आसान नहीं है साइबर हमलों से निपटना

Edited By ,Updated: 19 May, 2017 12:27 AM

not easy to deal with cyber strikes

12 मई की शाम को दुनिया के अनेक देशों में 2 लाख से ज्यादा कम्प्यूटरों पर हुए साइबर....

12 मई की शाम को दुनिया के अनेक देशों में 2 लाख से ज्यादा कम्प्यूटरों पर हुए साइबर हमले ने दुनिया भर के सूचना तकनीक जानकारों की नींद उड़ा दी थी। यह आज तक का सबसे बड़ा साइबर हमला था। जिस तरह साइबर हमलावरों ने एक साथ दुनिया के कई देशों के कम्प्यूटरों को निशाना बनाया, वह साइबर हमले को लेकर उनकी क्षमता दिखाता है। भारत भी इस हमले की जद में था। आंध्र प्रदेश पुलिस के करीब 100 सिस्टम इस वायरस से प्रभावित हुए। 

साइबर हमलावरों ने ‘रैनसमवेयर’ साफ्टवेयर के जरिए पहले कम्प्यूटरों पर हमला किया और कम्प्यूटर करप्ट होने के बाद इन्हें दुरुस्त करने के लिए 300 से 600 डॉलर तक की फिरौती मांगी। हजारों लोगों ने डिजीटल करंसी बिटकॉयन के जरिए भुगतान भी किया। हालांकि अभी तक यह साफ नहीं है कि कितने लोगों ने ऐसा भुगतान किया। बिटकॉयन एक वर्चुअल मुद्रा है जिस पर कोई सरकारी नियंत्रण नहीं है। इस मुद्रा को किसी बैंक ने जारी नहीं किया है चूंकि ये किसी देश की मुद्रा नहीं है इसलिए इस पर कोई टैक्स नहीं लगता है। 

बिटकॉयन पूरी तरह से एक गुप्त करंसी है और इसे सरकार से छुपाकर रखा जा सकता है, साथ ही इसे दुनिया में कहीं भी सीधा खरीदा या बेचा जा सकता है। शुरूआत में कम्प्यूटर पर बेहद जटिल कार्यों के बदले ये क्रिप्टो करंसी कमाई जाती थी चूंकि ये करंसी सिर्फ कोड में होती है इसलिए न इसे जब्त किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है। एक अनुमान के मुताबिक इस समय करीब डेढ़ करोड़ बिटकॉयन प्रचलन में हैं। बिटकॉयन खरीदने के लिए यूजर को पता रजिस्टर करना होता है। यह पता 27-34 अक्षरों या अंकों के कोड में होता है और वर्चुअल पते की तरह काम करता है। इसी पर बिटकॉयन भेजे जाते हैं, इन वर्चुअल पतों का कोई रजिस्टर नहीं होता है। 

ऐसे में बिटकॉयन रखने वाले लोग अपनी पहचान गुप्त रख सकते हैं, यह पता बिटकॉयन वॉलेट में स्टोर किया जाता है जिनमें बिटकॉयन रखे जाते हैं। वर्चुअल करंसी बिटकॉयन की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसी साल मार्च में इसकी कीमत पहली बार एक औंस सोने की कीमत से ज्यादा हो गई थी। 2 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में एक बिटकॉयन 1268 डालर पर बंद हुआ था जबकि एक औंस सोने की कीमत 1233 डालर पर थी। रैनसमवेयर के जरिए हमला कोई नया नहीं है। 

पहले भी दुनिया के कई देश इस तरह के हमलों से प्रभावित हुए हैं लेकिन इस बार साइबर हमलावरों ने कई देशों के कम्प्यूटरों को प्रभावित कर जता दिया कि वे नैटवर्क सुरक्षा करने वालों से एक कदम आगे हैं। इस समय सवाल सिर्फ रैनसमवेयर का नहीं हैं। सवाल इंटरनैट की दुनिया में सामने खड़े खतरों का है और सवाल यह है कि क्या हम उनसे बचने में सक्षम हैं। क्योंकि साइबर खतरे किस रूप में अब हमारे सामने आएंगे, इसकी कल्पना भी हमने अभी नहीं की है। 

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