बेहूदा बयानबाजी : चुनाव प्रचार का गिरता स्तर

Edited By ,Updated: 28 Apr, 2019 02:10 AM

false rhetoric the fall level of the election campaign

जून, 2015 में अमरीकी राष्ट्रपति के चुनाव में एक उम्मीदवार ने कहा, ‘‘जब मैक्सिको अपने लोग भेजता है, वे अपने श्रेष्ठ लोगों को नहीं भेजते। वे उन लोगों को भेजते हैं जिनके साथ काफी समस्या होती है। वे नशे लेकर आते हैं, वे अपराध लाते हैं। वे दुष्कर्मी...

जून, 2015 में अमरीकी राष्ट्रपति के चुनाव में एक उम्मीदवार ने कहा, ‘‘जब मैक्सिको अपने लोग भेजता है, वे अपने श्रेष्ठ लोगों को नहीं भेजते। वे उन लोगों को भेजते हैं जिनके साथ काफी समस्या होती है। वे नशे लेकर आते हैं, वे अपराध लाते हैं। वे दुष्कर्मी हैं।’’ लोगों में इस तरह की भाषा पर काफी गुस्सा था, इसके बावजूद नवम्बर 2016 में 62,984,825 लोगों ने उस व्यक्ति को वोट दिया। जनवरी, 2017 में वह व्यक्ति दुनिया के सबसे ताकतवर और अमीर देश का 45वां राष्ट्रपति बना। वह है डोनाल्ड ट्रम्प। 

मुझे संदेह है कि भारत में भी ऐसे बहुत से उम्मीदवार हैं जो डोनाल्ड ट्रम्प की तरह बयानबाजी करना चाहेंगे और लोकसभा चुनावों में उसी की तरह जीत भी हासिल करेंगे। मार्च और अप्रैल में इस तरह के काफी बयान दिए गए तथा मई में और भी बयान दिए जाएंगे-तथा 17 मई को चुनाव प्रचार समाप्त होने से घृणा और कट्टरवाद की नई ऊंचाइयां छू ली जाएंगी। खुद को जहरीली आवाजें और व्यंग्य सुनने के लिए तैयार कर लीजिए। साक्षी महाराज के बयान से बात शुरू करते हैं। इन सांसद महोदय ने अपना चुनाव प्रचार इन शब्दों के साथ शुरू किया- 

‘‘2024 में कोई चुनाव नहीं होगा। मैं एक संन्यासी हूं और भविष्य को देख सकता हूं। यह देश का अंतिम चुनाव है।’’ यह 2019 के लोकसभा चुनावों की ‘शुभ’ शुरूआत थी।  चुनाव प्रचार में गाली पहला हथियार था जिसके कुछ उदाहरण यहां प्रस्तुत हैं। 18 मार्च को केन्द्रीय मंत्री महेश शर्मा ने कहा, ‘‘पप्पू कहता है कि वह प्रधानमंत्री बनना चाहता है। मायावती और अखिलेश यादव भी यही चाहते हैं और अब पप्पू की पप्पी भी मैदान में आ गई है।’’ बलिया से भाजपा के विधायक सुरेन्द्र सिंह ने 24 मार्च को कहा, ‘‘राहुल की मां (सोनिया गांधी) भी इटली में उसी पेशे में थीं और उनके पिता ने उन्हें अपना बना लिया। उन्हें (राहुल गांधी) भी परिवार की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए सपना को अपना बना लेना चाहिए।’’

अगली बारी उपहास की थी
20 मार्च को महेश शर्मा ने मायावती को निशाना बनाते हुए कहा, ‘‘मायावती रोज अपना फेशियल करवाती है, वह जवान दिखने के लिए अपने बालों को रंग करवाती है।’’ 

