‘गूगल और फेसबुक दादागिरी करने लगीं’

Edited By ,Updated: 01 Mar, 2021 02:53 AM

google and facebook started growing up

अखबार हों, न्यूज चैनल हो या डिजिटल न्यूज माध्यम हो सब पर खबर लाने में, खबर छापने में, खबर कैमरे से शूट करने पर, वीडियो एडिटिंग करने में बहुत पैसा खर्च होता है। उधर गूगल फेसबुक जैसी बड़ी टेक कंपनियां इस बने बनाए न्यूज कंटैंट का

अखबार हों, न्यूज चैनल हो या डिजिटल न्यूज माध्यम हो सब पर खबर लाने में, खबर छापने में, खबर कैमरे से शूट करने पर, वीडियो एडिटिंग करने में बहुत पैसा खर्च होता है। उधर गूगल फेसबुक जैसी बड़ी टेक कंपनियां इस बने बनाए न्यूज कंटैंट का इस्तेमाल तो जमकर करती हैं लेकिन इससे विज्ञापनों के जरिए हो रही कमाई का छटांक भर ही कंटैंट बनाने वालों में बांटती हैं। टेक कंपनियों को अपनी कमाई का सम्मानजनक और बड़ा हिस्सा न्यूज मीडिया के साथ क्यों बांटना चाहिए, इस पर बहस हो रही है। 

आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्काट मोरिसन ने पिछले दिनों भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से टैलीफोन पर बात की। अन्य बातों के अलावा मोरिसन ने भारत से आस्ट्रेलिया की खास मुहिम में शामिल होने और सहयोग देने का अनुरोध किया। गूगल फेसबुक ट्विटर जैसी टेक कंपनियों को अपनी कमाई का उचित और सम्मानित हिस्सा न्यूज मीडिया के साथ सांझा करने की मुहिम मोरिसन चला रहे हैं। आस्ट्रेलिया इसके लिए कानून ला रहा है जो वहां की संसद के एक सदन में पारित भी हो चुका है। ब्राजील और फ्रांस ने नियामक संस्था गठित की है। अमरीका में डैमोक्रेट और रिपब्लिकन यानी दोनों ही दलों के नेता ऐसे कानून के पक्ष में हैं। दक्षिण अफ्रीका और स्पेन ने सारी कमाई अकेले ही हड़प जाने वाली टेक कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की चेतावनी दी है। 

बात आस्ट्रेलिया से शुरू करते हैं। आस्ट्रेलिया इंटरनैट यूजर की संख्या के हिसाब से दुनिया का चौथे नंबर का देश है। फेसबुक के एक करोड़ 70 लाख यूजर हैं। पिछले साल फेसबुक और गूगल की आस्ट्रेलिया में विज्ञापनों से कमाई रही 319 मिलियन डालर।

आस्ट्रेलिया में डिजिटल प्लेटफार्म पर हर सौ डालर की विज्ञापन कमाई में से 53 फीसदी गूगल को मिलता है और 28 फीसदी फेसबुक को। लेकिन जब इन कंपनियों से कहा गया कि वह इस कमाई में से सम्मानजनक राशि न्यूज मीडिया को भी दे तो वे साफ मुकर गए। उलटे दादागिरी करने लगे। फेसबुक ने आस्ट्रेलिया का पेज ही हटा दिया। यहां तक कि मौसम, स्वास्थ्य, आपातकालीन सेवा, आपदा की सूचना देने वाली सेवाएं भी बंद कर दीं। तब प्रधानमंत्री मोरिसन ने कहा था कि वो हो सकता है कि वह दुनिया बदल रहे होंगे लेकिन दुनिया को अपने हिसाब से चला नहीं सकते। 

आस्ट्रेलिया दबाव में नहीं आया। फेसबुक को झुकना पड़ा। उसने अगले तीन सालों में न्यूज मीडिया की आॢथक मदद के लिए एक बिलियन डालर का कोष बनाने की घोषणा की है। गूगल ने राबर्ट मर्डोक जैसे बड़े मीडिया घरानों के साथ राजस्व बांटने को लेकर समझौता किया  है। गूगल ने भी फेसबुक की तरह एक बिलियन डालर का विशेष कोष बनाने की घोषणा की है। अब जो काम आस्ट्रेलिया कर रहा है वह काम भारत क्यों नहीं कर सकता या भारत को क्यों नहीं करना चाहिए। आखिर भारत में न्यूज मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। यहां न्यूज मीडिया की हालत पतली है। कोरोना काल में ही कुछ अखबार, कुछ टी.वी. चैनल, कुछ डिजिटल मीडिया प्लेटफार्म बंद हुए हैं। पत्रकारों की नौकरियां गई हैं, वेतन कम हुए हैं, नई भॢतयां प्रभावित हुई हैं। 

