प्रगतिशील तथा लोकतांत्रिक सोच वाले लोग वामपंथी लहर कमजोर होने से चिंतित

Edited By ,Updated: 21 Mar, 2022 04:51 AM

democratic minded people worried about the weakening of the left wave

प्रगतिशील तथा लोकतांत्रिक सोच वाले लोग देश में वामपंथी लहर के कमजोर होने से चिंतित हैं। वे इस बात से भी काफी दुखी हैं कि कम्युनिस्ट लहर अनेकों धड़ों में बंटी हुई है। पश्चिम बंगाल तथा त्रिपुरा में वामपंथी ताकतों की विधानसभा चुनावों में हुई पराजयों...

प्रगतिशील तथा लोकतांत्रिक सोच वाले लोग देश में वामपंथी लहर के कमजोर होने से चिंतित हैं। वे इस बात से भी काफी दुखी हैं कि कम्युनिस्ट लहर अनेकों धड़ों में बंटी हुई है। पश्चिम बंगाल तथा त्रिपुरा में वामपंथी ताकतों की विधानसभा चुनावों में हुई पराजयों तथा बाकी राज्यों में भी कम्युनिस्ट पार्टियों की कमजोर स्थिति समस्त मेहनतकश लोगों के मनों में लूट रहित समाज के गठन के खूबसूरत सपनों को धुंधला करती है। 

आजादी से पहले तथा 1947 से बाद के 75 वर्षों के दौरान मजदूरों, किसानों, मुलाजिमों, मध्यवर्गीय लोगों, युवाओं, विद्यार्थियों तथा महिलाओं ने अनेकों गौरवपूर्ण संघर्षों का नेतृत्व करने वालों में बहुसंख्या कम्युनिस्टों तथा वामपंथी नेताओं की रही है। मोदी सरकार द्वारा तीन काले कानूनों की वापसी तथा अन्य मांगें पूरी करने के वायदों में विजय हासिल करने वाले किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वाले किसान संगठनों तथा नेताओं में भी बड़ी संख्या वामपंथियों की है। धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र तथा देश की एकता-अखंडता की रक्षा के लिए दी गई कुर्बानियां कम्युनिस्ट पक्षों के लिए विचारात्मक तथा राजनीतिक प्रतिबद्धता का मुद्दा हैं। 

आज जब देश घोर गरीबी, बेरोजगारी, सामाजिक सुरक्षा के अभाव तथा अन्य अनेक मुश्किलों के दौर से गुजर रहा है और जनसंख्या का बड़ा हिस्सा अनपढ़ता, कुपोषण तथा दयनीय हालातों में दिन काट रहा है तो तब वामपंथियों के लिए इन पीड़ित लोगों को संगठित करके उनकी आजादी के लिए संघर्ष तेज करना और भी जरूरी बन गया है। मगर सभी प्रयासों के बावजूद राष्ट्रीय स्तर पर वामशक्तियां सामान्य लोगों के बड़े हिस्सों की विश्वासपात्र नहीं बन सकीं। जन साधारण अभी कम्युनिस्टों तथा अन्य वामपंथियों को सत्ता के योग्य दावेदार नहीं मानते। वैसे वामपंथियों के नेक इरादों बारे शायद ही किसी को कोई संदेह हो। 

पंजाब विधानसभा में एक भी वामपंथी प्रतिनिधि का न पहुंचना अत्यंत चिंताजनक है। अन्य राजनीतिक दलों की जीतें या पराजय, कमियां या गुणों पर ध्यान केंद्रित करने से पहले सभी कम्युनिस्ट पक्षों को खुद अपनी राजनीतिक, विचारधारक तथा संगठनात्मक कमजोरियों पर उंगली रखने की जरूरत है। कम्युनिस्ट मानवता की सेवा के लिए जीवन अर्पण करने के लिए राजनीति में दाखिल हुए थे, न कि अपने निजी या पारिवारिक हितों को बढ़ावा देने वाली मौकाप्रस्त तथा खुदगर्ज राजनीति करने के लिए। 

कम्युनिस्ट पक्षों को पूंजीवाद का खात्मा करके समाजवाद की स्थापना के लिए वैज्ञानिक नजरिए को अपने देश की ठोस हालतों, इतिहास, रस्मो-रिवाज, संस्कृति तथा सामाजिक व्यवस्था के अनुरूप लागू करने की कला में माहिर होने की जरूरत है, जिसे अभी पूरी तरह ग्रहण नहीं किया गया। अपने इतिहास बनाने वाले योद्धाओं तथा सूरमाओं की मिसाली कुर्बानियां, धार्मिक तथा सामाजिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्रों के महान समाज सुधारकों व मार्गदर्शकों की मानववादी शिक्षाओं, जो संघर्षशील लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं, को आम लोगों की चेतनता में वृद्धि के लिए कुशलता से इस्तेमाल नहीं किया गया। यदि कहा जाए कि वामपंथी दलों ने आर्थिक संघर्षों पर जोर देते हुए विचारधारक तथा सांस्कृतिक संघर्ष से पूरी तरह मुंह मोड़ा हुआ है तो यह कोई अतकथनी नहीं होगी। 

विभिन्न धड़ों में बंटी हुई कम्युनिस्ट लहर कई बार सांझीवालता वाला समाज बनाने के निर्धारित अंतिम लक्ष्य की प्राप्ति के अधिकांश आगामी दांव-पेचों बारे मतभेदों में उलझ कर रह जाती है जबकि जरूरत उस बिंदू तक पहुंचने के लिए तात्कालिक मुद्दों बारे सहमत होकर सांझी रणनीति बनाने की है। कोई भी वामपंथी दल या नेता खुद को पूर्ण रूप में सही, भूल रहित तथा सच्चे सिद्धांतकार होने का दावा नहीं कर सकता। हर वामपंथी पार्टी या धड़े के पास अनेकों सही सैद्धांतिक समझदारियां तथा बेशकीमती वास्तविक तजुर्बे वे सभी इकट्ठी बैठ कर संवाद के माध्यम से वास्तविक रूप में एक सर्वसम्मत ठोस अतियोजनाबंदी तथा दांव-पेच घड़ सकते हैं, जिससे इन दलों का आपसी तथा जनसाधारण से नजदीकी संबंध बनने में सहायता मिलेगी।

वामपंथी लहर की कमजोरी कार्पोरेट घरानों, तथा पिछड़े विचारों वाले संगठनों व लोगों के लिए खुशी का सबब है, मगर यह भी हकीकत है कि कम्युनिस्टों की जरूरत उतनी देर तक कायम रहेगी जब तक अमीर-गरीब के बीच अंतर, जात-पात का भेदभाव समाप्त नहीं होता तथा सभी धर्मों तथा जातियों के लोग आपस में भाईचारक एकता मजबूत करके हर रंग के साम्प्रदायिक तत्वों को उनकी औकात नहीं दिखा देते। सौ बातों की एक बात : ‘बराबरी वाला समाज बनाना ही मानव मुक्ति का असल तथा अंतिम मार्ग है’।-मंगत राम पासला

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