कर्ज माफी का मायाजाल

Edited By ,Updated: 07 Apr, 2017 09:26 PM

debt forgiveness

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ताजा फैसले से कई राज्यों की सरकारें ....

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ताजा फैसले से कई राज्यों की सरकारें थर-थर कांप रही हैं। योगी जी ने किसानों का कर्ज माफ करने की घोषणा क्या कर दी, दूसरी राज्य सरकारों की नींद गायब हो गई है। इनमें पंजाब की कांग्रेस सरकार और महाराष्ट्र की भाजपा-शिवसेना सरकार भी शामिल है। हरियाणा की भाजपा सरकार ने तो आनन-फानन में कर्ज माफी की घोषणा भी कर दी।

किसानों के कर्ज माफी की लोकलुभावन घोषणा नई नहीं है, लेकिन अथाह कर्ज में डूबी राज्य सरकारों के लिए यह काम आसान भी नहीं है.. मद्रस हाईकोर्ट के एक फैसले ने कर्ज माफी स्कीम में एक नया आयाम भी जोड़ दिया है। मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को आदेश दिया है कि वह सभी किसानों का कर्ज माफ करे। पिछले साल तमिलनाडु सरकार ने छोटे और मध्यम किसानों का कर्ज माफकर दिया था। इसके खिलाफ कुछ किसानों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

फैसला अब आया है, जिसमें कोर्ट ने कहा है कि छोटे और मझोले किसानों का वर्गीकरण सही नहीं है इसलिए सभी किसानों के कर्ज माफ किए जाएं। मद्रस हाईकोर्ट का यह फैसला पूरे देश के लिए नजीर बन सकता है और 5 एकड़ से ज्यादा जमीन वाले किसानों का कर्ज माफ करने की मांग पूरे देश में उठ सकती है। जुलाई, 2016 के तमिलनाडु सरकार के फैसले से 5780 करोड़ का बोझ सरकार पर आया था। अब कोर्ट के फैसले से सरकार को 1980 करोड़ और ढीले करने पड़ेंगे। यूपी सरकार ने 36,359 करोड़ का कर्ज माफ करने की घोषणा की है।

योगी जी ने इसकी भरपाई का फौरी तरीका भी निकाल लिया है। सरकार 'किसान राहत बोर्ड जारी करके 30729 करोड़ रुपए बाजार से इकट्ठा करेगी। यानी प्रदेश की जनता पर कर्ज का एक और बोझ। बहरहाल, यूपी का यह फैसला कोई नया नहीं है। 2009 में कांग्रेस की नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने देश भर में किसानों का 52000 करोड़ का कर्ज माफकर दिया था। रिजर्व बैंक और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया सहित सभी बैंकों का तर्क है कि कर्ज माफी से बैंकों के कर्जों की वसूली पर बुरा असर पड़ता है और कर्ज वसूली एक तरह से ठप पड़ जाती है। बैंकों का यह तर्क कितना तर्कसंगत है इसकी चर्चा बाद में।

पहले तो यह समझना जरूरी है कि बार-बार किसानों का कर्ज माफ करने की जरूरत क्यों पड़ती है? इसमें कोई दोराय नहीं है कि करीब 100 वर्षों से ज्यादा समय से किसानी फायदे का धंधा नहीं रह गया है। खेत के रकबे छोटे होते जा रहे हैं। 50 साल पहले जो परिवार बड़े किसानों में शुमार होते थे, वही परिवार आज खेतों के बंटवारों के कारण छोटे और मध्यम किसान बन गए हैं। ऊपर से खेती के लिए जो संसाधन चाहिए उनकी लगातार कमी होती जा रही है। पूरे देश में पानी का स्तर इतना नीचे जा चुका है कि अब ट्यूबेल भी फेल हो रहे हैं। पहले जिन इलाकों में कुआं और पोखर से सिंचाई हो जाती थी, वहां भी अब नहरों की जरूरत है।

