जी.डी.पी. की वृद्धि बारे दावों पर खुशी मनाना जल्दबाजी होगी

Edited By ,Updated: 16 Jan, 2022 07:05 AM

gdp it is too early to rejoice over claims about the growth of

एन.एस.ओ के राष्ट्रीय आय 2021-22 बारे पहले अग्रिम अनुमान (एफ.ए.ई.) 7 जनवरी को जारी किए गए। इसकी मुख्य विशेषता थी अंक 9.2 प्रतिशत। एन.एस.ओ. ने इस बात को रेखांकित किया

एन.एस.ओ के राष्ट्रीय आय 2021-22 बारे पहले अग्रिम अनुमान (एफ.ए.ई.) 7 जनवरी को जारी किए गए। इसकी मुख्य विशेषता थी अंक 9.2 प्रतिशत। एन.एस.ओ. ने इस बात को रेखांकित किया कि 2021-22 की नियमित कीमतों पर जी.डी.पी. वृद्धि का अनुमान (9.2 प्रतिशत) 2020-21 में संकुचन (-7.3 प्रतिशत) के खिलाफ था। सरकार के प्रवक्ताओं के अनुसार, हम 2020-21 में गिरावट को समाप्त कर देंगे तथा 2019-20 के मुकाबले लगभग 1.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करेंगे। यदि यह सच होना होता तो मुझे सर्वाधिक खुश व्यक्ति होना चाहिए (विश्व बैंक का अनुमान 8.3 प्रतिशत है)। 

मगर इसे लेकर खुशी मनाना जल्दबाजी होगी। 2019-20 में नियमित कीमतों पर जी.डी.पी. 1,45,69,268 करोड़ रुपए थी। 2020-21 में महामारी के कारण जी.डी.पी. गिरकर 1,35,12,740 करोड़ रुपए पर आ गई।  यदि जी.डी.पी. 2019-20 की सं या को पार कर लेती है तो केवल तभी हम कह सकते हैं कि इसका पतन समाप्त हो गया है तथा हम उसी स्थिति में हैं जो 2019-20 की समाप्ति के समय थी। एन.एस.ओ. के अनुसार यह परिणाम 2021-22 में संभावित है जबकि कई पर्यवेक्षकों के अनुसार ऐसी संभावना नहीं है। कोविड-19 तथा इसके नए वेरिएंट के फिर से उभरने के बाद संदेह और गहरे हो गए हैं। 

बने रहने के लिए दौड़
एफ.ए.ई. पर और करीबी नजर डालते हैं। एन.एस.ओ. के अनुसार जी.डी.पी. 1,84,267 करोड़ रुपए या 1.26 प्रतिशत की छोटी रकम के साथ 1,45,69,268 करोड़ रुपए को पार कर लेगी। सांख्यिकी तौर पर यह एक महत्वपूर्ण राशि नहीं है। यदि कोई भी एक चीज गलत होती है तो दिखाई गई अतिरिक्त आऊटपुट समाप्त हो जाएगी। उदाहरण के लिए यदि निजी उपभोग जरा-सा गिरता है अथवा कुछ बाजारों के लिए निर्यातों में व्यवधान आता है या निवेश में जरा-सी कमी रहती है तो यह ‘अतिरिक्त’ समाप्त हो जाएगा। अधिक से अधिक जिस चीज की हम आशा कर सकते हैं, वह यह कि 2021-22 में नियमित कीमतों पर जी.डी.पी. बराबर रहेगी तथा 1,45,79,268 करोड़ रुपए से कम नहीं होगी। इस सं या को प्राप्त करने का अर्थ यह होगा कि भारत की अर्थव्यवस्था के आऊटपुट का स्तर 2 वर्षों के बाद वही होगा जो 2019-20 में था जिसका श्रेय महामारी तथा अर्थव्यवस्था के अकुशल प्रबंधन को जाता है। 

ये डींगे मारने की कोई तुक नहीं कि भारत विश्व में सर्वाधिक तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था है या होगी। जी.डी.पी. में बड़ी तेजी से गिरावट आई इसलिए इसमें वृद्धि देखने वाली होगी। यदि जी.डी.पी. और भी अधिक तेजी से गिरती तो इसमें उछाल और भी अधिक शानदार दिखाई देती। 2 वर्षों में भारत की अर्थव्यवस्था (-) 7.3 प्रतिशत तथा (+) 9.2 प्रतिशत दर्ज करेगी जिससे जी.डी.पी. समतल बनी रहेगी। अनुमान है कि चीन +2.3 प्रतिशत तथा +8.5 प्रतिशत की दर रिकार्ड करेगा, तो किस देश की अर्थव्यवस्था बढ़ी है तथा कौन-सा देश खोखले दावे कर रहा है? 

