‘कट्टरवाद एक अभिशाप है’

Edited By ,Updated: 19 Nov, 2020 04:04 AM

fundamentalism is a curse

देहरादून के एक मुस्लिम युवक ने मुझे कुछ इस प्रकार लिखा (जैसा पाया गया उसकी प्रतिकृति मगर उसका नाम यहां उजागर नहीं कर रहा)  श्रीमान,  जूलियो एफ

देहरादून के एक मुस्लिम युवक ने मुझे कुछ इस प्रकार लिखा (जैसा पाया गया उसकी प्रतिकृति मगर उसका नाम यहां उजागर नहीं कर रहा) 
श्रीमान, 
जूलियो एफ. रिबैरो
अल्लाह आपको रहमत दे 
कल मैंने एक वीडियो देखा जिसमें फ्रांस के एक क्लास टीचर ने पैगम्बर मोहम्मद (जैसा देखा गया) का कार्टून दिखाया। ऐसे हालातों में क्या करना है एक मुस्लिम छात्र इसी बात को लेकर आश्चर्यचकित था। अंतत: उसने नोटबुक पर मोहम्मद लिखा। 

पैगम्बर मोहम्मद हमारे तथा मुस्लिम समाज के दिलों में बसते हैं। मुसलमान पैगम्बर मोहम्मद को प्यार करते हैं। वे जीसस, मूसा, डेविड, इसाक, इस्माइल, अब्राहम तथा नोह को भी  प्यार करते हैं। कुरान के निर्देशों के अनुसार ङ्क्षहदू देवी-देवताओं के लिए भी सत्कार रखा जाता है। उनका मूल अल्लाह की पूजा करना है तथा पैगम्बर मोहम्मद को अल्लाह के एक दूत के तौर पर उनमें विश्वास करना है। यही उनकी आस्था है और यही अनंत पूजा है। अन्य रिश्ते मतलब रहित हो जाते हैं यदि पैगम्बर मोहम्मद के साथ अनंत जुड़ाव की अवहेलना किसी द्वारा किसी भी प्रकार से की जाए। एक मुसलमान ऐसे हमले को कतई बर्दाश्त नहीं कर सकता। 

आखिर क्यों यूरोप तथा विशेष तौर पर डेनमार्क और फ्रांस की सरकारें सोचती हैं कि बोलने की स्वतंत्रता के नाम पर जीसस तथा अन्य के साथ-साथ पैगम्बर मोहम्मद का भी अनादर किया जा सकता है जिनका बुलंद होकर सम्मान किया जाता है। निश्चित तौर पर यह सांसारिक तौर पर प्रतिक्रिया दी गई है। आखिर मुसलमानों के खिलाफ ऐसी जमीन क्यों तैयार की गई है। कयामत के दिन जब अल्लाह के सामने हिसाब होगा तो पता चलेगा। यही मानवता के लिए सच्चा प्रेम है। 
मुझे उम्मीद है कि आप मुस्लिम लोगों पर ठहराए गए अन्याय के खिलाफ जरूर लिखोगे जोकि स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति के तौर पर लिखा जाएगा। 
आपका 
ककककक
इस पत्र के जवाब में मैंने कुछ इस तरह लिखा 
प्यारे
ककककक 

क्या कुरान ऐसा कहती है कि पैगम्बर का चित्रण नहीं किया जाना चाहिए और यदि कोई ऐसा करता है तो क्या उसकी हत्या की जानी चाहिए? मैं इस पंक्ति को धार्मिक किताब में देखना  चाहूंगा। (अंग्रेजी अनुवाद क्योंकि मुझे अरबी भाषा का ज्ञान नहीं।)
यह जरूरी है कि यदि किसी को इस विषय पर लिखना है। 

जूलियो एफ. रिबैरो
विश्व भर में इस युवक की संवेदनाएं उसके सह-धर्म को मानने वालों की भावनाओं को दर्शाती है। मैं ऐसी भावनाओं का सम्मान करने को तैयार हूं यदि जो कुरान के आदेशों को मन में रख कर उसका आदर करते हैं। वह दूसरों को मारना नहीं चाहते। धर्मनिरपेक्ष उदारवादी एक पक्ष नहीं ले सकते और दूसरे पक्ष पर अन्याय नहीं बांट सकते। जब गाय के व्यापारी, कसाई तथा बीफ को खाने वालों को पीटा जाता है या फिर यू.ए.पी.ए. जैसे कानूनों के अंतर्गत छात्रों तथा बूढ़ी महिलाओं को घसीटा जाता है जोकि सी.ए.ए. तथा एन.आर.सी. जैसे भेदभावपूर्ण कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। 

हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी पहले वैश्विक नेता थे जिन्होंने पैरिस स्कूल टीचर की हत्या की आलोचना की मगर भारत में हम उस समय का इंतजार करते हैं जब हमारे मशहूर प्रधानमंत्री जब किसी मुसलमान को भीड़ द्वारा मारा जाता है तब अपनी प्रतिक्रिया नहीं देते हैं। यह अच्छा है तथा बुद्धिमता वाला है कि प्रधानमंत्री मोदी जी ने मैक्रों को अपना समर्थन दिया जब फ्रांस एक राष्ट्रीय शोक में था। धर्मनिरपेक्ष उदारवादियों ने हमारे देश में मोदी की इस प्रतिक्रिया की सराहना की। उनकी सराहना उस  समय भी की जाती यदि भाजपा शासित राज्यों में भीड़ द्वारा मारे जाने की ङ्क्षनदा की जाती। मेरे जैसे धर्मनिरपेक्ष उदारवादी निरंतर ऐसी दमनकारी घटनाओं की ङ्क्षनदा करते हैं। कट्टरवाद फिर चाहे हिंदू, मुस्लिम, ईसाई या सिख का हो, वह अभिशाप है। 

मुल्लाओं के एक  निर्णय ने मुझे और भी हिलाकर रख दिया। 1965 या 1971 के युद्ध में पाकिस्तानियों ने एक भारतीय सैनिक को पकड़ा था जोकि मुसलमान था क्योंकि 7 सालों से उसकी सही जगह का कोई सुराग नहीं मिल रहा था तो उसकी पत्नी ने फिर से शादी कर ली। उसके एक बेटा भी हुआ और वह खुश थी। अचानक ही उस सैनिक को रिहा कर दिया गया और वह घर लौट आया। मुल्लाओं ने उस महिला को आदेश दिया कि वह सैनिक के साथ रहे और अपनी दूसरे विवाहित जीवन को अलविदा कह दे। यहां तक कि उस महिला से सलाह-मशविरा भी नहीं किया गया और न ही उसके बेटे की तरफ कोई ध्यान दिया गया जिसे उस सैनिक ने स्वीकार नहीं किया था। 

मैं अपने मुस्लिम भाइयों तथा बहनों के लिए लडऩे को तैयार हूं जब वह अन्याय का निशाना बनते हैं मगर मैं उस समय ऐसा करने को तैयार नहीं जब कुरान को बचाने के लिए असभ्य प्रथाओं का सहारा लिया जाता है। क्या कोई सुप्रीम ताकत एक महिला को अपने ही घर तथा अपने ही समाज में गुलाम बनने के लिए महिला की ङ्क्षनदा करती है। क्या कोई सुप्रीम ताकत हत्या करने की अनुमति देती है? ऐसी असमानता तथा अन्याय को मेरे धर्मनिरपेक्ष उदारवादी स्वीकार नहीं कर सकते।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी) 
 

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