मोदी के खिलाफ बी.बी.सी. का निशाना चूक गया

Edited By ,Updated: 30 Jan, 2023 05:15 AM

modi against the b b c missed the target

बी. बी.सी. ब्रिटिश होने के नाते 2002 के गुजरात दंगों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ जहर उगल रहा है। यह बहुत अच्छा होता यदि बी.बी.सी. भारत के भीतर दर्ज किए गए पहले साम्प्रदायिक दंगे को भी कवर करे जो 1893 में बॉम्बे (अब मुम्बई) में हुए थे। उस...

बी. बी.सी. ब्रिटिश होने के नाते 2002 के गुजरात दंगों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ जहर उगल रहा है। यह बहुत अच्छा होता यदि बी.बी.सी. भारत के भीतर दर्ज किए गए पहले साम्प्रदायिक दंगे को भी कवर करे जो 1893 में बॉम्बे (अब मुम्बई) में हुए थे। उस समय भारत में अंग्रेजों का शासन था। इन दंगों में 100 से ज्यादा लोगों की हत्या तथा 800 व्यक्ति गंभीर रूप से घायल हुए थे। अंग्रेजों ने भारत में साम्प्रदायिक दंगों को जन्म दिया और अब हमें बी.बी.सी. से प्रवचन सुनने को मिल रहे हैं। हताहतों की संख्या के संदर्भ में, अब तक का सबसे भीषण साम्प्रदायिक दंगा 1984 का दिल्ली का सिख विरोधी दंगा था जिसमें 2733 से ज्यादा लोग मारे गए। प्राथमिक अभियुक्तों पर या तो आरोप साबित नहीं हुआ या फिर वे बरी हो गए। 

हताहतों की दृष्टि से 1983 में असम के नेली में हुए दंगों में 1819 से अधिक लोग मारे गए थे। उस समय देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं और असम में राष्ट्रपति शासन लागू था। इन दंगों को लेकर न तो कोई सिविल सोसाइटी कार्यकत्र्ता आगे आए, न कोई मीडिया ट्रायल, न कोई दोष सिद्धि और न ही कोई अदालत द्वारा संज्ञान लिया गया। बाद में राजीव गांधी की सरकार ने 240 से अधिक अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट वापस ले ली। इस पर कोई बी.बी.सी. की डाक्यूमैंट्री नहीं बनी। 1980 में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में साम्प्रदायिक दंगों में 1500 से अधिक लोग मारे गए। उस समय उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और वी.पी. सिंह राज्य के मुख्यमंत्री थे। इस दौरान भी कोई दोष सिद्धि नहीं हुई। 1989 में भागलपुर में साम्प्रदायिक दंगे हुए जिनमें 1161 लोग मारे गए।  उस समय बिहार में कांग्रेस की सरकार सत्ता में थी और मुख्यमंत्री एस.एन. सिन्हा थे। एक बार फिर से कोई बी.बी.सी. का वृत्त चित्र नहीं बन पाया, और न ही कोई सिविल सोसाइटी कार्यकत्र्ता आगे आए। 

1993 में बॉम्बे साम्प्रदायिक दंगों में 872 लोगों की मौत हुई। सुधाकर नायक के नेतृत्व में उस समय महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार थी। न कोई सिविल सोसाइटी कार्यकत्र्ताओं का प्रदर्शन, न ही मीडिया ट्रायल और न ही कोई बी.बी.सी. की डाक्यूमैंट्री। 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों में 62 लोगों से ज्यादा की हत्या हुई। इन दंगों के कारण 50,000 परिवार विस्थापित हुए। उस समय केंद्र में यू.पी.ए. और उत्तर प्रदेश में सपा सरकार थी। 1950 से लेकर 1995 के मध्य 1194 साम्प्रदायिक दंगों का दस्तावेजीकरण किया गया जिनमें से 73 प्रतिशत दंगे जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के वंशवादी शासनकाल के दौरान हुए। उपर्युक्त आंकड़ों में जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पंडितों और अन्य हिंदुओं पर की गई जातीय और साम्प्रदायिक हिंसा शामिल नहीं है जो 1986 से शुरू हुई और आज भी जारी है।

