हर तरह से अहम होंगे यह लोकसभा चुनाव

Edited By ,Updated: 16 Mar, 2019 04:01 AM

it will be important in every way that this lok sabha election

चुनाव आयोग द्वारा चुनावी शैड्यूल की घोषणा के साथ ही 17वीं लोकसभा के गठन के लिए चुनाव प्रक्रिया शुरू हो गई है। इन चुनावों में दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र एक बार फिर खुद को साबित करेगा जब 10 लाख मतदान केन्द्रों पर 90 करोड़ भारतीय नई सरकार चुनने के...

चुनाव आयोग द्वारा चुनावी शैड्यूल की घोषणा के साथ ही 17वीं लोकसभा के गठन के लिए चुनाव प्रक्रिया शुरू हो गई है। इन चुनावों में दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र एक बार फिर खुद को साबित करेगा जब 10 लाख मतदान केन्द्रों पर 90 करोड़ भारतीय नई सरकार चुनने के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे।

यह चुनाव हर प्रकार से महत्वपूर्ण होगा क्योंकि इस समय देश के मतदाता के सामने कई चुनौतियां और विकल्प होंगे। एक तरफ सत्ताधारी दल पिछले 5 वर्षों में किए गए अपने कार्यों तथा भविष्य के वायदों के साथ जनता का समर्थन मांगेगा, वहीं विपक्ष सत्ताधारी दलों के काम में कमियां गिना कर तथा एक बेहतर भविष्य का वायदा करते हुए जनता को लुभाने की कोशिश करेगा। ऐसे में मतदाता को पूर्ण सजगता और निष्पक्षता से अपने मताधिकार का प्रयोग करते हुए सही निर्णय लेना होगा। कृषि संकट, बढ़ती बेरोजगारी, सामाजिक और आर्थिक असमानता, खराब आर्थिक नीतियां विपक्षी दलों के लिए मुख्य मुद्दे होंगे। इस बात का संकेत कांग्रेस कार्य समिति के प्रस्ताव से भी मिल चुका है।

लोकतंत्र का भविष्य और मजबूती
यह चुनाव इन मुद्दों के अलावा भी बहुत कुछ है। यह हमारे लोकतंत्र के भविष्य और मजबूती के बारे में है। इस चुनाव में इस बात की भी परख होगी कि क्या हम अपने लोकतंत्र में समावेशी भावना और गणतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों को कहां तक बरकरार रख पाते हैं। इस बात की भी परख होगी कि क्या हम रोटी और स्वतंत्रता की नकली चर्चा से ऊपर उठ पाएंगे या नहीं। इस चुनाव में इस बात की भी परीक्षा होगी कि मजबूरी की निष्ठा, काल्पनिक सहमति तथा चुप करवाने वाले राष्ट्रवाद के समय में राजनीति की नैतिकता कहां तक स्थिर रह पाएगी।

इसके अलावा यह चुनाव इस बारे में भी है कि हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर होने से कैसे बचाया जाए तथा स्वतंत्र विचार और कल्पना को बचाते हुए कमजोर वर्ग के खिलाफ काम करने वालों को कैसे उचित जवाब दिया जाए। यह सरकार के मानवीय कष्टों के प्रति उदासीनता, स्थापित पद्धतियों के विघटन के बारे में भी है जहां पीड़ित को ही दोष देने की एक नई प्रवृत्ति शुरू हुई है। ये सारी बातें इस बात की ओर इशारा करती हैं कि कहीं न कहीं हमारी राजनीति चरमपंथ की ओर बढ़ रही है।

यह चुनाव हमारे लिए एक ऐसे अवसर की तरह है जहां हम राष्ट्र की पुरानी नैतिकता को फिर से हासिल कर सकें तथा उक्त चुनौतियों का मुकाबला करते हुए एक ऐसे लोकतांत्रिक ढांचे का निर्माण कर सकें जो जनता के लिए स्वतंत्रता और अधिक से अधिक प्रसन्नता का वायदा करता है। गहमा-गहमी भरे इस चुनाव में इस बात का भी खतरा रहेगा कि हल्के मुद्दों के शोर में अहम मुद्दे दबा दिए जाएं। यदि जनता ने परिपक्वता का परिचय दिया तो इससे हमारा लोकतंत्र गिरावट से बच सकेगा।