चुनाव प्रचार में धमकियां
इटावा से भाजपा के उम्मीदवार राम शंकर कठेरिया ने 23 मार्च को कहा, ‘‘हम केन्द्र और राज्य में सत्ता में हैं, हम अपनी तरफ उठने वाली किसी भी उंगली को तोड़ देंगे।’’ मेनका गांधी भी धमकी देने से पीछे नहीं रहीं। 12 अप्रैल को उन्होंने मुसलमानों की जनसभा में कहा, ‘‘मैं यह लोकसभा चुनाव किसी भी तरह से जीत जाऊंगी लेकिन यदि मैं मुसलमानों के समर्थन के बिना जीतूंगी तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा। बाद में कड़वाहट आ जाती है। बाद में जब कोई मुसलमान किसी काम के लिए आता है तो सोचती हूं कि कर दूं, इससे कोई फर्क पड़ता है?....मैं मुसलमानों के समर्थन से या बिना समर्थन के जीत रही हूं।’’

19 अप्रैल को भाजपा नेता रणजीत बहादुर श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘पिछले 5 वर्षों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मुसलमानों का हौसला तोडऩे की कोशिश की है। यदि आप मुसलमानों की नस्ल को नष्ट करना चाहते हो तो पी.एम. मोदी को वोट दो।’’ कुछ अन्य प्रकार की धमकियां भी थीं। उदाहरण के तौर पर ‘‘विपक्ष कहता है कि ये सॢजकल स्ट्राइक क्या है और यह किसने की। राहुल गांधी के साथ एक बम बांध देना चाहिए और उन्हें दूसरे देश में भेज देना चाहिए तब वह समझेंगे।’’ 

-महाराष्ट्र की मंत्री सुश्री पंकजा मुंडे (21 अप्रैल)
उसी दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बहुत ही गैर जिम्मेदाराना बयान दिया। पाकिस्तान द्वारा कथित तौर पर परमाणु हथियारों की धमकी देने पर मोदी ने कहा, ‘‘तो हमने उन्हें किसलिए रखा है?क्या हमने अपना परमाणु बम दीवाली के लिए रखा है।’’ 1945 से लेकर अब तक किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री तथा दुनिया के किसी भी नेता (उत्तर कोरिया के किम को छोड़कर) ने परमाणु हथियारों के बारे में इतनी हल्की बात नहीं कही। 

घृणापूर्ण भाषण 
कई लोगों द्वारा श्राप दिए गए। प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने 19 अपै्रल को शुरूआत करते हुए कहा कि उन्होंने बोला था कि तेरा सर्वनाश हो जाए और देखो करकरे (पुलिस अधिकारियों का नायक) उग्रवादियों से लड़ता हुआ मारा गया। भाजपा ने मुस्लिम समुदाय के खिलाफ घृणा को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया ताकि दो समुदायों के बीच ध्रुवीकरण किया जा सके। नीचे दिए गए बयान उनके इस इरादे का सबूत हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 9 अप्रैल को कहा कि यदि कांग्रेस, सपा और बसपा को अली में विश्वास है तो हमें भी बजरंग बली में विश्वास है। 

कर्नाटक के पूर्व उपमुख्यमंत्री के.एस. ईश्वरप्पा ने पहली अप्रैल को कहा कि हम कर्नाटक में मुसलमानों को टिकट नहीं देंगे क्योंकि आप ने हम पर भरोसा नहीं किया। 11 अप्रैल को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा, ‘‘बौद्धों, हिंदुओं और सिखों को छोड़कर प्रत्येक घुसपैठिए को बाहर करेंगे।’’ विपक्षी नेताओं ने भी कुछ आपत्तिजनक टिप्पणियां कीं लेकिन उनमें गालियां और धमकियां शामिल नहीं थीं। अभी चुनाव के चार चरण और 20 दिन बाकी हैं। अभी उम्मीदवारों और प्रचारकों द्वारा और भी ‘रत्न’ फैंके जाएंगे। प्रत्येक गैर जिम्मेदाराना बयान के साथ भारतीय लोकतंत्र में सार्वजनिक संवाद का स्तर गिरता जाएगा। कुल मिलाकर संवाद नहीं बल्कि स्वयं लोकतंत्र ही खतरे में है।-पी. चिदम्बरम 

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