कश्मीर संबंधी नीतियों में निरंतरता अपनाने की जरूरत

Edited By Punjab Kesari,Updated: 26 Jun, 2018 03:05 AM

need for continuity in kashmir related policies

आइंस्टीन ने एक बार कहा था, ‘‘उन्माद एक ही चीज को बार-बार कर रहा है और अलग-अलग परिणामों की अपेक्षा कर रहा है।’’ यह बात कश्मीर पर भी लागू होती है और इसके लिए हमें आइंस्टीन के समीकरण को लागू करने की आवश्यकता नहीं है। अप्रैल 2015 में जम्मू-कश्मीर के...

आइंस्टीन ने एक बार कहा था, ‘‘उन्माद एक ही चीज को बार-बार कर रहा है और अलग-अलग परिणामों की अपेक्षा कर रहा है।’’ यह बात कश्मीर पर भी लागू होती है और इसके लिए हमें आइंस्टीन के समीकरण को लागू करने की आवश्यकता नहीं है। 

अप्रैल 2015 में जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने भाजपा-पी.डी.पी. गठबंधन को उपद्रवग्रस्त राज्य को बदलने के लिए नए सपने दिखाने का श्रेय दिया था। 3 वर्ष बाद राज्य में कई उतार-चढ़ाव आए और शासन का एजैंडा नामक दस्तावेज निष्प्रभावी हो गया। उपद्रवग्रस्त राज्य राजनीतिक संकट में फंस गया। फलत: राज्य में राज्यपाल शासन लगाया गया। 

घाटी में तनाव बढ़ रहा है, नाकेबंदी और तलाशी जारी है। सुरक्षा बल आतंकवादियों को खदेडऩे का प्रयास कर रहे हैं जिसके कारण घाटी की सड़कों पर लोगों में आक्रोश बढ़ रहा है। पिछले सप्ताह सुरक्षा बलों ने 4 बड़े आतंकवादियों को मार गिराया। फिर भी हमारे नेताओं के बीच तू-तू, मैं-मैं जारी है। भाजपा ने कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि वह अलगाववादियों की भाषा बोल रही है कि सेना ने आतंकवादियों से अधिक नागरिकों को मारा है और सैफुद्दीन सोज का कहना है कि स्वतंत्रता कश्मीरियों की पहली पसंद है जबकि कांग्रेस का कहना है कि कश्मीर मोदी सरकार की सबसे बड़ी विफलताओं में से एक है। 

नि:संदेह हिन्दुत्व ब्रिगेड महबूबा सरकार की बर्खास्तगी को घाटी में अलगाववादियों और उनके प्रति सहानुभूति रखने वालों के प्रति मोदी की कठोर नीति के रूप में भुनाने का प्रयास करेगा। मोदी सरकार का यह कदम जम्मू में भाजपा के जनाधार को भी मजबूत करने का कार्य करेगा जिसका मानना है कि भाजपा पी.डी.पी. की नीतियों के समक्ष झुक रही थी और सुरक्षा संबंधी कठोर मुद्दों पर नरम नीति अपना रही थी। वस्तुत: पी.डी.पी.-भाजपा सरकार के गिरने से केन्द्र को राज्य में स्थिति को संभालने की खुली छूट मिल गई है जहां पर पाक-प्रायोजित आतंकवाद के कारण सीमाओं पर तनाव जारी है, आतंकवाद बढ़ता जा रहा है और घाटी में खून-खराबा जारी है जिसके कारण राज्य में प्रशासन चलाना मुश्किल हो रहा है। 

इसके अलावा भारत और पाकिस्तान के नेतृत्व द्वारा कश्मीर मुद्दे को अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाने के कारण कश्मीर समस्या  और उलझ गई है। राज्य में 2 तरह के प्रतिस्पर्धी राष्ट्रवाद अलग-अलग तरह से कार्य कर रहे हैं। कश्मीरी स्वतंत्र होना चाहते हैं जबकि भारतीय इस बात पर बल दे रहे हैं कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। कश्मीर के कुछ जानकारों का कहना है कि केन्द्र सरकार यह गलती कर रही है कि वह राज्य में अलगाववाद की गहरी जड़ों को नजरअंदाज कर रही है। साथ ही वह कश्मीर में राजनीतिक चेतना की जटिलता को भी नहीं समझ पा रही जोकि दैनिक प्रशासन से अलग मुद्दा है। 

राज्य में वर्षों से उपद्रव जारी है और वहां एक व्यापक आंदोलन चल रहा है इसलिए कश्मीर को धन, सुरक्षा बल और ताकत के अलावा एक भावनात्मक पैकेज की आवश्यकता है जो कश्मीरी अलगाववादियों को अपना आक्रोश व्यक्त करने का अवसर देगा। यह पैकेज ऐसा होगा जिससे कश्मीरियों को सम्मान की नजरों से देखा जाने लगेगा, उनकी गरिमा बहाल होगी और उनके अपमान पर मरहम लगाने का प्रयास होगा। कश्मीरियों की आहत भावनाओं पर मरहम लगाना एक शुरूआत होगी इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि भारत सरकार कश्मीरियों से भावनात्मक रूप से जुड़े। इसके लिए भाजपा, कांग्रेस, राकांपा, पी.डी.पी. आदि सभी पार्टियां जिनके बड़े छात्र संगठन हैं, अपने युवा प्रतिनिधिमंडल को कश्मीर भेजें और कश्मीरी युवाओं के साथ समय बिताएं। इन पार्टियों के महिला विंगों को भी ऐसा ही कदम उठाना चाहिए। 