नहरों का जाल फैलाने और बरसात के पानी को इकट्ठा करने के भारी लागत वाले काम आजादी के बाद किसी भी सरकर की प्राथमिकता में नहीं रहे हैं। जैविक खाद्य और पारंपरिक बीज पर निर्भर किसानों को रासायनिक खाद्य और संकर बीज का आदी बना दिया गया। ज्यादा फसल के लालच में किसान नई खेती के रास्ते पर चल पड़ा, लेकिन खाद्य बीज की बढ़ती कीमतों पर कोई लगाम नहीं रहा। देश में अनाज की कमी खत्म हो गई लेकिन किसान को आज अनाज का उचित या लाभप्रद भाव मिलना मुश्किल हो गया है। खेती की उपज का ज्यादातर लाभ बिचौलियों को जाता है, यह बात बार-बार साबित हो चुकी है। शायद यही कारण है कि विदेशी और देसी कंपनियां परचून की दुकान खोलने में खूब दिलचस्पी ले रही हैं।

किसान कर्ज मेंं डूबे रहते हैं और निराशा उन्हें आत्महत्या की ओर ले जाते हैं। किसानों की आत्महत्या पर उठने वाले सवालों से बचने के लिए सरकारों ने आसान रास्ता खोज लिया है। समय-समय पर कर्ज माफी, लेकिन यह समस्या का स्थायी हल नहीं है। 2009 में 54000 करोड़ की कर्ज माफी से किसान की समस्या खत्म नहीं हुई। कर्ज का बोझ फिर चढ़ा और अलग-अलग राज्य सरकारें समय-समय पर कर्ज माफी की घोषणा करती रहती हंै। 2009 में कर्ज माफी की घोषणा के बाद हुए आम चुनाव में कांग्रेस को भारी सफलता मिली।

अब हर विधानसभा के चुनावी साल में कर्ज माफी की घोषणा होती रहती है। महाराष्ट्र सरकार ने कर्ज माफी की जगह किसानों की आमदनी बढ़ाने के कुछ दूसरे उपायों की शुरुआत की है, लेकिन यूपी की देखा-देखी बनने वाले दबाव से ज्यादा समय तक बचना मुश्किल लगता है। एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि किसान जितना कर्ज बैंकों से लेता है, उससे कहीं ज्यादा स्थानीय साहूकारों से लेता है। देश में सिर्फ लघु किसान ही नहीं हैं, लघुतम किसान की फौज भी खड़ी हो गई है, जिनकी पहुंच बैंकों या सरकारी समितियों तक नहीं है। खेती पर निर्भर रहने वालों में किसान ही नहीं खेत मजदूर भी हैं, जिनकी संख्या किसानों से कई गुना ज्यादा है।

कर्ज माफी से उनको भी कोई लाभ नहीं मिलता है। अब ऐसी योजनाएं सामने आनी चाहिए, जिसमें किसान की आमदनी बढ़े। खेत की ऊपज का लाभ बिचौलियों के पास नहीं, बल्कि किसानों तक पहुंचे। पिछले कुछ वर्षों में जब प्याज और दालों की कीमत आसमान पर पहुंच गई थी, तब भी किसान को उसका फायदा नहीं मिला। सब्सिडी के जरिये सरकारों ने उपभोक्ता खासकर शहरी उपभोक्ता को थोड़ी-बहुत राहत दे भी दी तो भी किसान की तिजोरी खाली रह गई। उत्तर प्रदेश ने पहल की है, हाईकोर्ट ने तमिलनाडु के किसानों को राहत दे दी है, तो अब पंजाब, महाराष्ट्र व दूसरे राज्यों की सरकारों को भी कर्ज माफी के अलावा कोई और विकल्प चुनने का रास्ता बंद होता दिखाई दे रहा है।

उत्तर प्रदेश में कर्ज माफी से 2 करोड़ 15 लाख किसानों को फायदा होगा। प्रदेश की इतनी बड़ी किसान और खेत मजदूर आबादी में यह संख्या छोटी ही है। चलते-चलते कर्ज माफी योजनाओं पर बैंकों के एतराज की बात। बैंकों का 1 लाख, 73 हजार, 8 सौ करोड़ उद्योगों पर बकाया। यह पैसा एक तरह से डूब चुका है। एक बैंक से उधार लेकर दूसरे बैंक का थोड़ा बहुत कर्ज उतार कर और कर्ज लेने का हुनर भारत के उद्योगपतियों को अच्छी तरह आता है। किसानों का माफ किया जाने वाला कर्ज इसके मुकाबले कुछ भी नहीं है। बैंक उसे कहते हैं एनपीए यानी नॉन परफॉर्मिंग एसेट तो उद्योग में डूबा पैसा एनपीए और किसान को दिया जाने वाला पैसा कर्ज। बैंकों को इस मानसिकता से निकलना होगा। 

 

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