मध्यम मगर नौकरियों के बिना ‘विकास’ कर रहा है भारत

Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Aug, 2017 01:25 AM

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भारत की स्वतंत्रता के 70 वर्ष पूरे होने तथा विशेषकर अर्थव्यवस्था की स्थिति बारे तर्कपूर्ण लेख पढ़कर मुझे खुशी हुई। ग्रामीण और शहरी लोगों के साथ अपनी...

भारत की स्वतंत्रता के 70 वर्ष पूरे होने तथा विशेषकर अर्थव्यवस्था की स्थिति बारे तर्कपूर्ण लेख पढ़कर मुझे खुशी हुई। ग्रामीण और शहरी लोगों के साथ अपनी बातचीत में मैंने पाया कि उनमें कीमतों, नौकरियों तथा  आधारभूत संरचना जैसे विषयों में रुचि पैदा हुई है।

राजनीतिक रैलियों में मैंने पाया कि लोग राजनीतिक भाषणों अथवा दूसरी पाॢटयों की निंदा की ओर अधिक ध्यान नहीं देते। वे चुनावी भाषणों, कीमतों, कृषि उत्पादों, ईंधन तथा यातायात, नौकरियों, शिक्षा ऋणों आदि से संबंधी भाषणों को ध्यान  से सुनते हैं। इसलिए मैंने इस सप्ताह भी ‘अर्थव्यवस्था’ विषय पर बात जारी रखने का निर्णय किया।अर्थव्यवस्था की स्थिति पर आधिकारिक रूप से काफी विषय-वस्तु उपलब्ध है। वे हैं आर्थिक सर्वेक्षण, खंड-2 (ई.एस.) तथा आर.बी.आई. की 2 अगस्त, 2017 मौद्रिक नीति स्टेटमैंट। अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य के बारे गत सप्ताह मेरी मेज पर 5 मापदंड थे।

बेरोजगारी तथा धीमा विकास
पहला मापदंड था नौकरियां। आर्थिक सर्वेक्षण में नौकरियों पर कोई अलग खंड नहीं है, ‘इम्पलॉयमैंट एंड स्किल डिवैल्पमैंट’ पर केवल 2 पेज का एक लेख है। आर्थिक सर्वेक्षण में  नौकरियां उत्पन्न करने की कोई संख्या नहीं दी गई है। सिवाय इसके कि जिन लोगों ने कौशल प्रशिक्षण हासिल किया, उनमें से 4,27,470 को रोजगार दिया गया। उन रा’यों तथा सैक्टरों के बारे में कुछ नहीं बताया गया जहां 4,27,470 नौकरियां दी गईं। उन नौकरियों की संख्या बारे कुछ नहीं कहा गया जिनके 2017-2019 में पैदा होने की संभावना है। सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण मुद्दे पर चुप्पी स"ााई बयां करती है कि भारत मध्यम मगर नौकरियों के बगैर विकास कर रहा है।

दूसरा मापदंड था जी.डी.पी. ग्रोथ। आर्थिक सर्वेक्षण में स्वीकार किया गया है कि जी.डी.पी. की विकास दर्ज 2015-16 में 8 प्रतिशत से गिरकर 2016-17 में 7.1 प्रतिशत रह गई। इसमें यह भी स्वीकार किया गया है कि 2016-17 के पहले अद्र्ध में विकास दर 7.7 प्रतिशत थी तथा दूसरे में 6.5 प्रतिशत।

अत: यह 8 से गिरकर 6.5 प्रतिशत तक आ गई, जो ठीक मेरे अनुमान के अनुसार है, जैसा कि मैंने विमुद्रीकरण के प्रभाव को लेकर भविष्यवाणी की थी। ग्रॉस वैल्यू एडिशन (जी.वी.ए.) नम्बर भी बहुत बुरी स्थिति में है : 2016-17 की चौथी तिमाही में यह 5.6 प्रतिशत थी और आगे बढ़ते हुए आर्थिक सर्वेक्षण में चेतावनी दी गई है कि वर्तमान विकास (6.5 प्रतिशत पढ़ें) बनाए रखने के लिए विकास के अन्य ड्राइवर्स, जैसे कि (निजी) निवेश तथा निर्यात पर कार्रवाई के साथ-साथ क्रैडिट ग्रोथ हेतु बैलेंस शीट्स को क्लीन करना होगा।

