इंद्र कुमार गुजराल : एक ऐसी खुशबू जिसने युग महका दिया

Edited By ,Updated: 04 Dec, 2023 06:31 AM

inder kumar gujral a fragrance that scented the era

जिंदगी कभी-कभी हमें किसी ऐसे प्यारे और महान इंसान से मिलवा देती है जिसकी खुशबू उम्र भर के लिए हमारे जीवन में महकती है। यहां ये शब्द एक ऐसे ही इंसान श्री इंद्र कुमार गुजराल के साथ संबंधित हैं। फरवरी, 1997 में जब प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में अकाली...

जिंदगी कभी-कभी हमें किसी ऐसे प्यारे और महान इंसान से मिलवा देती है जिसकी खुशबू उम्र भर के लिए हमारे जीवन में महकती है। यहां ये शब्द एक ऐसे ही इंसान श्री इंद्र कुमार गुजराल के साथ संबंधित हैं। फरवरी, 1997 में जब प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में अकाली सरकार आ रही थी तो बादल साहब के चेहरे पर खुशी से ज्यादा चिंता साफ झलक रही थी। जो पंजाब उन्हें मिल रहा था उसके रास्ते में कदम-कदम पर कांटे बिछाए जा चुके थे।

सिख कौम एक लम्बी त्रासदी से संभलते हुए भी डगमगा रही थी। पंजाब के ऊपर 8500 करोड़ का स्पैशल टर्म का ऋण चढ़ा था। इस ऋण को माफ करने की बात तो दूर केंद्र इसे लंबित करने या इसकी अदायगी की शर्तों को नर्म करने को भी तैयार नहीं था। प्रकाश सिंह बादल के पद संभालने के बाद अनेकों बार किए गए निवेदनों का केंद्र की सरकारों पर कोई असर नहीं हो रहा था। कुदरत मेहरबान हुई और सब अंदाजों के विपरीत केंद्र में पहली बार एक ऐसे इंसान के नेतृत्व में सरकार बन गई जिसे सारा विश्व एक कुशल, दूरअंदेशी, मृदुभाषी और बेहतर कूटनीतिज्ञ के तौर पर जानता था। पंजाब की अच्छी किस्मत थी कि वह शख्स एक पंजाबी था। वह भी एक ऐसा पंजाबी जो 1984 के जख्मों को भरने के लिए हर पंजाबी के दर्द को सांझा कर रहा था। यह इंसान इंद्र कुमार गुजराल थे जिनके व्यक्तित्व की यह विशेषता थी कि उनकी पार्टी के पास संसद का एक सदस्य भी न होने के बावजूद सारा देश और सभी दल उन्हें देश की बागडोर संभालने के लिए एकमत थे। 

गुजराल साहब के प्रधानमंत्री बनने के पीछे सिर्फ एक चमत्कार काम कर रहा था और वह चमत्कार उनकी शख्सियत का था। वह बेदाग, निर्विवाद, संवेदनशील, धर्मनिरपेक्ष और मानवतावादी मार्ग को आगे बढ़ाने वाले थे। गुजराल साहब विश्व के अंदर सभी धर्मों, जातियों, रंगों, नस्लों, देश या अन्य बातों से ऊपर उठ कर समस्त मानवता को अपनी खुली बांहों में लेने वाला विराट हृदय रखते थे। मैं उनका बचपन से ही प्रशंसक था क्योंकि सिर्फ मुझे ही नहीं बल्कि हर किसी को वह पाक दामन, एक कमल की तरह साफ और निश्छल नजर आते थे। देश की नजरें उन पर तब से थीं जब वह बतौर राजदूत देश को उलझनों भरी अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में से निर्विवाद रास्ता दिखाने की काबिलियत के सबूत दे रहे थे। एक दिन अचानक मुझे उनका संंदेश मिला कि वह मुझे मिलना चाहते हैं। 

अंग्रेजी के समाचार पत्रों में मेरे लेख पढऩे के बाद उन्होंने मुझे कहा कि मुझे इस बात को न सिर्फ अंग्रेजी बल्कि पंजाबी की अखबारों में भी लिखना चाहिए। मेरे लिए यह यकीन करना ही मुश्किल था कि उन जैसे विशाल कद का कोई इंसान मुझे इतना मान बख्श रहा था। अमृतसर के खालसा कालेज में उनकी, कुलदीप नैय्यर तथा लैफ्टिनैंट जनरल अरोड़ा साहिब की मौजूदगी में भाषण देते हुए मैं काफी भावुक हो गया। गुजराल साहब अचानक मेरे पास आए और अपना दायां बाजू मेरे कंधों पर रखते हुए मुझे यह एहसास दिलाते हुए कहने लगे, ‘‘आपने बहुत अच्छा भाषण दिया। यह अच्छा हुआ कि तुमने सिखों के मनों के गुस्से को भी प्रकट किया।’’

