लोकतंत्र को धराशायी करने का आपातकाल एकमात्र उदाहरण

Edited By ,Updated: 25 Jun, 2021 05:54 AM

emergency is the only example to destroy democracy

अभिव्यक्ति की आजादी एक बहुचर्चित विषय है और 25 जून का दिन इस बारे ङ्क्षचतन करने का एक महत्वपूर्ण दिन है। 25 जून, 1975 को इस देश में वह सब घटित हुआ,  जिसकी

अभिव्यक्ति की आजादी एक बहुचर्चित विषय है और 25 जून का दिन इस बारे ङ्क्षचतन करने का एक महत्वपूर्ण दिन है। 25 जून, 1975 को इस देश में वह सब घटित हुआ, जिसकी कल्पना करना भी विभत्सकारी है। स्वार्थ के आगे लोकतंत्र को धराशायी करने का आपातकाल एकमात्र उदाहरण है और यह सब अचानक ही नहीं हुआ। व्यक्ति पूजा की कांग्रेस की परिपाटी का ही परिणाम था कि 1974 में इसके तत्कालीन अध्यक्ष डी.के. बरूआ ने ‘इंदिरा ही इंडिया और इंडिया ही इंदिरा’ जैसा नारा दिया। इस विचार के खिलाफ जो भी घटित होता वह इंदिरा गांधी को असुरक्षित कर देता। इसी तानाशाही विचारधारा ने आपातकाल को जन्म दिया। 

हालांकि आज के परिवेश में कुछ तत्व अभिव्यक्ति की आजादी के बारे में चर्चा करते हैं और दुर्भाग्य से ऐसी विचारधारा आज कड़ी चर्चा करना चाहती है, जिसने 1975  में आज ही के दिन देश को आपातकाल के अन्धकार में धकेल दिया था और कारण था सत्ता छिन जाने का डर। न्यायालय व न्यायिक प्रक्रियाओं पर उंगली उठाने वाली विचारधाराएं अचानक भूल गईं कि एक समय सत्ता की लोलुपता में देश के संविधान को उन्हीं के द्वारा रौंदा जा चुका है। 

लेकिन आज के समय में एक नई प्रवृत्ति ने जन्म ले लिया है। कांग्रेसी विचारधारा अपने इस कुकृत्य को आने वाली पीढ़ी से छिपाना चाहती है और इसके लिए दुष्प्रचार का सहारा लिया जा रहा है। अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर व्यर्थ में सवाल खड़े किए जाते हैं और यह बताने का प्रयास होता है जैसे देश में हालात सामान्य न हों और कांग्रेस का साथ वामपंथ और दूसरी समॢथत विचारधाराएं देती हैं। इनका लक्ष्य एक झूठा परिप्रेक्ष्य तैयार करना है। लेकिन इस कालखंड का मेरा निजी अनुभव है। आपातकाल लगते ही देश से लोकतंत्र की मर्यादाएं रौंद दी गईं और मौलिक अधिकार छीन लिए गए। जिन नागरिकों ने सरकार का विरोध किया उन्हें बिना दलील व अपील के जेल में डाला गया। 

इस सबका आधार बना इलाहाबाद उच्च न्यायालय का एक मुकद्दमा जो ‘राज नारायण बनाम उत्तर प्रदेश’ के नाम से जाना गया। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इस मामले में एक निर्णय दिया, जिससे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इतना भयभीत हुईं कि देश पर कब्जा करने का प्रपंच रच डाला। देश में पहले ही सरकार की खिलाफत हो रही थी और बिहार में लोकनायक जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में आंदोलन चरम पर था। लेकिन इस मामले में सिन्हा ने अपने निर्णय में न केवल इंदिरा गांधी को रायबरेली से सांसद के रूप में चुनाव को अवैध करार दे दिया, बल्कि अगले 6 साल तक उनके कोई भी चुनाव लडऩे पर रोक भी लगा दी। 

ऐसे में इंदिरा गांधी न लोकसभा की सदस्य रहीं, न ही राज्यसभा जा सकती थीं। सारे विकल्प तलाशने के बाद कांग्रेस की सरकार ने तय किया कि देश को आपातकाल के अन्धकार में झोंक दिया जाए। आज शोर मचाने वाली विचारधारा ने उस समय अभिव्यक्ति के सभी स्रोतों पर प्रतिबंध लगाने का काम किया और सभी यातनाओं, षड्यंत्रों के बावजूद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व आनुषंगिक संघठनों का भूमिगत गतिविधियां जारी रखने में महत्वपूर्ण योगदान रहा। 

जिस मीडिया के कंधे पर बंदूक रख कर सरकार को घेरने का कुत्सित प्रयास कांग्रेस व समॢथत विचारधारा द्वारा  किया जा रहा है, उसी मीडिया को तालाबंद कर दिया गया था। देश भर में हुए अत्याचार की कहानी शाह कमीशन की रिपोर्ट बयान करती है लेकिन कांग्रेसी विचारधारा अपने उस कुकृत्य पर चुप है और देश में ऐसा माहौल बनाने का प्रयास कर रही है जिस से उनका दुष्कार्य जनता भूल जाए। लेकिन हम सबने अंग्रेज़ों के शासनकाल के रॉल्ट एक्ट, जिसे काला कानून भी कहा जाता है, के बारे में सुना था, मगर आपातकाल का कालखंड निश्चित रूप से उस से भी भयावह था।-मा.मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री,पंजाब) 

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!