उधर गूगल फेसबुक जैसी टेक कंपनियां मालामाल हो रही हैं। एर्नेस्ट एंड यंग का एक सर्वे फिक्की ने सांझा किया है। सर्वे बताता है कि भारत में डिजिटल प्लेटफार्म को 2019 में 27 हजार 900 करोड़ का विज्ञापन मिला जो 2022 में बढ़ कर 51 हजार 340 करोड़ पहुंच जाएगा। भारत में 30 करोड़ ऐसे यूजर हैं जो न्यूज संबंधी डिजिटल प्लेटफार्म  से जुड़े हैं। वैसे कुल मिलाकर इंटरनैट से जुडऩे वालों की तादाद इससे कहीं ज्यादा है। सर्वे बताता है कि सभी तरह के इंटरनैट यूजर में से 46 फीसदी न्यूज सिर्फ डिजिटल प्लेटफार्म पर ही देखते हैं। इसी तरह स्मार्ट फोन  रखने वालों में से 76 फीसदी न्यूज अपने फोन पर ही देखते हैं। 

हाल ही में भारत  ने सोशल मीडिया और ओ.टी.टी. प्लेटफार्म के लिए कड़ी शर्तें लागू की हैं। भारत ने ट्विटर को तीन सौ के आसपास अकाऊंट बंद करने के लिए मजबूर किया है। भारत ने व्हाटसअप पर प्राईवेसी को लेकर शिकंजा कसा है। भारत ने बहुत से एप तक बंद किए हैं। भारत ने आनलाइन मार्केट के मामले में एमेजॉन और फ्लिपकार्ट को बिजनैस माडल बदलने के लिए बाध्य किया है। 

जानकारों का कहना है कि भारत जब यह सब कर सकता है तो वह टेक कंपनियों पर यह दबाव भी डाल सकता है कि वह अपनी कमाई न्यूज मीडिया से सांझा करे। आखिर भारत बहुत बड़ा बाजार है और कोई भी टेक कंपनी इस बाजार को खोने का जोखिम नहीं उठा सकती। उधर टेक कंपनियों का कहना है कि वह तो अपने प्लेटफार्म पर न्यूज कंटैंट दिखाते हैं जिससे कंटैंट बनाने वाले न्यूज मीडिया का ही प्रचार प्रसार होता है। उसके पाठक या दर्शक बढ़ते हैं और सारी तारीफ उन्हीं के हिस्से जाती है। न्यूज कंटैंट बनाने में बहुत पैसा खर्च होता है। हमारे यहां कहा जाता है कि कंटैंट इज किंग। अब यह कहां का इंसाफ है कि कंटैंट बेचने वाला तो किंग यानी राजा हो जाए और कंटैंट बनाने वाले की हालत रंक जैसी रहे। 

अखबार हो या टी.वी. चैनल दोनों विज्ञापन पर ही जिंदा हैं लेकिन विज्ञापन डिजिटल की तरफ शिफ्ट हुआ है। यहां दिलचस्प तथ्य है कि जितना भी आनलाइन विज्ञापन है उसका 68 से लेकर 75 फीसदी हिस्सा गूगल और फेसबुक के पास ही जाता है। इसके बाद एमेजॉन के हिस्से कुछ आता है। करीब नौ फीसदी यानी न्यूज मीडिया के लिए यहां भी गुंजाइश नहीं के बराबर रह गई है। जानकारों का कहना है कि टेक कंपनियों में विज्ञापन को लेकर पारदर्शिता भी नहीं है। वह कभी नहीं बताती कि न्यूज मीडिया के किस कंटैंट से उसे कितना विज्ञापन मिला। इन दिनों आत्मनिर्भर भारत पर बहुत जोर दिया जा रहा है। जानकारों का कहना है कि आत्मनिर्भर न्यूज भी आत्मनिर्भर भारत का जरूरी हिस्सा होना चाहिए।-विजय विद्रोही

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!