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एकता का महाकुंभ, युग परिवर्तन की आहट

Edited By ,Updated: 28 Feb, 2025 07:45 AM

maha kumbh of unity the sound of change of era

महाकुंभ, संपन्न हुआ, एकता का महायज्ञ संपन्न हुआ। जब एक राष्ट्र की चेतना जागृत होती है तब वह सैंकड़ों साल की गुलामी की मानसिकता के सारे बंधनों को तोड़कर नव चैतन्य के साथ हवा में सांस लेने लगता है, तो ऐसा ही दृश्य उपस्थित होता है, जैसा हमने 13 जनवरी...

महाकुंभ, संपन्न हुआ, एकता का महायज्ञ संपन्न हुआ। जब एक राष्ट्र की चेतना जागृत होती है तब वह सैंकड़ों साल की गुलामी की मानसिकता के सारे बंधनों को तोड़कर नव चैतन्य के साथ हवा में सांस लेने लगता है, तो ऐसा ही दृश्य उपस्थित होता है, जैसा हमने 13 जनवरी के बाद से प्रयागराज में एकता के महाकुंभ,में देखा। 22 जनवरी, 2024 को अयोध्या में राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में मैंने देवभक्ति से देशभक्ति की बात कही थी। प्रयागराज में महाकुंभ, के दौरान सभी देवी-देवता, संत-महात्मा, बाल-वृद्ध, महिलाएं-युवा जुटे और हमने देश की जागृत चेतना का साक्षात्कार किया। यह महाकुंभ, एकता का महाकुंभ था जहां 140 करोड़ देशवासियों की आस्था एक साथ एक समय में इस एक पर्व से आकर जुड़ गई थी। तीर्थराज प्रयाग के इसी क्षेत्र में एकता, समरसता और प्रेम का पवित्र क्षेत्र शृंगवेरपुर भी है, जहां प्रभु श्रीराम और निषादराज का मिलन हुआ था। उनके मिलन का वह प्रसंग भी हमारे इतिहास में भक्ति और सद्भाव के संगम की तरह ही है। प्रयागराज का यह तीर्थ आज भी हमें एकता और समरसता की वह प्रेरणा देता है। 

बीते 45 दिन प्रतिदिन मैंने देखा कैसे देश के कोने-कोने से लाखों लोग संगम तट की ओर बढ़े जा रहे थे। संगम पर स्नान की भावनाओं का ज्वार  लगातार बढ़ता ही रहा। हर श्रद्धालु बस एक ही धुन में था- संगम में स्नान। मां गंगा, यमुना, सरस्वती की त्रिवेणी हर श्रद्धालु को उमंग, ऊर्जा और विश्वास के भाव से भर रही थी। पूरी दुनिया हैरान है कि कैसे एक नदी तट पर, त्रिवेणी संगम पर इतनी बड़ी संख्या में करोड़ों की संख्या में लोग जुटे। इन करोड़ों लोगों को न औपचारिक निमंत्रण था न ही किस समय पहुंचना है, उसकी कोई पूर्व सूचना थी। बस लोग महाकुंभ, चल पड़े...और पवित्र संगम में डुबकी लगाकर धन्य हो गए। 

इस महाकुंभ, में प्रयागराज पहुंचने वालों की संख्या ने निश्चित तौर पर एक नया रिकार्ड बनाया है। लेकिन इस महाकुंभ, में हमने यह भी देखा कि जो प्रयाग नहीं पहुंच पाए, वह भी इस आयोजन से भाव-विभोर होकर जुड़े। कुंभ से लौटते हुए जो लोग त्रिवेणी तीर्थ से पवित्र जल अपने साथ लेकर गए, उस जल की कुछ बूंदों ने भी करोड़ों भक्तों को कुंभ स्नान जैसा ही पुण्य दिया। कितने ही लोगों का कुंभ से वापसी के बाद गांव-गांव में जो सत्कार हुआ, जिस तरह पूरे समाज ने उनके प्रति श्रद्धा से सिर झुकाया, वह अविस्मरणीय है। प्रयागराज में जितनी कल्पना की गई थी उससे कहीं अधिक संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। इसकी एक वजह यह भी थी कि प्रशासन ने भी पुराने कुंभ के अनुभवों को देखते हुए ही अंदाजा लगाया था। लेकिन अमरीका की आबादी के करीब दोगुने लोगों ने एकता के महाकुंभ में हिस्सा लिया और डुबकी लगाई। 

