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जड़ों से जुड़ाव कलियुग की सभी समस्याओं का समाधान

Edited By ,Updated: 05 Mar, 2025 06:36 AM

connecting with the roots is the solution to all the problems of kali yuga

13 जनवरी, 2025 से उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में इस बार के महाकुम्भ ने नक्षत्रों की दशा के अनुसार 144 वर्ष बाद भारत की धार्मिक जनता को संगम में स्नान करने के बहाने समूचे भारत की धार्मिक, आध्यात्मिक, सामाजिक परम्पराओं और साधुओं-सन्तों की तपस्याओं की...

13 जनवरी, 2025 से उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में इस बार के महाकुम्भ ने नक्षत्रों की दशा के अनुसार 144 वर्ष बाद भारत की धार्मिक जनता को संगम में स्नान करने के बहाने समूचे भारत की धार्मिक, आध्यात्मिक, सामाजिक परम्पराओं और साधुओं-सन्तों की तपस्याओं की साक्षात अनुभूति प्राप्त करने का अवसर दिया। 

समूचा विश्व आश्चर्य से देख रहा है कि किस प्रकार एक सीमित स्थान पर करोड़ों लोग अपनी सनातन संस्कृति के भिन्न-भिन्न रूपों के साथ समागम करते हैं। इतने विशाल समागम को लगातार लगभग 45 दिन संचालित करना प्रशासनिक दृष्टि से भी कोई सरल कार्य नहीं था, परन्तु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के स्वयं संस्कारित जड़ों से जुड़ाव के कारण ही यह विशाल प्रशासनिक कार्य सम्भव हो पाया। हाल ही में मुझे पण्डित मदन मोहन मालवीय जी के जयन्ती समारोह में उन्हीं के एक शिष्य तपोनिष्ठ श्री गणेश जी के द्वारा हरिद्वार में स्थापित सप्त ऋषि आश्रम में जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस आश्रम में मैंने एक प्राचीन वृक्ष के दर्शन किए, जो धरती से लगभग एक फुट ऊपर से गिर चुका है, परन्तु उसके दूसरे छोर पर हरे-हरे पत्तों की कई शाखाएं थीं। इस दृश्य को देखकर मेरे मन में यह निश्चित सिद्धान्त स्मरण में आया कि टूटने के बावजूद भी यदि कोई वृक्ष अपनी जड़ से जुड़ा रहता है तो वह टेढ़ी-मढ़ी अवस्था में हरा-भरा और फलदार बना रह सकता है।

परमात्मा के द्वारा मनुष्य की उत्पत्ति से पहले ही सारी सृष्टि का निर्माण कर दिया गया था। इस सृष्टि में एक तरफ जीव-जन्तु तथा पक्षी आदि थे, तो दूसरी तरफ अनेकों प्रकार के वृक्ष, वनस्पतियां आदि थीं। इन सभी जीवों और वृक्ष-वनस्पतियों को अलग-अलग प्रकृति के अनुसार निर्धारित नियमों के अन्तर्गत उत्पन्न करके पालन-पोषण तक की व्यवस्था की गई। प्रकृति कहते ही इसी को हैं, जो अपने निर्धारित नियमों के अनुसार संचालित होती है। सृष्टि की रचना के बाद मानव की उत्पत्ति करके उसे एक स्वतन्त्र बुद्धि दी गई। मनुष्य का यह कत्र्तव्य था कि वह स्वयं परमात्मा के साथ जुड़ा रह कर इस प्रकृति का अपने पालन-पोषण के लिए लाभ प्राप्त करता। इस वैदिक दर्शन को ही वैदिक विवेक कहा जाता है कि हम सृष्टि से उतना ही प्राप्त करें, जितने हमारे पालन-पोषण के लिए आवश्यक हो। इससे अधिक संग्रहण का हमारे जीवन में लेश मात्र भी महत्व नहीं है क्योंकि मृत्यु के समय हमारे द्वारा संग्रहीत किया गया एक कण भी हमारे साथ नहीं जा सकता।

