कोविड एक ‘संघर्ष’ है न कि एक छोटी ‘हिंसा’

Edited By ,Updated: 10 Aug, 2020 05:10 AM

covid is a struggle and not a small violence

कोविड 19 के खिलाफ महाभारत का युद्ध हारा जा चुका है। भारत ने इस सप्ताह बहुत ज्यादा केस रजिस्टर्ड किए हैं जो करीब 3 लाख हैं। अमरीका जैसे किसी अन्य देश के मुकाबले ये मामले ज्यादा हैं। प्रतिदिन 60,000 केस पाए जा रहे हैं और इन पर अंकुश नहीं लगाया जा रहा...

कोविड 19 के खिलाफ महाभारत का युद्ध हारा जा चुका है। भारत ने इस सप्ताह बहुत ज्यादा केस रजिस्टर्ड किए हैं जो करीब 3 लाख हैं। अमरीका जैसे किसी अन्य देश के मुकाबले ये मामले ज्यादा हैं। प्रतिदिन 60,000 केस पाए जा रहे हैं और इन पर अंकुश नहीं लगाया जा रहा है। कोविड-19 के केस इसी तरह चलते रहे तो इनकी गिनती एक दिन में एक लाख हो जाएगी। भारत में ऐसे कुछ स्थान हैं जहां पर कोविड के मामलों में गिरावट आई है, वहीं कुछ ऐसे शहर भी हैं जहां पर संक्रमण का स्तर इतना व्यापक है कि आधे से ज्यादा शहर इसकी गिरफ्त में हैं। कोविड के फैलाव को रोक पाना मुश्किल है। 

पाठकों के लिए यह दिलचस्प बात है कि भारत एकमात्र ऐसा राष्ट्र है जहां पर इस महामारी में बढ़ौतरी निरंतर देखी जा रही है। मार्च से लेकर आज तक हमारा ग्राफ ऊपर चढ़ता दिखाई दे रहा है। दूसरे राष्ट्रों में ऐसा नहीं हुआ। यूरोप ने मार्च में कोविड मामलों में एक ऊंचाई देखी। उसके बाद इटली, स्पेन, यू.के. तथा अन्य देशों ने इस ऊंचाई के बाद ढलान को देखा। अप्रैल में अमरीका में यह बीमारी अपनी चरम सीमा पर थी। उसके बाद अमरीका के अन्य हिस्सों में यह वृद्धि जारी है। 

जून में बंगलादेश ने ऊंचाई के स्तर को देखा और उसके बाद यह ढलान पर है। भारत की तुलना में पाकिस्तान के केस आधे हैं मगर वहां पर जून में मामलों में वृद्धि देखी गई और फिर उसके बाद कमी शुरू हुई। वहां पर एक दिन में एक हजार से भी कम केस हैं। महामारी पर श्रीलंका का पूर्ण नियंत्रण है। श्रीलंका में मात्र 300 मामले हैं। मार्च में पहला मामला आने के बाद मृतकों की संख्या केवल 11 है। 

हालांकि शुरू-शुरू में पुलिस इस महामारी को रोकने के लिए बेहद उत्साहित थी। मगर धीरे-धीरे वह देश में महामारी को लेकर अपनी दिलचस्पी खो चुकी है। सवाल यह नहीं कि क्या हमने कोविड महाभारत की जंग को खो दिया है क्योंकि हमारे पास गिनती स्पष्ट है। इसका मुख्य कारण महामारी से निपटने के लिए किसी रणनीति की कमी है। पहला लॉकडाऊन करना सबसे बड़ी भूल थी। मोदी को देश को कहना चाहिए था कि यह सबसे ज्यादा संक्रमण वाली महामारी है जिसमें मृत्यु दर बेहद कम है तो लोग ज्यादा सतर्क रहते और अपने चेहरों को न छूते, अपने हाथों को निरंतर धोते तथा अपने आपको बचाने के लिए मास्क पहनते। वह अपने कामों तथा व्यवसायों पर जा सकते थे। 

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी स्टडी का कहना है कि 3 सप्ताह का सख्त लॉकडाऊन विश्व में सबसे कठोर था। भारत में मॉरीशस, न्यूजीलैंड तथा दक्षिण अफ्रीका के साथ लॉकडाऊन  की रेटिंग को 100 प्रतिशत माना गया है। मतलब किसी भी व्यक्ति को कोई आजादी नहीं थी। न्यूजीलैंड में मार्च के माह में महामारी चरम सीमा पर थी। अप्रैल में मॉरीशस में तथा जुलाई में दक्षिण अफ्रीका में महामारी अपने उच्चतम स्तर पर थी। इसने अर्थव्यवस्था को निगल लिया। अपने जीवन में हमने ऐसे दिन कभी नहीं देखे जैसा कि हम इस समय झेल रहे हैं। यह मंदी का दौर है और इस शब्द से भारतीय लोग परिचित नहीं थे। लॉकडाऊन के कुप्रबंधन ने भारत को असली कीमत चुकाने पर मजबूर किया और इसका भुगतान अभी भी चुकता किया जा रहा है। 

सच्चाई यह है कि मोदी बड़ी घोषणाएं करते हैं। वह पर्दे पर बने रहना चाहते हैं। कोविड एक संघर्ष है न कि एक छोटी हिंसा। यह महाभारत की तरह 18 दिनों तक चलने वाला युद्ध नहीं था। इसके लिए बड़ा ध्यान और संयम की जरूरत है। दूसरे राष्ट्र यह जानते हैं और उनके नेताओं ने उसी तरीके से इसको निपटा। मोदी के स्टाइल ने हमें 20 लाख मामलों के साथ छोड़ा है और 10,000 से ज्यादा मृत्यु हमने देखी है। कौन जानता है कि और कितना झेलना पड़ेगा।-आकार पटेल

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