मुख्तार अंसारी की मौत से सबक

Edited By ,Updated: 01 Apr, 2024 05:22 AM

lessons from mukhtar ansari s death

माफिया डॉन के नाम से मशहूर और बरसों से जेल की सजा भुगत रहे पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी की गत सप्ताह मौत हो गई। पिछले कुछ सालों में एक के बाद एक माफियाओं को रहस्यमय परिस्थितियों में मौत का सामना करना पड़ा है।

माफिया डॉन के नाम से मशहूर और बरसों से जेल की सजा भुगत रहे पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी की गत सप्ताह मौत हो गई। पिछले कुछ सालों में एक के बाद एक माफियाओं को रहस्यमय परिस्थितियों में मौत का सामना करना पड़ा है। फिर वह चाहे विकास दुबे की पलटी जीप हो या प्रयागराज के अस्पताल में जाते हुए तड़ातड़ चली गोलियों से ढेर हुए अतीक बंधु हों। 

अगर कोई यह कहे कि योगी आदित्यनाथ की सरकार साम, दाम, दंड, भेद अपनाकर उत्तर प्रदेश से एक-एक करके सभी माफियाओं का सफाया करवा रही है या ऐसे हालात पैदा कर रही है कि ये माफिया एक-एक करके मौत के घाट उतर रहे हैं, तो ये अर्धसत्य होगा। क्योंकि आज देश का कोई भी राजनीतिक दल ऐसा नहीं है जिसमें गुंडे, मवालियों, बलात्कारियों और माफियाओं को संरक्षण न मिलता हो। फर्क इतना है कि जिसकी सत्ता होती है वह केवल विपक्षी दलों के माफियाओं को ही निशाने पर रखता है अपने दल के अपराधियों की तरफ से आंख मूंद लेता है।

यह सिलसिला पिछले 35 बरसों से चला आ रहा है। आजादी के बाद से 1990 तक अपराधी राजनेता नहीं बनते थे। क्योंकि हर दल अपनी छवि न बिगड़े, इसकी चिंता करता था। पर ऐसा नहीं था कि अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त न रहा हो। चुनाव जीतने, बूथ लूटने और प्रतिद्वंद्वियों को निपटाने में तब भी राजनेता पर्दे के पीछे से अपराधियों से मदद लेते थे और उन्हें संरक्षण प्रदान करते थे। 

90 के दशक से परिस्थितियां बदल गईं। जब अपराधियों को यह समझ में आया कि चुनाव जितवाने में उनकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण होती है तो उन्होंने सोचा कि हम दूसरे के हाथ में औजार क्यों बनें? हम खुद ही क्यों न राजनीति में आगे आएं? बस फिर क्या था अपराधी बढ़-चढ़ कर राजनीतिक दलों में घुसने लगे और अपने धन-बल और बाहुबल के जोर पर चुनावों में टिकट पाने लगे। इस तरह धीरे-धीरे कल के गुंडे मवाली आज के राजनेता बन गए। इनमें बहुत से विधायक और सांसद तो बने ही, केंद्र और राज्य में मंत्री पद तक पाने में सफल रहे। जब कानून बनाने वाले खुद ही अपराधी होंगे तो अपराध रोकने के लिए प्रभावी कानून कैसे बनेंगे? यही वजह है कि चाहे दलों के राष्ट्रीय नेता अपराधियों के खिलाफ लंबे-चौड़े भाषण करें, चाहे पत्रकार राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए लेख लिखें और चाहे अदालतें राजनीतिक अपराधियों को कड़ी फटकार लगाएं, बदलता कुछ भी नहीं है। 

योगी आदित्यनाथ अगर यह दावा करें कि उनके शासन में उत्तर प्रदेश अपराध मुक्त हो गया तो क्या कोई इस पर विश्वास करेगा? जबकि आए दिन महिलाएं उत्तर प्रदेश में हिंसा और बलात्कार का शिकार हो रही हैं। पुलिस वाले होटल में घुस कर बेकसूर व्यापारियों की हत्या कर रहे हैं और थानों में पीड़ितों की कोई सुनवाई नहीं होती। हां यह जरूर है कि सड़कों पर जो छिछोरी हरकतें होती थीं उन पर योगी सरकार में रोक जरूर लगी है। पर फिर भी अपराधों का ग्राफ कम नहीं हुआ। 90 के दशक में आई वोरा समिति की रिपोर्ट अपराधियों के राजनेताओं, अफसरों व न्यायपालिका के साथ गठजोड़ का खुलासा कर चुकी है और इस परिस्थिति से निपटने के सुझाव भी दे चुकी है। बावजूद इसके आजतक किसी सरकार ने इस समिति की या 70 के दशक में बने राष्ट्रीय पुलिस आयोग की सिफारिशों को लागू करने में कोई रुचि नहीं दिखाई। ऐसी तमाम सिफाारिशें आजतक धूल खा रही हैं। 

ऐसा नहीं है कि सत्ता और अपराध का गठजोड़ आज की घटना हो। मध्य युग के सामंतवादी दौर में भी अनेक राजाओं का अपराधियों से गठजोड़ रहता था। ये तो प्रकृति का नियम है कि अगर समाज में ज्यादातर लोग सतोगुणी या रजोगुणी हों तो भी कुछ फीसदी ही लोग तो तमोगुणी होते ही हैं। ऐसा हर काल में होता आया है। फिर भी सतोगुणी और रजोगुणी प्रवृत्ति के लोगों का प्रयास रहता है कि समाज की शांति भंग करने वाले या आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को नियंत्रित किया जाए, उन्हें रोका जाए और सज़ा दी जाए।-विनीत नारायण 
 

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