‘चिंताजनक है भारत में बढ़ती आर्थिक विषमता’

Edited By ,Updated: 05 Mar, 2021 01:49 AM

growing economic disparity in india is worrying

गरीबी उन्मूलन के लिए कार्यरत संस्था ‘ऑक्सफैम’ की हालिया रिपोर्ट के अनुसार कोरोना महामारी के कारण वर्ष 1930 की महामंदी के बाद दुनियाभर में सबसे बड़ा आॢथक संकट पैदा हुआ है और इस महामारी को पिछले सौ वर्षों का सबसे बड़ा स्वास्थ्य

गरीबी उन्मूलन के लिए कार्यरत संस्था ‘ऑक्सफैम’ की हालिया रिपोर्ट के अनुसार कोरोना महामारी के कारण वर्ष 1930 की महामंदी के बाद दुनियाभर में सबसे बड़ा आॢथक संकट पैदा हुआ है और इस महामारी को पिछले सौ वर्षों का सबसे बड़ा स्वास्थ्य संकट माना गया है। दरअसल कोरोना से जहां दुनियाभर में अब तक 10 करोड़ से ज्यादा व्यक्ति संक्रमित हो चुके हैं, वहीं 20 लाख से ज्यादा जान गंवा चुके हैं। इसके अलावा कोरोना संकट ने अमीरी-गरीबी के बीच की खाई को भी पहले के मुकाबले कई गुणा चौड़ा कर दिया है। 

महामारी के इस दौर में एक ओर जहां करोड़ों लोगों के काम-धंधे चौपट हो गए, लाखों लोगों की नौकरियां छूट गईं और अनेक लोगों के कारोबार घाटे में चले गए, वहीं कुछ ऐसे व्यवसायी हैं, जिन्हें इस महामारी ने पहले से भी ज्यादा मालामाल कर दिया है। आंकड़े देखें तो विश्व के 60 फीसदी से भी ज्यादा अरबपति पिछले साल और ज्यादा अमीर हो गए। 

भारत के संदर्भ में हाल ही में गैर सरकारी संस्था ‘ऑक्सफैम’ ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया है कि लॉकडाऊन के दौरान ही भारतीय अरबपतियों की सम्पत्ति 35 फीसदी बढ़ गई। विश्व आर्थिक मंच के ‘दावोस संवाद’ के पहले दिन जारी ऑक्सफैम की ‘द इनइक्वलिटी वायरस’ नामक रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाऊन की घोषणा के बाद भारत के शीर्ष 100 अरबपतियों की सम्पत्ति में 12.97 ट्रिलियन (1297822 करोड़) रुपए की वृद्धि हुई और कोरोना ने गरीबों तथा अमीरों के बीच असमानता को और गहरा करने का काम किया है। इस दौरान यह असमानता पूरी दुनिया में बढ़ी है। 

सम्पत्ति के मामले में भारत के अरबपति अमरीका, चीन, जर्मनी, रूस, फ्रांस के बाद छठे स्थान पर पहुंच गए हैं और 2009 से आकलन करें तो यह 90 फीसदी बढ़ते हुए 423 अरब डॉलर तक पहुंच गई। विश्व के शीर्ष 10 अमीरों की सम्पत्ति में 540 अरब डॉलर की वृद्धि हुई है और दुनियाभर के अरबपतियों की कुल सम्पत्ति 3.9 लाख करोड़ डॉलर से बढ़कर 11.95 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंच गई। भारत के 100 प्रमुख अरबपतियों की आय में इतनी जबरदस्त वृद्धि हुई, जिससे न केवल एक दशक तक मनरेगा तथा स्वास्थ्य मंत्रालय का मौजूदा बजट प्राप्त हो सकता है बल्कि इस बढ़ौतरी से देश के 13.8 करोड़ गरीबों को 94045 रुपए की राशि का वितरण किया जा सकता है। 

करीब डेढ़ साल पहले यह तथ्य सामने आया था कि कि देश की आधी सम्पत्ति देश के नौ अमीरों की तिजौरियों में बंद है और अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई पांच वर्षों में और ज्यादा गहरी हो गई है लेकिन अब स्थिति और भी बदतर हो चुकी है। महामारी और लॉकडाऊन के दौरान करीब 12.2 करोड़ लोगों ने अपने रोजगार खोए, जिनमें से करीब 75 प्रतिशत फीसदी (9.2 करोड़) अनौपचारिक क्षेत्र के थे। सरकार की गलत नीतियों का प्रतिफल कहें या कुछ और पर कटु सत्य यही है कि महामारी के दौर में अमीर जहां और अमीर हुए हैं, वहीं गरीबों का हाल और बुरा हो गया है तथा आर्थिक विषमता चिंताजनक स्थिति तक बढ़ गई है। ऑक्सफैम की रिपोर्ट का कहना है कि अमीर लोग महामारी के समय में आरामदायक जिंदगी का आनंद ले रहे हैं जबकि स्वास्थ्य कर्मचारी, दुकानों में काम करने वाले और विक्रेता जरूरी भुगतान करने में असमर्थ हैं और इस परिस्थिति से निकलने में वर्षों लग सकते हैं। 

इससे पूर्व ‘रिफ्यूजी इंटरनैशनल’ की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि कोरोना महामारी ने दुनियाभर में 16 करोड़ ऐसे लोगों के रहने का ठिकाना भी छीन लिया, जो भुखमरी, बेरोजगारी तथा आतंकवाद के कारण अपने घर या देश छोड़कर दूसरी जगहों पर बस गए थे। 

रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना महामारी सामाजिक असमानताओं को और उभार रही है। संयुक्त राष्ट्र और डेनवर विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में पिछले दिनों कहा जा चुका है कि महामारी के दीर्घकालिक परिणामों के चलते वर्ष 2030 तक 20.7 करोड़ और लोग बेहद गरीबी की ओर जा सकते हैं और यदि ऐसा हुआ तो दुनियाभर में बेहद गरीब लोगों की संख्या एक अरब को पार कर जाएगी। 

विश्व खाद्य कार्यक्रम के एक आकलन के अनुसार 82.1 करोड़ लोग हर रात भूखे सोते हैं और बहुत जल्द 13 करोड़ और लोग भुखमरी तक पहुंच सकते हैं। सैंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमैंंट (सी.एस.ई.) की ‘स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरनमैंट इन फिगर्स 2020’ की रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना से वैश्विक गरीबी दर में 22 वर्षों में पहली बार बढ़ौतरी होगी और भारत की गरीब आबादी में 1.2 करोड़ लोग और जुड़ जाएंगे, जो दुनिया में सर्वाधिक हैं। 

1980 के दशक की शुरूआत में एक फीसदी धनाढ्यों का देश की कुल आय के 6 फीसदी हिस्से पर कब्जा था लेकिन बीते वर्षों में यह लगातार बढ़ता गया है और तेजी से बढ़ी आर्थिक असमानता के कारण स्थिति बिगड़ती गई है। आर्थिक विषमता आर्थिक विकास दर की राह में बहुत बड़ी बाधा बनती है। दरअसल जब आम आदमी की जेब में पैसा होगा, उसकी क्रय शक्ति बढ़ेगी, आर्थिक विकास दर भी तभी बढ़ेगी। अगर ग्रामीण आबादी के अलावा निम्न वर्ग की आय नहीं बढ़ती तो मांग में तो कमी आएगी ही और इससे विकास दर भी प्रभावित होगी।-योगेश कुमार गोयल 
 

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