क्या औद्योगिक एवं तकनीकी जासूसी है चीन की कामयाबी का राज

Edited By ,Updated: 25 May, 2024 06:02 AM

is industrial and technological espionage the secret of china s success

अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में इन दिनों एक खबर प्रमुखता बनाए हुए है। जिसका सार यह है कि अमरीका, ऑस्ट्रेलिया समेत पश्चिम के देशों की इन दिनों एक नई चुनौती सामने आने के बाद नींद उड़ी हुई है। यह चुनौती पैदा हुई है चीन द्वारा कथित तौर पर की जा रही नए तरीके...

अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में इन दिनों एक खबर प्रमुखता बनाए हुए है। जिसका सार यह है कि अमरीका, ऑस्ट्रेलिया समेत पश्चिम के देशों की इन दिनों एक नई चुनौती सामने आने के बाद नींद उड़ी हुई है। यह चुनौती पैदा हुई है चीन द्वारा कथित तौर पर की जा रही नए तरीके की जासूसी से। विश्व में बड़े प्लेयर की भूमिका निभाने वाले इन देशों की खुफिया एजैंसियां आरोप लगा रही हैं कि चीन तकनीक और औद्योगिक जासूसी के काम में बरसों से लिप्त है लेकिन इस तरफ किसी का सहजता से ध्यान नहीं गया। यह मामला खुफिया एजैंसियों द्वारा जिस तरह के मामलों की जासूसी की जाती है उससे बिल्कुल ही अलग है। 

बी.बी.सी. को दिए इंटरव्यू में ऑस्ट्रेलिया की खुफिया एजैंसी ऑस्ट्रेलियाई सुरक्षा और खुफिया संगठन (ASIO) माईक ब्रगेस का कथन प्रकाशित हुआ है जिसमें कहा गया है कि उनकी एजैंसी बीते 74 सालों में इतनी व्यस्त कभी नहीं रही जितनी अब व्यस्त है। पश्चिमी देशों ने इस खतरे को समझने में देरी की है। दरअसल हम सामूहिक तौर पर चूक गए हैं। कमर्शियल जासूसी बिल्कुल अलग मामला है। ऐसे मामलों पर अब ब्रिटेन की एम 16 विदेशी खुफिया एजैंसी प्रमुख का भी बयान इंटरनैशनल मीडिया में सामने आया है जिसमें कहा गया है कि चीन ये लंबे समय से करता आ रहा है। तो क्या चीन की उत्पादन और निर्माण में दुनिया भर में बादशाहत या कहें राज करने की स्थिति तक पहुंचने में इस कमर्शियल जासूसी का ही बड़ा योगदान है? इसका जवाब हां में निकल कर आ रहा है क्योंकि पश्चिम ने जो आरोप लगाया है उसमें कहा गया है कि चीन का कमॢशयल जासूसी नैटवर्क एकत्रित की गई सूचनाओं को चीन की कंपनियों से सांझा करता है। जाहिर-सी बात है इन सूचनाओं का उपयोग चीनी कंपनियां अपने प्रोडक्ट के निर्माण और गुणवत्ता और नए आविष्कारों के लिए करती हैं। इसे समझने के लिए हमें 80 के दशक में जाना होगा। 

वर्ष 1980 में चीन ने पहली बार 4 स्पैशल इकोनॉमिक जोन बनाए थे। जिन्हें एस.ई.जैड. कहा जाता है। यानी आज से तकरीबन 43 वर्ष पहले चीन ने बड़े औद्योगिक स्तर पर वस्तुओं के निर्माण की दिशा में बड़ा और ठोस कदम बढ़ा लिया था। इससे पहले आयरलैंड में 1950 में एस.ई.जैड. स्थापित किया गया था। उसके बाद कुछ अन्य देशों में भी ऐसे प्रयास हुए लेकिन वहां वो सफलता शायद नहीं मिल पाई जो चीन ने हासिल कर ली। चीन एस.ई.जैड. के माध्यम से न केवल विश्व में बड़ा निर्माता बन कर उभरा है, बल्कि विश्व की कई बड़ी कंपनियों को अपने उद्योग चीन में स्थापित करने के लिए प्रेरित करने में कामयाब रहा। सस्ती लागत और सस्ते कामगार इसका कारण शायद रहे होंगे। 

आज दुनिया भर के देशों में अनेकों वस्तुओं के निर्माण में काम आने वाले कच्चे माल (रॉ मैटीरियल) का जहां मुख्य आपूर्तिकत्र्ता है वहीं विश्व के अधिकांश देशों के बाजार चीन के तैयार माल से पटे पड़े हैं। जहां चीन का तैयार माल खूब बिक रहा है उन देशों की सूची में जहां अफ्रीका के गरीबी से जूझ रहे देश शामिल हैं वहीं चीन की मार्कीट में शुमार देशों में अमरीका जैसे विकसित और भारत जैसे विकासशील देश भी शामिल हैं। चीन ने न केवल अपने यहां बड़े और विशाल एस.ई.जैड. विकसित किए बल्कि अफ्रीकी देशों की भी एस.ई.जैड. शुरू करने में न केवल मदद की बल्कि उन्हें वित्तीय मदद भी की। 

उपलब्ध जानकारी के अनुसार चीन ने नाइजीरिया, डिजीबूटी, केन्या, जांबिया, मॉरीशस, मॉरिटानिया, अल्जीरिया और इजिप्ट जैसे देशों की एस.ई.जैड. स्थापित करने में मदद की और उन्हें चाइना अफ्रीका डिवैल्पमैंट फंड तथा फोरम ऑन चाईना अफ्रीका कोऑपरेशन के माध्यम से लंबी अवधि के लिए कर्ज भी दिया बदले में चीन ने अपने हितों को प्राथमिकता दी, वहां के बाजार इसका प्रमाण हैं। चीन आज दुनिया में छोटी छोटी वस्तुओं से लेकर बड़ी मशीनरी, कैमिकल्स सहित अनेक क्षेत्रों के लिए मुख्य आपूर्तिकर्ता बना हुआ है। भारत में भी एस.ई.जैड. की स्थापना का कार्य वर्ष 2005 के बाद विदेश निवेश कानून बनने के बाद चर्चा में आया था। आज देश में 359 एस.ई.जैड. पर कार्य चल रहा है और 425 को मंजूरी दी जा चुकी है। इसमें आधे से ज्यादा को मंजूरी 2005 के बाद प्राप्त हुई है। 

आज जब पश्चिम के देश चीन द्वारा कथित तौर पर की जा रही कमर्शियल एवं औद्योगिक जासूसी को लेकर चिंतित हैं और इस पर न केवल अब खुल कर बोल रहे हैं बल्कि चर्चा कर रहे हैं। ऐसे में भारत को निर्माण और निवेश के विषय को और ज्यादा गंभीरता से लेते हुए अपनी उत्पादन क्षमता को बढ़ाने पर जोर देना होगा। चीन का आबादी में मुकाबला भारत के साथ है लेकिन इससे बड़ा और असली मुकाबला उत्पादन और खपत के बाजार में दुनिया के लिए महत्वपूर्ण देश कौन होगा, इसको लेकर भी है। भारत के लिए यह अवसर ऐसा अवसर है जिसे गंवाने का जोखिम नहीं लिया जा सकता।-राजेंद्र कुमार राज                  
 

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