1986 में नैशनल कांफ्रैंस के सी.एम. गुलाम शाह, फिर फारूक अब्दुल्ला और मुफ्ती के तहत कश्मीरी ङ्क्षहदू लोगों का घाटी से पलायन जारी रहा। हजारों लोग मारे गए और लाखों बेघर हुए। अब गुजरात राज्य की बात करते हैं। इसमें 1950 से 1995 के बीच 244 साम्प्रदायिक दंगे हुए थे जिनमें 1601 से अधिक लोग मारे गए थे। इस अवधि के दौरान अहमदाबाद शहर में लगभग 71 साम्प्रदायिक दंगे हुए जिनमें 1071 से अधिक लोग मारे गए। 1969 में सितम्बर से लेकर अक्तूबर तक गुजरात में साम्प्रदायिक दंगों में 512 से अधिक लोग मारे गए। उस समय राज्य में कांग्रेस का शासन था और सी.एम. थे हितेंद्र देसाई। 

किसी सिविल सोसाइटी में सक्रियता दिखाई नहीं दी, न कोई अदालत ने संज्ञान लिया और न ही कोई मीडिया ट्रायल हुआ।अप्रैल 1985 में अहमदाबाद शहर में साम्प्रदायिक दंगे हुए जिसमें 300 से अधिक लोग मारे गए। उस समय एम.एस. सोलंकी मुख्यमंत्री थे और राज्य में कांग्रेस की सरकार थी। जुलाई 1986 में फिर से अहमदाबाद शहर में साम्प्रदायिक दंगे भड़क उठे जिसमें 59 लोग मारे गए। न कोई दोष सिद्धि, न ही कोई बी.बी.सी. का वृत्तचित्र। कांग्रेस सरकार ने किसी भी राजधर्म का पालन नहीं किया। दिसम्बर 1992 में गुजरात के सूरत में साम्प्रदायिक दंगे हुए जिनमें 175 से अधिक लोग मारे गए। उस समय कांग्रेस की सरकार थी। तब भी कोई बी.बी.सी. की डॉक्यूमैंट्री नहीं बन पाई और न ही सिविल सोसाइटी आगे आई। 

अब आते हैं गोधरा ट्रेन बर्निंग के मुद्दे पर। 2002 में ट्रेन की एक बोगी को आग लगा दी गई जिसमें 59 यात्री जिंदा जल गए। उसके बाद गुजरात दंगे हुए जिनमें 1100 से अधिक लोग मारे गए। उस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के सी.एम. थे। 249 आरोपियों को दोषी करार दिया गया जिनमें 184 हिंदू और 65 मुसलमान थे। स्वतंत्र भारत के बाद पहला और एकमात्र उदाहरण है कि इतनी बड़ी संख्या में दंगाइयों को किसी राज्य सरकार द्वारा आरोपित किया गया और अदालतों द्वारा दोषी ठहराया गया। हालांकि व्यापक कारणों से कुछ सिविल सोसाइटियों और मोदी विरोधी कार्यकत्र्ताओं ने तत्कालीन सी.एम. मोदी को गुजरात दंगों में उनकी मिलीभगत के लिए भारत के भीतर कई अदालतों में उन्हें घसीटा। सर्वोच्च न्यायालय के तहत एक एस.आई.टी. का गठन किया गया और 4 आयोगों का भी गठन हुआ। केंद्र और राज्य सरकार द्वारा पूछताछ/जांच की गई। 

एस.आई.टी., जांच आयोग, गुजरात हाईकोर्ट और तत्कालीन सर्वोच्च न्यायालय को गुजरात दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी की मिलीभगत का कोई सबूत नहीं मिला और सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया गया। मोदी के खिलाफ तीस्ता सीतलवाड़ को उनके बेबुनियाद आरोपों और कुछ दस्तावेजों में हेर-फेर करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कड़ी फटकार लगाई गई। सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि तीस्ता अपने गुप्त उद्देश्यों के लिए गवाहों की भावनाओं का शोषण कर रही थी। यू.के. के पी.एम. ऋषि सुनक ने पहले ही बी.बी.सी. द्वारा उद्धृत यू.के. सरकार की रिपोर्ट को उसके वृत्तचित्र को विश्वसनीयता प्रदान करने के लिए रद्द कर दिया है। बी.बी.सी. का एक और निशाना चूक गया। 

Let's Play Games

Game 1
Game 2
Game 3
Game 4
Game 5
Game 6
Game 7
Game 8

Related Story

    IPL
    Lucknow Super Giants

    Royal Challengers Bengaluru

    Teams will be announced at the toss

    img title
    img title

    Be on the top of everything happening around the world.

    Try Premium Service.

    Subscribe Now!