यूं सुधरेगी दिल्ली-एन.सी.आर. की आबो-हवा

Edited By Pardeep,Updated: 08 Dec, 2018 05:26 AM

delhi ncr will improve that air

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एन.सी.आर.) में हाल के दिनों में वायु प्रदूषण के स्तरों में कुछ सुधार हुआ है तथा 2016 के मुकाबले इस वर्ष अक्तूबर-नवम्बर में ‘कठिन दिनों’ की संख्या कम थी। यद्यपि गुणवत्ता सूचकांक ‘बहुत घटिया’ परिधि में रहा।  एन.सी.आर. तथा...

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एन.सी.आर.) में हाल के दिनों में वायु प्रदूषण के स्तरों में कुछ सुधार हुआ है तथा 2016 के मुकाबले इस वर्ष अक्तूबर-नवम्बर में ‘कठिन दिनों’ की संख्या कम थी। यद्यपि गुणवत्ता सूचकांक ‘बहुत घटिया’ परिधि में रहा।  एन.सी.आर. तथा इसके आगे के क्षेत्रों में पर्यावरण से बेहतर तरीके के साथ निपटने तथा उसका प्रबंधन करने के लिए आपूर्ति तथा मांग दोनों पक्षों के लिहाज से एक समग्र नीति डिजाइन की जरूरत है। 

अत्यधिक कृषि वाले साथ लगते क्षेत्रों में फसलों की पराली जलाने पर ध्यान दें। विशेषज्ञ अध्ययन सुझाव देते हैं कि जब एन.सी.आर. की वायु में पार्टिकुलेट मैटर की बात आती है तो बायोमास-बॄनग इसमें बहुत कम योगदान देती है, लोअर सिंगल डिजिट से भी कम। मगर सॢदयों के दिनों में हानिकारक उत्सर्जन इसमें लगभग एक-तिहाई योगदान डाल सकते हैं। प्रदूषण के स्तरों को नियंत्रित करने के लिए अच्छी तरह से सोची-विचारी एक रणनीति की जरूरत है। 

हाल ही में पराली को जलाने पर रोक लगाने के लिए किए गए उपायों को एक सीमित सफलता मिली है। इसके लिए सब्सीडाइज्ड कीमतों पर कृषि मशीनरी की आपूर्ति करने की जरूरत है जैसे कि श्रब कटर्स, रोटावेटर्स तथा मङ्क्षल्चग हार्डवेयर ताकि पराली जलाने को अनावश्यक बनाया जा सके, विशेषकर अधिक पैदावार वाले क्षेत्रों में। मगर इसके साथ ही बायो-रिफाइनरीज जैसे उद्योगों के लिए पराली की मांग को बढ़ाया जाना चाहिए। सैल्युलोसिक पौधों की पराली को बायो-रिफाइन करके एथनोल में बदला जा सकता है जिसे फिर आटोमोटिव ईंधनों में मिलाया जाता है। योजना इस तरह की होनी चाहिए कि छोटे किसानों को भी अपनी पराली बायो-रिफाइनरीज तथा थर्मल स्टेशनों तक पहुंचाने के लिए प्रोत्साहन राशि दी जाए, जिससे पराली जलाने की समस्या को शुरू में ही समाप्त किया जा सके। 

परिवहन क्षेत्र का प्रदूषण में योगदान
आंकड़े दर्शाते हैं कि एन.सी.आर. के वायु प्रदूषण में परिवहन क्षेत्र एक-तिहाई योगदान डालता है। दिल्ली में वाहनों से यातायात के कारण उत्पन्न प्रदूषण तीन बड़े महानगरों के कुल प्रदूषण से भी अधिक है। ट्रकों के प्रवेश जैसे आपातकालीन उपाय कुछ दिनों के लिए लागू किए जा सकते हैं लेकिन हमें प्रदूषण में प्रभावी कमी लाने के लिए कई तरह के मध्यकालिक उपायों की जरूरत है। एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में बसों की फ्लीट में बढ़ौतरी की योजना है। सार्वजनिक परिवहन पर इस मामले में नीतिगत ध्यान देने की जरूरत है। इसके लिए विद्युत चालित वाहनों का विकल्प एक सही सोच है। मगर इसके साथ ही हमें कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए एन.सी.आर. में सौर ऊर्जा चालित चार्जरों का नैटवर्क बिछाने की भी जरूरत है। 

