लोकसभा चुनावों में ‘नेतृत्व’ का मुद्दा सबसे महत्वपूर्ण

Edited By ,Updated: 12 Mar, 2019 12:55 AM

leadership issue is the most important in lok sabha elections

लोकसभा चुनावों का कार्यक्रम घोषित कर दिया गया है। अगले 10 सप्ताहों के दौरान विचारों व विचारधाराओं का झगड़ा तथा उम्मीदवारों के बीच प्रतिस्पर्धा और नेतृत्व के लिए लड़ाई देखने को मिलेगी। आज मैं सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक की बात करूंगा जो 2019 के...

लोकसभा चुनावों का कार्यक्रम घोषित कर दिया गया है। अगले 10 सप्ताहों के दौरान विचारों व विचारधाराओं का झगड़ा तथा उम्मीदवारों के बीच प्रतिस्पर्धा और नेतृत्व के लिए लड़ाई देखने को मिलेगी। आज मैं सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक की बात करूंगा जो 2019 के आम चुनावों में सर्वाधिक प्रासंगिक है और वह है नेतृत्व का मुद्दा।

पदधारी प्रधानमंत्री
भारत ने बहुत से आम चुनाव देखे हैं जहां पदधारी प्रधानमंत्री को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ा। सत्ता विरोधी लहर एक ऐसी घटना है जहां अप्रसन्न लोग पदधारी को वोट के माध्यम से बाहर कर देते हैं। इस कारण विपक्ष को सफलता मिलती है। यद्यपि पदधारी में सहजता का स्तर तथा विश्वास ऊंचा है, उसकी कारगुजारी, नेतृत्व, आचार-विचार तथा ईमानदारी का परीक्षण किया जा चुका है तो पदधारी को सफलता मिलेगी।

देश ने गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर नरेन्द्र मोदी का 14 वर्षों के लिए आकलन किया। वह विकासोन्मुखता, राष्ट्रवादी दूरदृष्टि, अत्यंत निष्ठावान राजनीतिज्ञ के तौर पर एक मजबूत नेता के तौर पर उभरे। उन्होंने सुनिश्चित किया कि जो लोग उनके साथ या उनके नीचे काम करते हैं वे भी वही आचार-विचार अपनाएं जिसकी वे सार्वजनिक कार्यालयों में लोगों से अपेक्षा करते हैं। उन्होंने अपने खिलाफ झूठे तथा विद्वेषपूर्ण प्रचार का सामना किया। प्रचार में तथ्य प्रत्येक कानूनी लड़ाई में झूठे साबित हुए। उन्होंने शत्रुतापूर्ण प्रचार में खुद को फंसने की इजाजत नहीं दी। उन्होंने राज्य के लिए खुद का विकास का एजैंडा पेश किया और लगातार तीन बार लोकसभा चुनाव तथा तीन बार विधानसभा चुनाव जीते। उन्होंने जनता के साथ सीधा संवाद किया।

एक संचारक के तौर पर उन्होंने खुद को  दूसरों से अलग पेश किया। उन्होंने गुजरात में एक नई तरह का नेतृत्व बनाया और उसका पालन-पोषण किया। विश्व भर में गुजराती लोग उनमें अपनी पहचान देखते हैं। उन्होंने उन्हें प्रेरित किया है। वह 2014 की चुनावी दौड़ में तब शामिल हुए जब देश अनिर्णय की स्थिति में था, नेतृत्व का पतन हो चुका था, नीति पंगुता थी और सत्यनिष्ठा को बड़ी चोट पहुंची थी। लोगों ने उन्हें एक सुविधाजनक जनादेश से पुरस्कृत किया।

पांच वर्षों बाद देश कैसे उनका आकलन करता है
उन्होंने विश्व को साबित किया है कि भारत पर सत्यनिष्ठा तथा ईमानदारी से शासन किया जा सकता है। अपनी खुद की सुरक्षा करने में सक्षम होने के लिए विकास सुनिश्चित करने हेतु भारत कड़े निर्णय लेने में सक्षम है। भारत को विश्व में उच्च स्थान प्राप्त है। यह सर्वाधिक तेजी से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था बना है। इसने एक ऐसा आर्थिक माडल सुनिश्चित किया है जहां तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था से उत्पन्न अतिरिक्त स्रोतों को आधारभूत ढांचे पर खर्च किया जाता है अथवा गरीबों को हस्तांतरित किया जाता है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में। उन्होंने नारे नहीं दिए बल्कि गरीबी के स्तरों को नीचे लाने के लिए तथा रहन-सहन को आसान बनाने के लिए वास्तविक स्रोतों को हस्तांरित किया।  यहां तक कि उनके आलोचक भी उनके राष्ट्रीय सुरक्षा के सिद्धांत से घबराए हुए हैं।

