महात्मा गांधी के संदेश ‘सदैव प्रासंगिक’

Edited By ,Updated: 02 Oct, 2019 12:39 AM

mahatma gandhi s message always relevant

150 वर्ष पूर्व, 2 अक्तूबर, 1869 को मोहनदास कर्मचंद गांधी नामक एक असामान्य व्यक्ति का गुजरात के पोरबंदर में जन्म हुआ। अपने पथप्रवर्तक विचारों तथा कार्रवाइयों से वह एक महात्मा बने तथा समय की धूल पर अपने न मिटाए जा सकने वाले पदचिन्ह छोड़े। आज, जब हम...

150 वर्ष पूर्व, 2 अक्तूबर, 1869 को मोहनदास कर्मचंद गांधी नामक एक असामान्य व्यक्ति का गुजरात के पोरबंदर में जन्म हुआ। अपने पथप्रवर्तक विचारों तथा कार्रवाइयों से वह एक महात्मा बने तथा समय की धूल पर अपने न मिटाए जा सकने वाले पदचिन्ह छोड़े। आज, जब हम उनकी 150वीं जयंती के अवसर पर सत्यनिष्ठापूर्वक अपने देश तथा मानवता के लिए उनके अथाह योगदान को याद करते हैं तो हमें विरासत के तौर पर दुनिया को दिए गए उनके उल्लेखनीय रूप से अक्षय खजाने पर हैरानी होती है। यह बात हमें अत्यंत गौरवान्वित करती है कि वह एक भारतीय थे तथा इतिहास के सर्वाधिक महत्वपूर्ण काल के दौरान वह हमारे नेता थे। 

जो विरासत उन्होंने हमें उपहार में दी है, दरअसल वह प्रेरणा का एक चिरस्थायी स्रोत है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिल्कुल सही कहा था कि जहां विश्व जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद तथा भ्रष्टाचार की निरंतर बढ़ती चुनौतियों से जूझ रहा है, गांधीवादी सिद्धांत एक नैतिक दिशासूचक के तौर पर काम करते हैं। गांधी जी का लोगों की सांझी इच्छा में स्थायी विश्वास, नैतिकता के लिए उनकी गहरी चिंता तथा सामाजिक-आॢथक असमानताओं को पाटने के लिए उनका अथक प्रयास और सांझी नियति में उनका विश्वास, आज जिस समय में हम रह रहे हैं, उसमें प्रासंगिक है। 

अहिंसा हथियारों से भी ताकतवर
बापू का सत्याग्रह का सिद्धांत राजनीतिक तथा सामाजिक बदलाव के एक शक्तिशाली औजार के तौर पर उभरने वाला था जैसा कि इतिहास ने साबित किया। महात्मा गांधी ने एक बार कहा था कि ‘अहिंसा मानवता के लिए एक महानतम शक्ति है। यह मानवीय चतुराई द्वारा बनाए गए विनाश के सर्वाधिक शक्तिशाली हथियारों से भी ताकतवर है।’ भारतीय होने के नाते यह हमारा गौरवपूर्ण सौभाग्य है कि संयुक्त राष्ट्र ने 2 अक्तूबर को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस घोषित किया है। संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव में ‘अहिंसा के सिद्धांत की वैश्विक प्रासंगिकता’ तथा ‘शांति, सहिष्णुता, समझ तथा अहिंसा’ की जरूरत की फिर से पुष्टि की गई। क्या महात्मा गांधी के मूल्यों को मानवता द्वारा इससे बड़ी श्रद्धांजलि हो सकती है? 

दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी का नस्लीय भेदभाव के साथ सामना उनकी मानव भावना की स्वतंत्रता के लिए जीवन पर्यंत लड़ाई में एक शक्तिशाली उत्प्रेरक साबित हुआ। वह दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के अमानवीय तथा घिनौने कानूनों के खिलाफ खड़े हुए तथा वहां से एक ऐसी राजनीतिक यात्रा शुरू की, जिसने इतिहास रच दिया। बापू की सत्य के लिए बेहिचक निष्ठा ने हिंसा के खिलाफ अङ्क्षहसा के साथ लड़ाई के लिए प्रेरित किया। मानवीय प्रकृति में गहरी नजर होने के साथ गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में सीखा कि हिंसा तथा उत्पीडऩ का केवल अङ्क्षहसा, दया तथा मानवता के साथ सामना किया जा सकता है। 1920 में ‘यंग इंडिया’ में लिखते हुए उन्होंने कहा था कि ‘सत्य तथा अङ्क्षहसा के माध्यम से बचाव के अतिरिक्त हमारे पास कोई अन्य रास्ता नहीं है। मैं जानता हूं कि युद्ध गलत है, यह एक निरंतर चलने वाली बुराई है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि खून-खराबे अथवा धोखाधड़ी से हासिल की गई स्वतंत्रता, स्वतंत्रता नहीं है।’ 

वैश्विक नेताओं पर चिरस्थायी प्रभाव छोड़ा
गांधी जी के दर्शन तथा जिस तरह से उन्होंने बस्तीवादी शासन से संबंधित शोषण तथा उत्पीडऩ के खिलाफ ‘अहिंसा’ का सबसे प्रबल हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया, उसने मार्टिन लूथर किंग, जूनियर, नेल्सन मंडेला तथा हो ची मिन्ह सहित कई वैश्विक नेताओं पर अपना चिरस्थायी प्रभाव छोड़ा। वह एक प्रकांड व्यक्ति थे जिनमें एक प्राचीन संत की दूरदृष्टि वाली बुद्धिमता तथा एक सामाजिक कार्यकत्र्ता का व्यवहारवाद तथा जुनून था। यहां हम अपनी राजनीति की गुणवत्ता पर चिंतनशील हैं तथा अपने प्रशासन में सुधार कर रहे हैं, स्वराज की उनकी संकल्पना तथा प्रशासन बारे उनके दृष्टांत को एक ‘स्क्वायर’ तथा ‘सर्कल’ के ज्यामीतिय लक्षण में व्यक्त किया गया। 02.01.1937 को ‘हरिजन’ पत्रिका में लिखते हुए उन्होंने स्वराज बारे अपना दृष्टांत दिया था: 

