स्कूल शिक्षा में महत्वपूर्ण बदलाव का अच्छा अवसर

Edited By Updated: 03 Jun, 2021 03:11 AM

good opportunity for significant change in school education

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार बधाई की पात्र है क्योंकि उसने सी.बी.एस.ई. तथा ऑल इंडिया कौंसिल ऑफ सैकेंडरी एजुकेशन द्वारा आयोजित 12वीं कक्षा की परीक्षा  को रद्द करने

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार बधाई की पात्र है क्योंकि उसने सी.बी.एस.ई. तथा ऑल इंडिया कौंसिल ऑफ सैकेंडरी एजुकेशन द्वारा आयोजित 12वीं कक्षा की परीक्षा  को रद्द करने का निर्णायक कदम उठाया। इसके बारे में मैंने अपने पिछले सप्ताह के लेख में पहले ही लिख दिया था। 10 लाख से ज्यादा छात्रों, उनके अभिभावकों तथा शिक्षकों द्वारा झेली जा रही उत्सुकता पर इस निर्णय ने विराम लगा दिया है। 

उम्मीद है कि स्टेट बोर्ड भी परीक्षाओं को रद्द करने के बारे में विचार करेंगे। हालांकि कुछ स्टेट बोर्डों ने पहले से ही परीक्षाओं के आयोजन को रोक दिया था। कोविड महामारी की वर्तमान स्थिति को देखते हुए सैंट्रल बोर्ड के लिए परीक्षाओं को आगे बढ़ाना एक  उचित निर्णय नहीं था। इससे लाखों की तादाद में छात्रों, शिक्षकों तथा अन्य स्टॉफ सदस्यों को परीक्षाओं के आयोजन में लगाकर उन्हें गहरे जोखिम में डालना था। यहां तक कि एक युवा जीवन को खो देना भी एक भारी क्षति है और यदि ऐसी त्रासदी हो जाती तो सरकार पर निश्चित तौर पर आरोप मढ़े जा सकते थे। 

यह उन छात्रों के लिए भी उचित बात नहीं थी जिनकी पहुंच डिजिटल वल्र्ड तक नहीं थी। ऐसी परीक्षाओं के आयोजन से और ज्यादा भेदभाव हो जाता। आकलन के वैकल्पिक उपायों के लिए सैंट्रल बोर्डों को पूछा गया है ताकि छात्रों की शैक्षिक योग्यता का निष्पक्ष तौर पर आकलन किया जा सके। छात्रों के आकलन के लिए सबसे अच्छा तरीका पिछले 2 वर्षों के दौरान उनके प्रदर्शन का आधार होना चाहिए। 

यह सत्य है कि छात्रों की एक बड़ी गिनती 10वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षाओं के बाद एक या अन्य कारणों के लिए स्कूलों को छोड़ चुकी थी। यह भी वास्तविकता है कि 11वीं तथा 12वीं कक्षा के लिए उसी स्कूलों से लगभग सभी छात्र जुड़े थे। यदि 11वीं कक्षा के बाद स्कूल को बदलना है तो इसके लिए किसी एक को बोर्ड की अनुमति अपेक्षित थी। इस तरह अंदरुनी परीक्षाएं, क्लास टैस्ट, असाइनमैंट, प्रैक्टिकल तथा जनरल नॉलेज पर आधारित एक आकलन प्रत्येक छात्र की शैक्षिक प्रगति को तय कर सकती है। वास्तव में वर्तमान स्थिति सरकार को स्कूली शिक्षा में प्रमुख बदलावों के लिए प्रेरित कर सकती है। 

जैसा कि इसने पिछले वर्ष अपनी नई शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत उच्च शिक्षा में किया था। हमारी स्कूली शिक्षा प्रणाली रटने पर आधारित है और यह बच्चे को वास्तविक तौर पर शिक्षित नहीं करती। हमें विकसित देशों द्वारा अनुसरण की गई शिक्षा प्रणालियों से सबक लेना चाहिए जहां पर बच्चों के विकास तथा उनकी वृद्धि पर पूरा ध्यान दिया जाता है। भारत में दुर्भाग्यवश छात्रों के लिए बोर्ड की परीक्षाएं एक बुरे वाब की तरह हैं। ज्यादातर अभिभावक तथा शिक्षक अपने बच्चों को कहते हैं कि यह परीक्षा उनके जीवन के लिए सबसे अहम है तथा उनका भविष्य 12वीं बोर्ड की परीक्षाओं के नतीजों पर निर्भर करता है। 

मगर वास्तविकता यह है कि आकलन इस तरह से त्रुटिपूर्ण है कि हजारों की तादाद में छात्र शत-प्रतिशत अंक हासिल करते हैं और लाखों ही उस अंकों के निकट रहते हैं क्योंकि आगे जाकर सीखने का कोई स्कोप ही नहीं रहता। यह भी कहना ठीक होगा कि एक सिंगल परीक्षा के आधार पर छात्र की प्रगति को जांचना पूरी तरह से अनुचित हो सकता है। 

विभिन्न शोधों तथा सर्वे ने दिखाया है कि अपने करियर तथा जीवन में सफल हुए टॉपर गलत पाए गए हैं। यह भी प्रमाणित हुआ है कि ऐसी परीक्षाओं में ऊंची कारगुजारी जीवन में खुशी तथा एक सफल करियर नहीं बनाती है। बीते दिनों के कई टॉपर अपनी याति के अनुरूप असफल हुए हैं जबकि जिन्होंने बोर्ड की परीक्षाओं में बेहतर नहीं किया है उन्होंने अपने करियर तथा जीवन में सफलता हासिल की है। 

मगर इन सबका यह मतलब नहीं कि छात्रों को उच्च शिक्षा के संस्थानों में प्रवेश करने के लिए परीक्षाओं या टैस्टों को झेलना नहीं है। इस वर्ष बोर्ड की परीक्षाओं के रद्द होने के साथ अब छात्रों को स्कूलों से मूल क्लीयरैंस मिलने के बाद उच्च शिक्षा के संस्थानों में प्रवेश परीक्षाओं में भाग लेना होगा। इससे छात्रों को अपनी रुचि के विषयों को चुनने के लिए अपना ध्यान केन्द्रित करना होगा। शिक्षाविदों और विशेषज्ञों के बीच एक विस्तृत बहस के बाद भविष्य में बदलाव का अच्छा अवसर है।-विपिन पब्बी
 

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