उन्होंने भारत को एक ऐसे देश, जो केवल घरेलू तौर पर खुफिया एजैंसियों तथा सिक्योरिटी नैटवर्क के माध्यम से अपनी रक्षा और वैश्विक स्तर पर पाकिस्तान को अलग-थलग कर सकता था, से एक ऐसे देश में विकसित कर दिया जो आतंक को उसके मूल स्थान पर नष्ट करने में सक्षम है। 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक तथा 2019 की एयर स्ट्राइक की सफलताएं इस दिशा में संकेत करती हैं।

राजग के भीतर नेतृत्व का कोई मुद्दा नहीं है। यहां पूर्ण स्पष्टता है। नरेन्द्र मोदी राजग का नेतृत्व करते हैं और राजग की विजय की सूरत में वही प्रधानमंत्री होंगे। उनके नेतृत्व को राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता मिली है, उनकी रेटिंग्स अत्यंत ऊंची हैं। उनका पिछला रिकार्ड खुद इसकी गवाही देता है।

एक नजर दूसरी ओर जिस ‘महागठबंधन’ का वायदा किया गया था, वह कई झगड़ालू गठबंधनों के ‘गठबंधन’ में बदल रहा है। यह विरोधियों का एक आत्म-विनाशकारी गठजोड़ है। बसपा तथा सपा कांग्रेस के खिलाफ लड़ेंगी लेकिन अंतत: हाथ मिला लेंगी। ऐसा ही पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस तथा कांग्रेस-वाम गठबंधन के साथ होगा। हालांकि केरल में कांग्रेस तथा वामदल एक-दूसरे के खिलाफ लड़ेंगे। पी.डी.पी. तथा नैशनल कांफ्रैंस जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने के लिए एक हो गई थीं। आज वे चुनाव में एक-दूसरे की विरोधी हैं और या तो ‘स्वायत्तता’ अथवा ‘1953 के पहले के दर्जे’ के खतरनाक एजैंडे पर चल रही हैं लेकिन गठबंधन से हाथ मिला सकती है। बीजू जनता दल, टी.आर.एस. तथा वाई.एस. आर.सी.पी. महागठबंधन के साथ नहीं हैं।

नेतृत्व का मुद्दा एक पूर्ण पहेली है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी एक अपर्याप्त नेता हैं। वह थके हुए, आजमाए हुए तथा असफल हैं। उनका मुद्दों को समझने का अभाव डराने वाला है। उनकी आकांक्षा इस अस्त-व्यस्त समूह का नेता बनना है। ममता दीदी खुद को इस महागठबंधन की ‘सूत्रधार’ के तौर पर स्थापित कर रही है। वह पश्चिम बंगाल में कांग्रेस अथवा वामदलों के लिए एक भी सीट  नहीं छोड़ेंगी लेकिन चाहेंगी कि यदि वह एक वाहन चला रही हैं तो वे सब पिछली सीट पर बैठें। नीति मुद्दों पर उनकी स्वाभाविक टिप्पणियां प्रतिगामी हैं।

बसपा की नेता बहन मायावती का गत लोकसभा चुनावों में सफाया हो गया था। वह एक मजबूत बसपा तथा एक कमजोर कांग्रेस चाहती हैं। उन्होंने अपने पत्ते छुपा कर रखे हैं। वह उन्हें चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद ही खोलेंगी। उन्होंने उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ एक रणनीतिक ‘मजबूरी का गठबंधन’ बनाया है लेकिन इसके सहयोगियों के साथ ऐतिहासिक संघर्ष के घाव अभी भरे नहीं हैं। लचीली विचाराधाराओं वाले नेता मानते हैं कि वह सभी को स्वीकार्य हैं। विपक्षी गठजोड़ स्पष्ट नहीं है, यह पूरी तरह से नाजुक है। कोई भी राजनीतिक दल उल्लेखनीय संख्या में सीटें प्राप्त करने में सक्षम नहीं है। गठबंधन का एक स्थिर केन्द्र नहीं होगा। यह एक अत्यंत महत्वाकांक्षी, आत्म केन्द्रित तथा विद्रोही नेताओं का समूह है। कांग्रेस तथा वामदलों को छोड़कर उनमें से अधिकतर ने अतीत में भाजपा के साथ राजनीतिक लेन-देन किया है। उनकी विचारधाराएं तथा घटकों के साथ उनकी निष्ठा बहुत भिन्न है।

स्पर्धा
स्पर्धा एक ऐसे नेता के साथ है जिसके हाथों में देश विकास कर रहा और सुरक्षित है। वह विश्वसनीय हैं। उनके खिलाफ किसी नेता को पेश नहीं किया गया। इस दौड़ में कई नेता हैं, जिनमें से हर कोई दूसरे को चकमा देना चाहता है। यदि अतीत के रुझानों को देखें तो वे केवल एक अस्थायी सरकार का वायदा कर सकते हैं। आप अस्त-व्यस्तता के लिए सुनिश्चित हो सकते हैं। चुनाव स्पष्ट है-मोदी अथवा अस्त-व्यस्तता। - अरुण जेटली

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