सभी मनुष्यों को यह सिद्धान्त आवश्यक रूप से स्मरण रहना चाहिए कि यदि हम अपनी जड़ों के साथ जुड़े रहेंगे तो हमारे जीवन में कष्टों, विवादों और विनाश की सम्भावना बहुत कम हो जाएगी। सांकेतिक रूप से अग्नि में समिधा और सामग्री के साथ घी की आहुतियां देना यज्ञ कहलाता है। इस प्रक्रिया में भी अक्सर मन्त्रों के साथ ‘इदम् न मम्’ का उच्चारण किया जाता है। इसका अर्थ यह है कि हवन में चढ़ाए गए पदार्थ मेरे नहीं हैं। यह सभी पदार्थ अग्नि अर्थात भगवान के ऊर्जा रूप से प्राप्त हुए हैं।यहां तक कि हमारा आहार और समूचा जीवन भी भगवान से प्रतिक्षण मिलने वाली ऊर्जा से चलता है। इस जीवन में हमारा अपना तो कुछ भी नहीं है।

वास्तव में हमारा व्यक्तिगत अस्तित्व भी मूलत: भगवान की ही देन है। सामाजिक रूप से यज्ञ का यही अर्थ निकलेगा कि हमें केवल अपने लिए ही नहीं, अपितु दूसरों के लिए भी जीना है। यज्ञ का अर्थ है त्याग, परोपकार, बांट कर खाना, दान की प्रवृत्ति, सबकी सहायता के लिए तत्पर रहना, सबके लाभ और कल्याण के लिए कार्य करना, सब पर दया करना और सबसे प्रेम करना। इस वैदिक संस्कृति को ही सम्पूर्ण गीता का सिद्धान्त माना जाता है, जो हमें प्रेरणा देती है कि हम बिना किसी प्रतिफल और कामना के सबके प्रति समॢपत भाव से सेवा में जीवन बिताएं। प्रत्येक कर्म का प्रतिफल तो प्राकृतिक रूप से परमात्मा का ऊर्जा रूप स्वयं ही निर्धारित करता है और प्रत्येक व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार सुख अथवा दुख के रूप में प्राप्त होता है। हमारे गुरुओं का संदेश था- ‘नाम जपो, किरत करो, वंड के छको’। अगर आज भी सारा समाज इस संदेश को अपना ले तो हम सब और पूरा देश समृद्धि की तरफ बढऩे लगेंगे।

सरकारों के संचालन के लिए राजनेताओं की होड़ सारे भ्रष्टाचार की जननी बनती जा रही है। यह भ्रष्टाचार कार्यपालिका और न्यायपालिका को भी अपने दायरे में समेट लेता है। किन्तु समाज की इस व्यापक दुर्दशा के बावजूद कुछ गिने-चुने लोग जीवन को यज्ञ की संस्कृति से जोड़ कर यह सिद्ध करने में सफल हो जाते हैं कि वे आज भी वैदिक जड़ों से जुड़े हुए हैं और हमें अपनी जड़ों से जुडऩे के लिए प्रेरित करते हैं। राजनीतिक दलों, सामाजिक और धार्मिक संस्थानों की जड़ें उनके संस्थापकों के विचारों और सिद्धान्तों में जुड़ी होती हैं, जैसे भाजपा की जड़ें आर.एस.एस. के मिशन में स्थापित हैं, जिनसे आज तक भाजपा लगातार जुड़ कर ही चल रही है। कांग्रेस की जड़ें स्वतन्त्रता आन्दोलन से जुड़ी थीं, परन्तु कांग्रेस आज अपनी उन जड़ों को भूल चुकी है। मेरा देशवासियों से निवेदन है कि सम्पूर्ण मानव जाति की जड़ें वैदिक यज्ञ संस्कृति से जुड़ी हुई हैं, परन्तु जहां-जहां समाज इस वैदिक संस्कृति से कटा हुआ दिखाई देता है, वहां शान्ति की कल्पना करना व्यर्थ है। सुख, शान्ति, प्रेम, सद्भाव और समृद्धि के लिए आवश्यक है कि मनुष्य अपनी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जड़ों को यज्ञ संस्कृति में ढूंढने की कोशिश करे और उनके साथ जुड़े। जड़ों से जुड़ाव ही कलियुग की सारी समस्याओं का समाधान दे सकता है।-अविनाश राय खन्ना(पूर्व सांसद)

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