हमारे अस्तित्व के स्रोत से जुड़ा है मातृत्व

Edited By ,Updated: 03 Jan, 2023 06:49 AM

motherhood is connected to the source of our existence

यह संस्कृति हमेशा से मां देवत्व के साथ और देवत्व मां के साथ जुड़ी रही है क्योंकि मातृत्व हमारे अस्तित्व के स्रोत से जुड़ा हुआ है। आज भी दुनिया भर के लोग ‘माता पृथ्वी’, ‘मातृ भूमि’ और आधुनिक रूप में ‘मदर बोर्ड’ के बारे में बात करते हैं।

यह संस्कृति हमेशा से मां देवत्व के साथ और देवत्व मां के साथ जुड़ी रही है क्योंकि मातृत्व हमारे अस्तित्व के स्रोत से जुड़ा हुआ है। आज भी दुनिया भर के लोग ‘माता पृथ्वी’, ‘मातृ भूमि’ और आधुनिक रूप में ‘मदर बोर्ड’ के बारे में बात करते हैं। मातृत्व की स्तुतियां अनेक हैं फिर भी अवधारणा को घोर गलत समझा गया है। 

मातृत्व का वास्तव में क्या अर्थ है। जब हम मां शब्द कहते हैं तो हमारा मतलब किसी ऐसे व्यक्ति से होता है जिसने कम से कम एक पल के लिए दूसरे के जीवन के लिए पुन: समर्पण का अनुभव जाना हो। एक बार बच्चे जब बड़े हो जाते हैं तो एक मां को उनके साथ अपनी समस्याएं हो सकती हैं लेकिन नई पीढ़ी का जीवित रहना मां के अपने शिशु के साथ गहन एकता के अनुभव पर निर्भर करता है। मां के शरीर की कोशिकाएं इस नए जीवन की जरूरतों के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करती हैं। ये वही हैं जो मातृत्व को ऐसा अनोखा मानवीय अनुभव बनाती हैं। 

मातृत्व की पवित्रता की सच्चाई इस तथ्य में निहित है कि प्रकृति एक व्यक्ति को यह महसूस करने में मदद करती है कि व्यक्तिगत शरीर की संकीर्ण सीमाओं से परे और भी बहुत कुछ है। यह मातृत्व को एक उल्लेखनीय प्राकृतिक संभावना बनाती है जो आगे की ओर एक कदम है। एक मां के रूप में आप अपनी खुद की इच्छाओं और नापसंदों से ऊपर उठ जाते हैं। आप अपने से अधिक किसी चीज के साथ एकता की भावना का अनुभव करते हैं। इस उपहार को योग या फिर मिलन की स्थिति में विस्तारित किया जा सकता है जिसका अर्थ है पूरे अस्तित्व के साथ अनुभावनात्मक एकता की स्थिति। 

मातृत्व एक जैविक स्थिति नहीं होनी चाहिए। केवल बच्चे को जन्म देना ही कोई बड़ी उपलब्धि नहीं होती है। कई संस्कृतियों ने उन महिलाओं को कलंकित किया है जो बच्चे पैदा नहीं करतीं। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। मातृत्व का जादू निर्विवाद है लेकिन इसकी पवित्रता प्रजनन प्रक्रिया में नहीं है। योगिक विज्ञान मातृत्व के विशेषाधिकार को हर इंसान को उपलब्ध करवाता है, चाहे वह किसी भी लिंग का हो। जैविक मां और  बच्चे के बीच संबंध प्रजातियों के अस्तित्व को सुनिश्चित करता है लेकिन यह सरल प्रजनन प्रक्रिया भी श्रेष्ठता का द्वार बन सकती है। समावेश की चयनात्मक भावना जिसके साथ एक मां अपने बच्चे को देखती है, को विस्तृत करके इसमें पूरी दुनिया को शामिल किया जा सकता है। एक समावेश जो पूर्ण और बिना शर्त है यही योगी का आंतरिक अनुभव है। 

दुर्भाग्य से कई माताएं स्वामित्व के साथ पालन-पोषण को भ्रमित करती हैं। हालांकि मैं परिवार में सबसे छोटा था फिर भी मेरी मां अक्सर मुझे बड़ा भाई मानती थीं। एक बार जब उन्होंने अपने बारे में कुछ कोमलता से बात की तो मैंने उनसे बहुत ही सहज तरीके से पूछा, ‘‘अगर मैं अगले घर में पैदा होता तो क्या तुम तब भी मेरे बारे में ऐसा ही महसूस करतीं?’’ वह टूट गईं और चली गईं और जब वह लौटीं तो उनकी आंखों में आंसू थे। उन्होंने मेरे पैर छुए। उस दिन उनमें एक तरह का वैराग्य जागा जब उन्होंने महसूस किया कि हम सभी की पहचान कितनी है। 

जब मैं लोगों को आध्यात्मिक प्रक्रिया में दीक्षा देता हूं तो सबसे पहले मैं उनसे पूछता हूं कि क्या वे ‘दुनिया की मां’ बनने को तैयार हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक सच्चा मातृत्व किसी एक व्यक्ति को वस्तु, पालतू जानवर के कब्जे या जुनून में बदलने के बारे में नहीं है। इसकी बजाय यह पूर्ण फ्रेम और बिना शर्त समावेश की स्थिति है जहां आप सब कुछ और हर किसी को देखते हैं, न कि केवल अपने जैविक बच्चे को। ऐसी अवस्था में तुम्हारे कार्य तुम्हारी व्यक्तिगत इच्छाओं से निर्धारित नहीं होते हैं। इसकी बजाय आप बस वही करते हैं जो किसी भी समय आवश्यक होता है। यदि मां आपको सृष्टि की गोद में पहुंचाती है तो योग विज्ञान आपको निर्माता की गोद में पहुंचाने में सक्षम है। मातृत्व का यही उपहार अधिक गहरा अनुभव है जो सभी के लिए खुला है।-सद्गुरु जग्गी वासुदेव 

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