रेस अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी से डील कर चुकी है। पार्टी उत्तर प्रदेश में 17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जो लोकसभा में सबसे ज्यादा सांसद भेजता है। महाराष्ट्र में कांग्रेस और शिवसेना (यू.बी.टी.) के बीच 8 सीटों पर अभी तक फैसला नहीं हो सका है, जिसके बीच गतिरोध बना हुआ है। 

पश्चिम बंगाल भी कांग्रेस के लिए चुनौती बना हुआ है। तृणमूल सभी 42 सीटों पर चुनाव लडऩे की घोषणा कर चुकी है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले ही कह चुकी हैं कि कांग्रेस को अपने प्रभाव क्षेत्र वाले राज्यों से चुनाव लडऩा चाहिए। क्षेत्रीय दलों वाले राज्यों में कांग्रेस के लिए कोई स्थान नहीं है। ममता के इन तेवरों से जाहिर है कि अलबत्ता तो पश्चिमी बंगाल में तृणमूल से कोई सीट शेयरिंग नहीं होगी। यदि होती भी है तो कांग्रेस दहाई का आंकड़ा पार नहीं कर सकेगी। तृणमूल कांग्रेस को 2 से अधिक सीटें देने के लिए तैयार नहीं है, जो पूर्वी राज्य में कम से कम 5 सीटें मांग रही है। हालांकि तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी ने अपना रुख रख दिया है और स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। संभावित सौदे को मधुर बनाने के लिए कांग्रेस कथित तौर पर असम में तृणमूल को दो और मेघालय में एक सीट देने को तैयार थी। 

इंडिया ब्लॉक, जिसे पिछले साल भाजपा से मुकाबला करने के लिए स्थापित किया गया था, पहले ही 2 प्रमुख सदस्यों को खो चुका है। नीतीश कुमार की जनता दल-यूनाइटेड और जयंत चौधरी की राष्ट्र लोक दल ने भाजपा के साथ गठबंधन कर लिया है। ऐसे में कांग्रेस के पास बिहार में सिर्फ लालू यादव की पार्टी राजद से समझौता करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। यदि कांग्रेस राष्ट्रीय जनता दल से समझौता करती है तो भाजपा को दोगुनी ताकत से कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर प्रहार करने का मौका मिल जाएगा। 

विगत चुनावों में भाजपा से शिकस्त खाने के बाद कमजोर हुई कांग्रेस की हालत को बिखरते इंडिया गठबंधन ने तगड़े झटके दिए हैं। जिस तरह से कांग्रेस की हालत हो गई है, उस हिसाब से सीटों के समझौतों में गठबंधन कम मजबूरी अधिक झलक रही है। यह निश्चित है कि केंद्र और राज्यों की सत्ता से धकेली जा रही कांग्रेस जब तक नीतियां स्पष्ट नहीं करेगी तब तक न सिर्फ भाजपा बल्कि इंडिया गठबंधन के दल भी उसे हाशिए पर धकेलने के लिए मजबूर करते रहेंगे।-योगेन्द्र योगी
    

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