साथियो, महाकुंभ की इस परंपरा से हजारों वर्षों से भारत की राष्ट्रीय चेतना को बल मिलता रहा है। हर पूर्णकुंभ में समाज की उस समय की परिस्थितियों पर ऋषियों-मुनियों, विद्वत् जनों द्वारा 45 दिनों तक मंथन होता था। इस मंथन में देश को, समाज को नए दिशा-निर्देश मिलते थे। इसके बाद हर 6 वर्ष में अर्धकुंभ में परिस्थितियों और दिशा-निर्देशों की समीक्षा होती थी। 12 पूर्ण कुंभ होते-होते, यानी 144 साल के अंतराल पर जो दिशा-निर्देश, जो परंपराएं पुरानी पड़ चुकी होती थीं उन्हें त्याग दिया जाता था, आधुनिकता को स्वीकार किया जाता था और युगानुकूल परिवर्तन करके नए सिरे से नई परंपराओं को गढ़ा जाता था। जिस तरह एकता के महाकुंभ, में हर श्रद्धालु, चाहे वह गरीब हो या संपन्न हों, बाल हो या वृद्ध हो, देश से आया हो या विदेश से आया हो, गांव का हो या शहर का हो, पूर्व से हो या पश्चिम से हो, उत्तर से हो या दक्षिण से हो, किसी भी जाति का हो, किसी भी विचारधारा का हो, सब एक महायज्ञ के लिए एकता के महाकुंभ, में एक हो गए। 

एक भारत-श्रेष्ठ भारत का ये चिर स्मरणीय दृश्य, करोड़ों देशवासियों में आत्मविश्वास के साक्षात्कार का महापर्व बन गया। अब इसी तरह हमें एक होकर विकसित भारत के महायज्ञ के लिए जुट जाना है। साथियो, आज मुझे वह प्रसंग भी याद आ रहा है जब बालक रूप में श्रीकृष्ण ने माता यशोदा को अपने मुख में ब्रह्मांड के दर्शन कराए थे। वैसे ही इस महाकुंभ, में भारतवासियों ने और विश्व ने भारत के सामथ्र्य के विराट स्वरूप के दर्शन किए हैं। हमें अब इसी आत्मविश्वास से एक निष्ठ होकर, विकसित भारत के संकल्प को पूरा करने के लिए आगे बढऩा है। भारत की यह एक ऐसी शक्ति है, जिसके बारे में भक्ति आंदोलन में हमारे संतों ने राष्ट्र के हर कोने में अलख जगाई थी। विवेकानंद हों या श्री ऑरोबिंदो हों, हर किसी ने हमें इसके बारे में जागरूक किया था। इसकी अनुभूति गांधी जी ने भी आजादी के आंदोलन के समय की थी। आजादी के बाद भारत की इस शक्ति के विराट स्वरूप को यदि हमने जाना होता और इस शक्ति को सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय की ओर मोड़ा होता, तो ये गुलामी के प्रभावों से बाहर निकलते भारत की बहुत बड़ी शक्ति बन जाती। लेकिन हम तब ये नहीं कर पाए। अब मुझे संतोष है, खुशी है कि जनता-जनार्दन की यही शक्ति, विकसित भारत के लिए एकजुट हो रही है। 

वेद से विवेकानंद तक और उपनिषद से उपग्रह तक, भारत की महान परंपराओं ने इस राष्ट्र को गढ़ा है। मेरी कामना है, एक नागरिक के नाते, अनन्य भक्ति भाव से, अपने पूर्वजों का, हमारे ऋषियों-मुनियों का पुण्य स्मरण करते हुए, एकता के महाकुंभ, से हम नई प्रेरणा लेते हुए, नए संकल्पों को साथ लेकर चलें। मैं जानता हूं, इतना विशाल आयोजन आसान नहीं था। मैं प्रार्थना करता हूं मां गंगा से...मां यमुना से...मां सरस्वती से...हे मां हमारी आराधना में कुछ कमी रह गई हो तो क्षमा करिएगा...। यू.पी. का सांसद होने के नाते मैं गर्व से कह सकता हूं कि योगी जी के नेतृत्व में शासन, प्रशासन और जनता ने मिलकर, इस एकता के महाकुंभ, को सफल बनाया। महाकुंभ, का स्थूल स्वरूप महाशिवरात्रि को पूर्णता प्राप्त कर गया है। लेकिन मुझे विश्वास है, मां गंगा की अविरल धारा की तरह, महाकुंभ, की आध्यात्मिक चेतना की धारा और एकता की धारा निरंतर बहती रहेगी।-नरेंद्र मोदी(माननीय प्रधानमंत्री)

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