गिरते ग्राफ
तीसरा मापदंड था निवेश : दो चौंकाने वाले ग्राफों में आर्थिक सर्वेक्षण में ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फार्मेशन (जी.एफ.सी.एफ.) की निराशाजनक तस्वीर पेश की है।  2015-16 की दूसरी तिमाही से सार्वजनिक जी.एफ.सी.एफ. के विकास में गिरावट आई है। इसी समय के दौरान निजी जी.एफ.सी.एफ. में भी गिरावट आई है जो 2015-16 की चौथी तिमाही में नकारात्मक बन गई और 2016-17 में वैसी ही रही। भविष्यवाणी तो इससे भी निराशाजनक है। उपलब्ध बजट सूचना के अनुसार सरकार का जी.डी.पी. से संबंधित निवेश खर्च 2017-18 में गिरने की आशंका है।

चौथा मापदंड था क्रैडिट ग्रोथ। मुझे आर्थिक सर्वेक्षण में कही गई बात से अधिक कहने की जरूरत नहीं है जिसमें कहा गया है कि 2003-08 के दौरान उच्च  विकास देखने को मिला जिसके साथ क्रैडिट ग्रोथ में भी उफान आया जो वास्तव में वर्ष दर वर्ष 20 प्रतिशत के आंकड़े को पार कर गया। वैश्विक वित्तीय संकट तथा 2008-10 के समय दौरान वित्तीय उकसावों के प्रभाव के चलते क्रैडिट ग्रोथ फरवरी 2014 तक लगभग 15 प्रतिशत तक रही। इसके बाद इसकी गति कम हो गई। 2016-17 के दौरान ग्रॉस बैंक क्रैडिट आऊटस्टैंडिंग औसत 7 प्रतिशत के करीब हो गई। मई 2017 की नवीनतम रीडिंग के अनुसार यह 4.1 प्रतिशत थी।

सकल रूप से गैर खाद्य क्रैडिट ग्रोथ के साथ-साथ कृषि, उद्योग, सेवाओं तथा निजी ऋणों की क्रैडिट ग्रोथ सितम्बर 2016 से गिरावट की ओर है। इससे सबसे बुरी तरह उद्योग प्रभावित हुए जहां क्रैडिट ग्रोथ सितम्बर 2016 से ऋणात्मक है। उद्योगों के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का ऋण मार्च 2016 से ऋणात्मक है, केवल निजी बैंक ही उद्योग को कुछ ऋण दे रहे हैं।

पांचवां मापदंड था औद्योगिक उत्पादन। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार औद्योगिक कारगुजारी 2015-16 में 8.8 प्रतिशत से गिरकर 2016-17 में 5.6 प्रतिशत रह गई। आई.आई.पी. के आंकड़े दुविधापूर्ण हैं। पुरानी सीरीज (आधार वर्ष 2004-05) के अनुसार देखें तो आई.आई.पी. की विकास दर 2016-17 की पहली तिमाही में 0.7 के मुकाबले बढ़कर चौथी तिमाही में 1.9 प्रतिशत हो गई। 

यद्यपि नई सीरीज (आधार वर्ष 2011-12) के अंतर्गत विकास दर 2016-17 की पहली तिमाही में 7.8 प्रतिशत के मुकाबले चौथी तिमाही में 2.9 प्रतिशत रह गई। हालांकि पतन की ओर अग्रसर होने के बावजूद नई सीरीज के नम्बर पुरानी सीरीज के नम्बरों से बेहतर हैं। नई सीरीज के नम्बर एक खुशामदपूर्ण तस्वीर पेश करते हैं जिस पर कोई अपने जोखिम पर ही विश्वास कर सकता है।

2019 तक अच्छे दिन कहां
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की मौद्रिक नीति स्टेटमैंट ने कई निष्कर्षों की पुष्टि की है। आर.बी.आई. के अनुसार 2017-18 की दूसरी तिमाही में सुधारवादी गतिविधियों की आशा है (पढ़ें धीमा विकास)। औद्योगिक कारगुजारी कमजोर हुई है और उपभोक्ता ड्यूरेबल्स व कैपिटल गुड्स की आऊटपुट में संकुचन हुआ है। नई निवेश घोषणाओं में 2016-17 की पहली तिमाही के दौरान 12 वर्षों के मुकाबले अधिक गिरावट आई। स्टेटमैंट नौकरियों तथा विकास को लेकर चुप है।

जैसा कि मुझे डर था, हम स्वतंत्रता की 70वीं वर्षगांठ बिना प्रसन्नता के  मना रहे हैं। मुझे ङ्क्षचता है कि सरकार डैशबोर्ड पर देखने से डर रही है। ऐसा दिखाई देता है कि यह 2019 तक अच्छे दिन के विचार को त्याग देगी तथा 2022 में नए भारत के नारे को चमकाने में व्यस्त है।

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