ई-वाहनों के लिए ऊर्जा की मांग बहुत अधिक होगी-एक अध्ययन के अनुसार एक दशक के दौरान 100 गीगावॉट की जरूरत होगी। हमें और अधिक सौर क्षमता की जरूरत होगी जैसे कि 750 मैगावॉट रेवा अल्ट्रा मैगा सोलर पार्क जो पहले ही दिल्ली मैट्रो को ऊर्जा की आपूर्ति कर रहा है। एक अन्य रास्ता ई-बसों तथा अन्य ई-वाहनों के लिए सौर ऊर्जा वाले चार्जरों का है ताकि एन.सी.आर. तथा साथ लगते क्षेत्रों में पारम्परिक ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाया नहीं जाए, जिससे प्रदूषण के स्तरों में और अनावश्यक वृद्धि नहीं होगी। 

दिल्ली सरकार ने एक ई-वाहन नीति का मसौदा तैयार किया है। दिल्ली मैट्रो एक अन्य प्रयास के तहत चुनिंदा मैट्रो स्टेशन पर साइकिल स्टैंड्स बनाने की योजना बना रही है ताकि आसानी से अंतिम एक-आध मील की दूरी तय की जा सके। हालांकि प्रारम्भिक प्रयासों में इसके लिए कोई इच्छुक दिखाई नहीं दिया है। हमें चलते समय टू-व्हीलर्स तथा उनके जैसे अन्य वाहनों को रिचार्ज करने के लिए सोलर रूफटॉप  ऊर्जा की अथाह क्षमता का भी लाभ उठाना चाहिए। यह देखते हुए कि मैट्रो में यात्रा करने वाले अधिकतर यात्री नजदीकी स्टेशनों तक पैदल जाने को अधिमान देते हैं, इसीलिए साइकिल की योजना पर कार्य किया जा रहा है। दिल्ली में सोलर रूफटॉप ऊर्जा पर काम किया जाएगा या नहीं, इस पर ध्यान दिए बिना हमें इलैक्ट्रिक साइकिलों की नीति पर ध्यान देने की जरूरत है। 

भारत जैसे गर्म देश में बिंदू यह है कि सफेद कॉलर कर्मचारी तथा अन्य प्रतिष्ठित लोग पैडल मारते हुए कार्य पर जाना पसंद नहीं करेंगे। मगर वे सम्भवत: पर्यावरणीय कदम उठाते हुए ई-साइकिल्स की सवारी करना पसंद करें। हमारे सामने रास्ता ई-साइकिल की सवारी को प्रोत्साहित करने का है, जिसके साथ ही बाइक शेयरिंग को बढ़ावा देने की भी योजना बनाई जानी चाहिए। इससे मैट्रो, ई-बसों तथा किसी भी अन्य सार्वजनिक परिवहन के लिए अंतिम मील के सम्पर्क को आसान बनाने में मदद मिलेगी। यह पूरी तरह से सम्भव है कि ई-साइकिल्स यहां एक इकलौता शहरी परिवहन विकल्प बन सकते हैं।

सोलर रूफटॉप अथवा सुविधाजनक कालोनी आधारित सौर ऊर्जा चार्जिंग के साथ परिवहन क्षेत्र से होने वाले प्रदूषण के स्तरों को समाप्त करना काफी हद तक सम्भव है। फिर भी कुछ अन्य उपाय जरूरी हैं। एन.सी.आर. में विशेष तौर पर अप्रैल-सितम्बर के दौरान निर्माण गतिविधियों पर ध्यान देने की जरूरत है। पटाखों की मांग तथा आपूर्ति को नियंत्रित किया जाना चाहिए जिस कारण कई हफ्तों तक वायु गुणवत्ता में बहुत अधिक गिरावट आती है।-जयदीप मिश्रा 

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