हालांकि पाकिस्तान और उसके एजैंट यह सुनिश्चित करेंगे कि कश्मीरियों की भावनाओं पर मरहम न लगे। रंग में भंग डालने वाले अनेक तत्व होंगे किन्तु आशा की जाती है कि कश्मीरी वास्तविक मित्रता को नकारेंगे नहीं। मध्यावधि उपायों के रूप में सरकार को कश्मीर के लिए न केवल औपचारिक अपितु कश्मीर की जनता को शिक्षित करने के लिए स्वैच्छिक पैकेज की घोषणा करनी चाहिए। इसका उदाहरण पाक-अधिकृत कश्मीर है जहां पर पाकिस्तान इस बात को प्रचारित कर रहा है कि आजाद कश्मीर वास्तव में आजाद है किन्तु यह एक झूठ है। पिछले 70 वर्षों में भारत सरकार ने इस झूठ का पर्दाफाश करने का प्रयास नहीं किया। यह आजाद तो है ही नहीं अपितु उसे पाकिस्तान के अन्य प्रांतों के बराबर शक्तियां भी प्राप्त नहीं हैं जबकि जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता प्राप्त है जिसके चलते आम कश्मीरी यह सोचकर आजादी समर्थक नारे लगाता रहता है कि उसे भी आजाद कश्मीर की तरह स्वतंतत्रा मिलेगी। 

यह सच है कि ऐसे नारे लगाने वालों में कुछ भाड़े के टट्टू होते हैं जो सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी भी करते हैं जबकि अन्य लोग कश्मीर की मूल समस्या के समाधान और राज्य के समक्ष सामाजिक, आर्थिक चुनौतियों के समाधान में सरकार की विफलता से चिंतित हैं। राज्य में आतंकवाद और उपद्रव की समस्या के समाधान के लिए त्रिकोणीय रणनीति की आवश्यकता है जिनमें प्रशासन, विकास और सुरक्षा प्रमुख हैं। इसके अलावा लोगों की धारणा में भी बदलाव लाने की आवश्यकता है। सुरक्षा की स्थिति में सुधार आया है जबकि कुशासन और पर्याप्त सामाजिक-आर्थिक विकास के अभाव में आई.एस.आई. और पाक समर्थित आतंकवाद को समाप्त करने के मार्ग में बाधाएं खड़ी की हैं। केन्द्र सरकार को यह समझना होगा कि विश्व भर में कहीं भी केवल सुरक्षा बलों के द्वारा आतंकवाद की समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता है। 

हमें इस बात को भी ध्यान में रखना होगा कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान द्वारा अपने मतभेदों को भुलाकर शांति से रहने की अक्षमता का प्रतीक है इसलिए कश्मीर कारण और प्रभाव दोनों ही है जिसके चलते इस समस्या का समाधान जटिल बनता जा रहा है। युद्ध जनसंख्या का विस्थापन, पुनर्वास, धैर्य, कुशासन, मानव मूल्यों की पुनस्र्थापना आदि के द्वारा इस समस्या का ईमानदारी और लचीलेपन के साथ समाधान किया जा सकता है और कश्मीरियों में विश्वास जगाया जा सकता है। कुछ न करके इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता। केवल समय कश्मीर समस्या का समाधान नहीं करेगा। समय के साथ कश्मीर समस्या उलझती गई है और कश्मीर समस्या के कारण भारत के करोड़ों मुसलमानों का भाग्य भी अधर में लटक गया है। 

कश्मीर के बारे में रणनीतिक सोच का अभाव है जिसके चलते तात्कालिक घटनाओं और अल्पकालिक उपायों से परे कोई नहीं सोचता। इस समस्या का कोई भी समाधान तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक भारत, पाकिस्तान और कश्मीरियों द्वारा इसका समर्थन न किया जाए। फिलहाल एक ऐसा तंत्र बनाया जा सकता है जिसमें विचारों, संभावनाओं और दबाव पर ध्यान केन्द्रित किया जाए। साथ ही भारत और पाकिस्तान को अलफाबेट डिप्लोमैट रॉ और आई.एस.आई. पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। दोनों को कश्मीरियों की संवेदनशीलता को ध्यान में रखना चाहिए। 

लगता है भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक ऐसा क्लब सक्रिय है जो पंजाब के नियमों-कानूनों पर निर्भर है। इस विवाद से जुड़े सभी पक्षों को इसके समाधान के लिए सहमत होना चाहिए जबकि भारत और पाकिस्तान इस बारे में एक मत नहीं हैं। दोनों पक्ष कुछ समय के लिए संतुलन की ओर बढ़ते हैं इसलिए दोनों पक्ष मानते हैं कि समय उनके साथ है और कुछ समय बाद परिस्थितियां उनके अनुकूल होंगी। कश्मीर की विशद समस्या में भारत और पाकिस्तान तथा अब कश्मीरी भी यह मानने लगे हैं कि समय किस तरह से इस समस्या का स्वीकार्य समाधान करेगा और किस तरह संबंधित पक्षों को वार्ता के लिए सहमत करेगा और समस्या के समाधान तक पहुंचा जाएगा। मोदी और केन्द्र सरकार को कश्मीर और पाकिस्तान के संदर्भ में एक दीर्घकालिक कठोर नीति अपनानी होगी। तदर्थ नीतियों और घुटने टेक प्रतिक्रियाओं से काम नहीं चलेगा। आज थपथपी और कल थप्पड़ से काम नहीं चलेगा। खून-खराबे के दिनों के बाद अब समय आ गया है कि कश्मीर के बारे में कार्रवाई की जाए। नीतियों में निरंतरता अपनाई जाए और कठोरता बरती जाए।-पूनम आई. कौशिश

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