औसत भारतीय और भी गरीब हुआ
एन.एस.ओ. के आंकड़े यह भी दिखाते हैं कि औसत भारतीय 2020-21 में बहुत गरीब था तथा 2019-20 की तुलना में 2021-22 में भी बहुत गरीब रहेगा। इसके साथ ही उसने 2 वर्षों में 2019-20 के अपने खर्च के मुकाबले कम खर्च किया और करेगा। 3 वर्षों में नियमित कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय तथा प्रति व्यक्ति उपभोग खर्च निम्रानुसार हैं : 

 कुछ अन्य चिंताजनक संकेतक भी हैं। सरकारी खर्च में वृद्धि के दावों के बावजूद सरकार का अंतिम पूंजी खर्च (जी.एफ.सी.ई.) पिछले वर्ष की तुलना में 2020-21 में मात्र 45,003  करोड़ रुपए अधिक था। इसी तरह 2021-22 में यह पूर्ववर्ती वर्ष की तुलना में केवल 1,20,562 करोड़ रुपए अधिक होगा। निवेश भी ढीले हैं। 2021-22 में ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फार्मेशन बढ़ कर 2019-20 प्राप्त किए गए स्तर से 1,21,266 करोड़ रुपए अधिक हो जाएगी जो महामारी से प्रभावित अर्थव्यवस्था में पूर्णतय: अपर्याप्त है। 

वास्तविकता की जांच
हालांकि  लोगों के बीच जी.डी.पी. की बजाय गैस, डीजल तथा पैट्रोल की कीमतों को लेकर अधिक चर्चा है। बेरोजगारी को लेकर चिंता है। सी.एम.आई.ई. के अनुसार शहरी बेरोजगारी की दर 8.51 प्रतिशत है तथा ग्रामीण बेरोजगारी की दर 6.74 प्रतिशत। वास्तविकता विकट है : बहुत से लोग जिनके पास ‘नौकरी’ थी अब अपनी बेरोजगारी को छिपाते फिर रहे हैं। आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को लेकर चिंता है जैसे कि दालें, दूध तथा खाद्य तेल। बच्चों की शिक्षा को लेकर चिंता है : ग्रामीण भारत तथा शहरी भारत के गरीब पड़ोस में बच्चों ने गत 2 वर्षों के दौरान कोई शिक्षा प्राप्त नहीं की। 

सुरक्षा को लेकर चिंता है : उत्तरी तथा मध्य भारत के राज्यों में अधिकांश मिश्रित समुदाय विस्फोटकों के डिब्बे की तरह हैं जिन्हें एक चिंगारी का डर रहता है।  इनके अतिरिक्त हेट स्पीच, डिजिटल तौर पर गाली-गलौच, ट्रोल्स तथा अपराध, विशेषकर महिलाओं तथा बच्चों के खिलाफ अपराधों को लेकर चिंता है। महामारी तथा नए वेरिएंट्स को लेकर चिंता है।

शासकों को लोगों की वास्तविक चिंताओं की कोई परवाह नहीं है। उन्होंने चुनावी युद्ध लडऩे का रास्ता चुना है। वे आधारशिलाएं रख रहे हैं, अपूर्ण पुलों को खोल रहे हैं, खाली अस्पतालों का उद्घाटन कर रहे हैं, दावा कर रहे हैं कि ‘80 प्रतिशत 20 प्रतिशत के साथ लड़ेंगे’ तथा हर रोज कोई न कोई नारा उछाल रहे हैं। यही वास्तविकता है। यह डींग कि भारत सर्वाधिक तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था है, भी एक अवास्तविकता है।-पी.चिदंबरम

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