गुजराल साहिब के बेमिसाल गुणों के कायल उनके विरोधी भी थे। (वैसे कोई उनका विरोधी हो सके यह बात मेरे जहन में नहीं आती) बादल साहब के साथ गुजराल साहब के रिश्तों की दो परतें थीं, एक तो निजी था क्योंकि बादल साहब शुरू से ही गुजराल साहब के निजी गुणों और सार्वजनिक जीवन में उनके बेदाग चरित्र, शांत स्वभाव और दूरअंदेशी सोच के कायल थे। दोनों का रिश्ता प्यार और दोस्ती वाला था। मैं समझता हूं कि बादल साहब यदि अपने मुश्किल दौर के दौरान किसी शख्स के साथ अपने दिल की बात सांझा करते थे तो वह इंसान कोई और नहीं बल्कि इंद्र कुमार गुजराल होंगे। 

उन दिनों पंजाब कर्ज के बोझ के कारण चारों ओर से घिरा हुआ था। इससे पंजाब की अर्थव्यवस्था चरमरा चुकी थी और पंजाबियों की भलाई के लिए कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। बादल चाहते थे कि पंजाब के देश प्रति योगदान को मद्देनजर रखते हुए यह कर्जा माफ होना चाहिए। मगर देश का कोई ऐसा कानून नहीं था जो ऐसा होने देता। आजकल के हिसाब से उस समय का 8500 करोड़ का कर्ज देखा जाए तो यह करीब 2 लाख करोड़ बनता है। पंजाब और बादल साहब की पहली और अंतिम उम्मीद इंद्र कुमार गुजराल थे, मगर उनके लिए भी यह कार्य करीब-करीब असंभव था। उनके वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम कांग्रेस पार्टी से संबंधित थे और वह भी कर्ज माफी के सख्त विरोधी थे। 

वित्त मंत्रालय की रजामंदी के बिना यह संभव नहीं था। बादल साहब ने जब गुजराल साहब को इस विषय पर विनती की तो मैं उनके साथ था। गुजराल साहब हल्का-सा मुस्कुराए और बोले, ‘‘बादल साहब बहुत कठिन है मगर तुम ऐसा करो कि पंजाब की सभी मांगें एक बार में ही तैयार कर लो फिर देखते हैं।’’ 10 दिनों के बाद प्रधानमंत्री निवास वाले कार्यालय में बैठक हुई और बादल मांगों की एक लम्बी सूची लेकर आए। गुजराल साहब ने लिस्ट देखी और कहा, ‘‘लिस्ट की पहली आइटम को छोड़ दो बाकी के बारे में बात करते हैं।’’बादल मायूस हो गए मगर मीटिंग जारी रही। गुजराल साहब ने कर्जे वाली मांग के सिवाय सभी मांगें मान लीं। बादल बोले, ‘‘हम तो वास्तव में पहली मांग के लिए ही आए थे जो कर्ज माफी से संबंधित है। उस बारे में आपने कोई बात ही नहीं की।’’ गुजराल साहिब मुस्कुराए और कहने लगे, ‘‘वह कोई बात ही नहीं वह मांग ही नहीं है। वह तो पंजाब के प्रति देश का कत्र्तव्य है। 

पंजाब ने देश के लिए बेमिसाल कुर्बानियां दी हैं, यह मांग नहीं यह मेरा निर्णय है। मेरे पंजाब ने देश का कोई ऋण ही नहीं देना, बल्कि देशवासियों ने पंजाबियों का ऋण उतारना है और मैं वह ऋण उतारूंगा।’’ यह सुनकर पी. चिदम्बरम बहुत हैरान और दुखी होते हुए कहने लगे, ‘‘दिस कांट बी डन (ऐसा नहीं हो सकता)।’’ गुजराल साहब ने बड़े प्यारे से चिदम्बरम साहब का हाथ अपने हाथ में लिया और कहने लगे, ‘‘चिदम्बरम साहब दिस हैज बीन डन (यह तो हो गया)।’’ गुजराल साहब ने बादल साहब को कहा कि पंजाब में शिक्षा विशेषकर स्कूली शिक्षा और बच्चों की शिक्षा के लिए कुछ खास करो। पंजाब का हर बच्चा, हर बेटी पढ़ी-लिखी होनी चाहिए। हमने सारी दुनिया का मुकाबला करना है। हमारे बच्चे पढ़ेंगे तो पंजाब जीतेगा। देश के प्रधानमंत्री कार्यालय से किसी ने प्रथम बार ‘साडा पंजाब, मेरा पंजाब, असीं पंजाबी’ जैसे शब्द सुने थे। गुजराल साहब की शिक्षा विशेषकर बच्चों की शिक्षा के प्रति लगन बेमिसाल थी।-हरचरण बैंस

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