सत्ता और शक्ति संतुलन
हमारे संविधान निर्माताओं ने आधुनिक संवैधानिक आयाम हमारे संविधान में शामिल किए थे ताकि सत्ता और शक्ति एक जगह केन्द्रित न हो और उसका संतुलन तथा विकेन्द्रीयकरण बना रहे। उम्मीद की जानी चाहिए कि हमारे नेता इस बात को समझेंगे कि भारतीय लोकतंत्र को संयम और संतुलन की आधारशिला पर खड़ा करना होगा ताकि इसे जनोत्तेजक लोगों द्वारा भीड़तंत्र में न बदल दिया जाए।

इस चुनाव में हमें यह याद रखना चाहिए कि एक स्वतंत्रता समर्थक लोकतंत्र जो समानता और न्याय पर आधारित हो उसी माहौल में जीवित रह सकता है जिसमें राजनीतिक तथा वैचारिक विरोधियों को व्यक्तिगत दुश्मन नहीं समझा जाता। हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए हमें अपने आपको सभ्य बनाना होगा ताकि सत्ता में आने वाले लोग ‘भूखे शिकारी’ की तरह व्यवहार न करें।

भारत-पाक के बीच तनाव
यह चुनाव ऐसे समय में लड़ा जा रहा है जब भारत और पाकिस्तान के बीच माहौल तनावपूर्ण है। इस समय देश में सैन्य गौरव की भावनाएं भी हैं। यह भी लोगों के विवेक के लिए एक चुनौती होगी। ऐसी स्थिति में जनता को किसी भावना में आए बगैर अपने भविष्य तथा अनेक पहलुओं से अपने भले-बुरे को ध्यान में रखते हुए मतदान करना होगा। देश के मतदाताओं के लिए यह एक ऐसा अवसर है जिसमें उन्हें इस बात का परिचय देना होगा कि वे भीड़तंत्र, जहां संकीर्ण राष्ट्रवाद को नशे के तौर पर इस्तेमाल किया जाता हो, से ऊपर उठ कर विवेकपूर्ण निर्णय ले सकते हैं।

हम जानते हैं कि कोई राष्ट्र तभी मजबूत हो सकता है जब हम कायरता छोड़ कर एक स्वतंत्र और सूझवान नागरिक की तरह व्यवहार करें तथा निर्णय लेते समय तनाव का सामना करने के लिए भी तैयार रहें। एक स्वतंत्र राष्ट्र को यह बात हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए कि उसके नागरिकों की स्वतंत्रता तभी सुरक्षित रहेगी यदि वह विवेकपूर्ण निर्णय लेगा तथा स्वतंत्रता का संघर्ष एक स्थायी क्रांति है, जिसमें मानवीय गरिमा से जुड़े विचारों की परीक्षा होती रहती है।

ऐसे में जरूरत इस बात की है कि जो लोग स्वतंत्रता के पक्ष में हैं वे अपनी बात एकजुट होकर और जोर-शोर से रखें। यह बहुत घातक होगा यदि राजनीतिक दल जो ‘स्वतंत्रता’ (कुचलने, शोषण, डर की स्वतंत्रता) के पैरोकार बनते हैं, वे इस चुनाव को दूसरे स्वतंत्रता संग्राम के तौर पर प्रचारित करने में कामयाब हो जाएंगे। देश के पवित्र मूल्यों की रक्षा करके ही राजनीतिक दल अपनी घट रही विश्वसनीयता को वापस पा सकते हैं।

इस संबंध में 13 मार्च को राहुल गांधी द्वारा दिया गया वक्तव्य हौसला बढ़ाने वाला है। एक खुले समाज का समर्थन करने वाली शक्तियों को एकजुट होना होगा। राजनीति के इस मुश्किल समय में हम इतिहास का यह सबक नहीं भूल सकते कि बहुमत का मतलब स्वतंत्रता की गारंटी नहीं है, जब तक कि बहुमत स्वतंत्रता के लिए वोट न करे तथा यह सभी संभव होगा जब यह चुनाव भारत के स्वतंत्रता संबंधी विचार की रक्षा के लिए लड़ा जाएगा, एक ऐसा विचार जो फिलहाल बंधक है।-अश्वनी कुमार

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