क्या इस असाधारण चुनाव का असाधारण नतीजा आएगा?

Edited By Updated: 28 May, 2024 05:51 AM

will this extraordinary election yield extraordinary results

क्या यह असाधारण चुनाव एक असाधारण परिणीति की तरफ बढ़ रहा है? इस सवाल का पक्का उत्तर तो 4 जून को ही दिया जा सकता है, लेकिन पिछले कुछ हफ्तों के सभी संकेत यह इशारा कर रहे हैं कि ‘400 पार’ के  दावे के साथ शुरू हुआ यह चुनाव उसके उलट एक नाटकीय नतीजा पेश कर...

क्या यह असाधारण चुनाव एक असाधारण परिणीति की तरफ बढ़ रहा है? इस सवाल का पक्का उत्तर तो 4 जून को ही दिया जा सकता है, लेकिन पिछले कुछ हफ्तों के सभी संकेत यह इशारा कर रहे हैं कि ‘400 पार’ के  दावे के साथ शुरू हुआ यह चुनाव उसके उलट एक नाटकीय नतीजा पेश कर सकता है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में लोकसभा के इस 18वें चुनाव को अनेक असाधारण बातों के लिए याद किया जाएगा। इतिहास दर्ज करेगा कि इस चुनाव में केवल ‘कौन बनेगा प्रधानमंत्री’ का फैसला नहीं होना था। इस चुनाव में सिर्फ पार्टियों और नेताओं का भविष्य दाव पर नहीं था, बल्कि भारत के लोकतंत्र, हमारे संविधान और हमारे भाईचारे का भविष्य दाव पर लगा हुआ था। इस लिहाज से इस चुनाव की तुलना संसद के चुनाव की बजाय संविधान सभा के चुनाव से करना अतिशयोक्ति नहीं होगी। 

चुनाव प्रक्रिया के लिहाज से भी यह चुनाव असाधारण था। चुनाव की तारीखों की घोषणा से एक सप्ताह पहले ही एक चुनाव आयुक्त का रहस्यमय इस्तीफा और उनकी जगह दो चुनाव आयुक्तों की मर्यादा विरुद्ध नियुक्ति ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवालिया निशान खड़े कर दिए थे। यही नहीं चुनाव प्रक्रिया शुरू होने से पहले और आचार संहिता लागू होने के बाद भी केन्द्र सरकार ने ई.डी., सी.बी.आई. और इंकम टैक्स विभाग के जरिए विपक्षी दलों के खिलाफ अभियान चलाए रखा। चुनाव से पहले 2 मुख्यमंत्रियों की गिरफ्तारी भारत के चुनावी इतिहास में असाधारण घटना थी। सच यह है कि विवादास्पद तरीके से नियुक्त चुनाव आयोग ने इस पूरी चुनावी प्रक्रिया के दौरान शेषन के कार्यकाल से बनी चुनाव आयोग की स्वतंत्र छवि को धूल में मिला दिया। चाहे प्रधानमंत्री और भाजपा के बड़े  नेताओं द्वारा खुल्लम खुल्ला धार्मिक भावनाओं के दुरुपयोग पर चुनाव आयोग की चुप्पी हो या सूरत और इंदौर में भी विपक्षी उम्मीदवारों की नाम वापसी या फिर मतदान के पूरे आंकड़े जारी करने में ही छह सप्ताह की देरी हो, इस चुनाव ने भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की छवि को असाधारण चोट पहुंचाई है। 