‘स्वराज बारे मेरी संकल्पना को लेकर कोई गलती न हो... एक छोर पर आपके पास राजनीतिक स्वतंत्रता है, दूसरे पर आॢथक। इसके दो अन्य छोर हैं। उनमें से एक है नैतिकता तथा सामाजिक तथा उसके बाद का छोर है सर्वोच्च मायनों में धर्म। इसमें हिन्दूवाद, इस्लाम, ईसाइयत आदि शामिल हैं लेकिन उन सब में से सर्वोच्च है जिसे हम स्वराज का चौराहा (स्क्वायर) कहेंगे और इनमें से यदि कोई भी कोण वास्तविक न हुआ तो इसकी आकृति बिगड़ जाएगी।’ 

स्वराज चौक के 4 कोने हमारे समकालीन संदर्भ में उतने ही प्रासंगिक हैं जितने कि तब थे, जब गांधी जी ने उन्हें बनाया था। एक अन्य संकल्पना जो आज बहुत प्रासंगिक बन रही है, वह है विकास को एक जन केन्द्रित प्रक्रिया बनाना। गांधी जी के प्रशासन के दृष्टांत में लोग परिवर्तन के मुख्य कारक थे। उनके लिए विकेन्द्रीयकरण विश्वास का एक अनुच्छेद था। जैसा कि उन्होंने स्वसिद्ध किया था, ‘स्वतंत्रता बिल्कुल नीचे से शुरू होनी चाहिए। इस तरह से प्रत्येक गांव एक गणराज्य होगा या पंचायत के पास पूर्ण शक्तियां होंगी।’ उन्होंने अपनी आदर्श दुनिया की तुलना रामराज्य से की क्योंकि यह सच्चे लोकतंत्र का उदाहरण था। 

ग्राम स्वराज का सपना
गांधी जी के ग्राम स्वराज का सपना आज और भी अधिक प्रासंगिक है जब हमारा देश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एक सतत् तथा समग्र विकास मॉडल के माध्यम से ग्रामीण-शहरी विभाजन को पाटना चाहता है। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, आधारभूत ढांचा तथा स्वच्छता के दखल शामिल हैं जैसी कि महात्मा गांधी ने कल्पना की थी। छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों को खत्म तथा साम्प्रदायिक सद्भावना को प्रोत्साहित करना गांधियन विचार के केन्द्र में था। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 2014 में शुरू किया गया स्वच्छ भारत अभियान सम्भवत: गांधी जी को सबसे बड़ी श्रद्धांजलियों में से है। महात्मा गांधी का सफाई पर जोर इस पहल के लिए प्रेरणा थी। इसे जन आंदोलन बनाना गांधियन आदर्श के अनुरूप है। जब हम अपने संसदीय लोकतंत्र की गुणवत्ता पर आत्ममंथन करते हैं तो गांधी जी के शब्द कुछ प्रकाशमान मार्गदर्शन करते हैं। 1920 में यंग इंडिया में लिखते हुए उन्होंने चेतावनी दी थी कि ‘एक सर्वाधिक दोषहीन संविधान तुच्छ बन सकता है यदि इसका संचालन स्वार्थी अथवा अज्ञानी पार्षद करें’ तथा ‘यदि मतदाता प्रत्येक 3 या अधिक वर्षों के बाद केवल अपना वोट डालने के लिए जाग जाएं और फिर सो जाएं तो उनके सेवक उनके मालिक बन जाएंगे।’ गांधी जी के लिए जनसेवा हेतु किरदार सबसे महत्वपूर्ण मानदंड था। 

विधायकों के व्यवहार पर गांधी जी का स्पष्ट कहना था कि अपने विरोधियों के साथ निपटने के दौरान उनमें पूरी ईमानदारी तथा सद्भावना होनी चाहिए। उन्हें संदेहपूर्ण राजनीति में संलिप्त नहीं होना चाहिए, न ही धोखे से वार करना चाहिए और अपने विरोधियों की कमजोरियों का कभी भी फायदा नहीं उठाना चाहिए। गांधी जी प्रार्थना की शक्ति में विश्वास करते थे, जो उनके अनुसार किसी का हृदय साफ कर सकती थी यदि कोई उसे मानवता के साथ मिला लेता। उनका वैश्विक प्रेम तथा भाईचारे पर जोर तथा विश्व की सबसे छोटी रचना के साथ सहानुभूति को वर्तमान गुस्से, असहिष्णुता तथा नफरत के संदर्भ में उभारना चाहिए। ये गांधी जी के अनमोल रत्नों के अथाह सागर में से बुद्धिमता के उच्च टुकड़े हैं, जो उन्होंने हमें दिए हैं। जहां हम महात्मा गांधी को उनकी 150वीं जयंती पर श्रद्धापूर्वक श्रद्धांजलि दे रहे हैं, हम आंतरिकीकरण तथा गांधियन सिद्धांतों को अपने रोजमर्रा के जीवन में अपनाकर अपने जीवन को बदलने का प्रयास करें।-एम. वेंकैया नायडू

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