Edited By ,Updated: 30 Jan, 2024 03:41 AM
रविवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सत्तारूढ़ महागठबंधन को छोड़कर एन.डी.ए. में वापसी कर बड़ा धमाका कर दिया। उन्होंने विपक्षी गठबंधन भी छोड़ दिया, जिसे उन्होंने 8 महीने पहले बनाया था।
रविवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सत्तारूढ़ महागठबंधन को छोड़कर एन.डी.ए. में वापसी कर बड़ा धमाका कर दिया। उन्होंने विपक्षी गठबंधन भी छोड़ दिया, जिसे उन्होंने 8 महीने पहले बनाया था। गुट के इस विघटन ने ‘इंडिया’ गठबंधन को एक महत्वपूर्ण झटका दिया है। राष्ट्रीय स्तर पर ‘इंडिया’ गठबंधन ने आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराने का मामूली मौका गंवा दिया।
यह तलाशने लायक है कि बिहार की राजनीति राष्ट्रीय परिदृश्य को कैसे प्रभावित कर सकती है। कुमार के एन.डी.ए. में लौटने से भाजपा को फायदा हो सकता है लेकिन बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस कमजोर हो सकती है। यह बात अंतत: राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी गुट को प्रभावित कर सकती है। भाजपा-जद (यू) सांझेदारी भाजपा की संभावनाओं में सुधार कर सकती है। अब भाजपा- जद (यू) गठबंधन आगामी 2024 के आम चुनावों में अधिक सीटें जीते और मोदी को हैट्रिक हासिल करने में मदद करे।
भाजपा ने विपक्षी गठबंधन को तोडऩे और जद (यू) गठबंधन के साथ सांझेदारी करने की कोशिश की। पार्टी बिहार में नीतीश कुमार को एक महत्वपूर्ण सहयोगी के रूप में देखती है और मानती है कि उनकी सांझेदारी 2024 के चुनावों में जीत हासिल कर सकती है।
मौजूदा विधानसभा में कुमार के पास केवल 45 सीटें हैं, जबकि राजद और भाजपा के पास क्रमश: 78 और 79 सीटें हैं। इसके बावजूद नीतीश मुख्यमंत्री बने रहने में कामयाब रहे। क्या नीतीश कुमार के ‘इंडिया’ विपक्षी गुट छोडऩे में कांग्रेस पार्टी का हाथ था? इस झटके के पीछे की वजह नीतीश को किनारे करने और कांग्रेस को आगे बढ़ाने का फैसला था। कुमार ने पार्टी पर असफल गठबंधन के लिए जिम्मेदार होने का आरोप लगाया और तर्क दिया कि खराब संचार के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई।
जनता दल-यूनाइटेड (जद-यू) के के.सी. त्यागी ने कांग्रेस पार्टी पर विपक्षी गुट पर हावी होने की साजिश रचने का आरोप लगाया है। 13 जनवरी को मुंबई में सी.पी.आई.(एम) प्रमुख सीताराम येचुरी ने नीतीश कुमार को ब्लाक का संयोजक बनाने का प्रस्ताव रखा। इस सुझाव का उपस्थित अधिकांश अन्य नेताओं ने समर्थन किया। हालांकि राहुल गांधी ने अपनी असहमति जताई। बाद में ममता बनर्जी ने गठबंधन प्रमुख के रूप में कांग्रेस प्रमुख खरगे का नाम प्रस्तावित किया। त्यागी का दावा है कि यह एक व्यापक साजिश का हिस्सा था। त्यागी ने कहा कि नीतीश कुमार ने एक गठबंधन बनाया जो सभी गैर-भाजपा दलों को एकजुट करता है। हालांकि, अब यह विघटित हो रहा है। पंजाब और बिहार में स्थिति टूटने की कगार पर है और पश्चिम बंगाल में भी गठबंधन टूट रहा है।
नीतीश ने पुष्टि की कि उन्होंने ‘इंडिया’ गठबंधन छोड़ दिया है। इसलिए क्योंकि यह उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा। उन्हें लगा कि गठबंधन के लक्ष्यों की दिशा में काम करने वाले वे एकमात्र व्यक्ति हैं। हालांकि इस सांझेदारी ने सभी गैर-कांग्रेसी दलों को एक साथ ला दिया है, लेकिन गठबंधन पश्चिम बंगाल में बिखर गया और बिहार और पंजाब में लगभग ध्वस्त हो गया।
एक अनकही कहानी भी है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता लालू यादव ने नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के लक्ष्य के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक विपक्षी गठबंधन बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। इस योजना का मकसद लालू यादव के बेटे के लिए मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ करना था। हालांकि, यह योजना तब विफल हो गई जब मल्लिकार्जुन खरगे को नए गठबंधन के नेता के रूप में चुना गया। नतीजतन, नीतीश कुमार भाजपा के साथ हो गए। नतीजों की परवाह किए बिना सत्ता पर काबिज रहने की उनकी अटूट इच्छा के कारण कुमार की विश्वसनीयता धूमिल हो गई है। उन्होंने हमेशा अपने लाभ के लिए कई बार राजनीतिक निष्ठाएं बदली हैं और वर्तमान में सबसे लंबे कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री का खिताब उनके पास है।
नीतीश का ट्रैक रिकॉर्ड बताता है कि 2013 में दूसरे विकल्प तलाशने के बाद उन्होंने भाजपा छोड़ दी और राजद से गठबंधन किया। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन किया। फिर से 2020 में मुख्यमंत्री बने। हालांकि 2 साल बाद कुमार ने भाजपा छोड़ दी और राजद के साथ मिलकर नई सरकार बनाई और अब उन्होंने राजद का साथ छोड़ दिया है। इसीलिए उन्हें ‘पलटी राम’ कहा जाता है। एक अनुभवी राजनेता होने के बावजूद, नीतीश कुमार के रुख में बार-बार बदलाव के कारण उन्हें विपक्षी दल के लिए प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में विचार किए जाने का मौका मिला, खासकर 72 साल की उम्र में।
भाजपा ‘इंडिया’ गठबंधन को खत्म करना चाहती है। इस गुट का विघटन प्रधानमंत्री मोदी को अपना तीसरा कार्यकाल जीतने में मदद कर सकता है। नवम्बर 2023 में, बिहार ने अनुसूचित जाति और अत्यंत पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण बढ़ाया। यह स्पष्ट नहीं है कि नीतीश और भाजपा की सांझेदारी कितने समय तक चलेगी। वे आगामी लोकसभा चुनाव तक साथ मिलकर काम कर सकते हैं, लेकिन उसके बाद क्या होगा यह अनिश्चित है।
भारतीय जनता पार्टी केवल लोकसभा चुनावों तक नीतीश का समर्थन कर सकती है और उसके बाद उनका समर्थन कम हो सकता है - कुछ लोग सवाल करते हैं कि क्या गठबंधन 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों तक जारी रहेगा? नीतीश ने दिखाया है कि चतुर सौदेबाजी कौशल का उपयोग करके और कुछ सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखना संभव है, भले ही केवल 4 प्रतिशत मतदाता उनकी जाति के हों। लेकिन नीतीश के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए एक बात निश्चित है कि अन्य उलटफेर भी हो सकता है।-कल्याणी शंकर