इस असाधारण चुनाव का प्रचार भी असाधारण रहा। सड़कों के होर्डिंग से लेकर टी.वी. और सोशल मीडिया के विज्ञापनों में चारों तरफ सत्ताधारी पार्टी ही छाई हुई थी। मुख्यधारा का मीडिया बेशर्मी से उनका प्रचार कर रहा था। चुनाव के दौरान नेताओं द्वारा एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कोई नई बात नहीं है लेकिन प्रधानमंत्री ने जिस स्तर पर उतरकर इस चुनाव में अंट-शंट बातें कीं वे उनके अपने रिकॉर्ड के लिहाज से भी असाधारण था। पहले दौर के बाद से ही प्रधानमंत्री ने खुलकर हिन्दू मुस्लिम ध्रुवीकरण की जहरीली भाषा शुरू कर दी। कांग्रेस के घोषणा पत्र पर मुस्लिम लीग की छाप जैसी बेतुके आरोप से शुरू कर प्रधानमंत्री ने नित नए काल्पनिक और मर्यादा विहीन आरोपों की झड़ी लगा दी। मंगलसूत्र छीन लेने, भैंस खोल लेने और  टोंटी उठा लेने जैसे हास्यास्पद आरोप लगाए, राम मंदिर पर ताला लगाने जैसी मनगढ़ंत बातें की गईं और चुनाव आयोग चुपचाप इसे देखता रहा। भारत के चुनावी इतिहास में कभी भी शीर्ष नेताओं द्वारा इतना घटिया और इतना अनर्गल प्रचार नहीं देखा गया। 

अब सवाल यह है कि क्या इस असाधारण चुनाव में जनता की एक असाधारण प्रतिक्रिया सामने आएगी, शुरू में ऐसा नहीं लगा। इस चुनाव को एक ठंडा चुनाव बताया गया जिसमें वोटर अपना मन खोल नहीं रहा था। लेकिन जैसे-जैसे यह चुनाव आगे बढ़ा तो समझ आने लगा कि इस चुप्पी के पीछे जनता का असंतोष है। पिछले 10 साल से ही जनता को झूठ और नफरत की राजनीति में उलझाए रखा गया है। अब उससे जनता ऊब रही है। केवल मोदी-मोदी सुनने की बजाय जनता अब मुद्दे सुनना चाह रही है। ‘म’ से मटन या मंगलसूत्र की बजाय ‘म’ से महंगाई और एम.एस.पी. के सवाल पूछना चाह रही है। 

अब केवल एक दौर और बाकी है और पूरे देश को परिणामों का इंतजार है। लेकिन इतना तय है कि यह चुनाव पलट गया है। 400 पार की हवा निकल चुकी है। प्रधानमंत्री और भाजपा के नेता भी अब इन हवाई दावों से कतराने लगे हैं। चुनाव से पहले जिन सर्वे और विशेषज्ञों ने भाजपा द्वारा 2019 के आंकड़े से पार जाने की बात कही थी अब वे पीछे निकलने का रास्ता ढूंढ रहे हैं। जैसे-जैसे जमीनी रिपोर्ट आने लग गई यह स्पष्ट हो गया है कि भाजपा को दक्षिण और पूर्व की तटीय पट्टी के राज्यों में जितने फायदे की उम्मीद थी उससे बहुत कम बढ़ौतरी मिल रही है। उधर  पिछले चुनाव में जिन-जिन राज्यों में भाजपा ने लगभग झाड़ू लगा दी थी वहां सब जगह भाजपा को घाटा हो रहा है। कर्नाटक, महाराष्ट्र और बिहार में भाजपा को घाटा होने का अनुमान शुरू से ही था लेकिन अब यह साफ हो रहा है कि उसे राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भी अप्रत्याशित नुकसान उठाना पड़ रहा है। अब भाजपा के प्रवक्ताओं और दरबारियों ने यह मानना शुरू कर दिया है कि अपने दम पर भाजपा 272 का आंकड़ा भी नहीं छू पाएगी। 2 महीने पहले तक अकेले भाजपा के लिए 400 पार के दावे करने वाले अब भाजपा और उसके सहयोगियों को जोड़कर किसी तरह एन.डी.ए. के 272 पार होने के दावों पर उतर आए हैं। 

इस दावे की सच्चाई तो 4 जून को ही पता लगेगी लेकिन इस असाधारण चुनाव की परिणीति के समय कई असाधारण सम्भावनाएं खुलने लगी हैं। अगर गुजरात से बिहार तक की पट्टी में भाजपा के खिलाफ एक अंडर करंट रहा हो तो इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि भाजपा और उसके सहयोगी मिलकर भी इंडिया गठबंधन से पीछे ही रह सकते हैं। फिलहाल तो उम्मीद यही करनी चाहिए कि वोटों की गिनती स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से होगी और इस असाधारण चुनाव में एक और दुखद असाधारण पहलू नहीं जुड़ेगा।-योगेन्द्र यादव 
 

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