धर्म, एक विचारधारा और एक नेता के इर्द-गिर्द घूमती राजनीति

Edited By ,Updated: 06 Feb, 2024 06:54 AM

politics revolving around religion an ideology and a leader

प्राण -प्रतिष्ठा का धार्मिक आयोजन सम्पन्न हो चुका है। राम जी के अनुयायी पूरी दुनिया में हैं। चैनलों के माध्यम से सबने इसका सीधा प्रसारण देखा और जश्न मनाया। भारत समेत पूरी दुनिया में अपने-अपने धर्म से जुड़े धार्मिक अनुष्ठानों और रीति-रिवाजों को मानने...

प्राण -प्रतिष्ठा का धार्मिक आयोजन सम्पन्न हो चुका है। राम जी के अनुयायी पूरी दुनिया में हैं। चैनलों के माध्यम से सबने इसका सीधा प्रसारण देखा और जश्न मनाया। भारत समेत पूरी दुनिया में अपने-अपने धर्म से जुड़े धार्मिक अनुष्ठानों और रीति-रिवाजों को मानने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इसका एक कारण दैवीय शक्तियों से जोड़कर अशांत मन को शांत रखने का प्रयास है। लेकिन इससे भी बढ़कर, सांसारिक दुखों, परेशानियों और आर्थिक कठिनाइयों से छुटकारा पाने के लिए खुद को धार्मिक रंग में रंगना (भले ही थोड़ा ही सही) मनुष्य की प्रथा है। जिस तेजी से समाज में भुखमरी, गरीबी, बेरोजगारी, कुपोषण, बीमारियां आदि बढ़ रही हैं, उसी तेजी से धर्म के प्रति समर्पण का ग्राफ भी लगातार ऊपर जा रहा है। 

भारतीय समाज के बहुसंख्यक लोगों की यही इच्छा थी, या यूं कहें कि कुछ राजनीतिक दलों और उनके समर्थक धार्मिक संगठनों ने प्रचार-प्रसार के माध्यम से लोगों के मन में ऐसी प्रबल इच्छा पैदा कर दी कि वे भारत में राम मंदिर का निर्माण कराएंगे। वे अयोध्या और श्री राम जी की मूॢत स्थापना देखने के लिए उत्सुक थे। कुछ महीनों तक सभी प्रचार माध्यमों से श्री राम जी से जुड़ी कहानियों/किंवदंतियों का जोरदार प्रचार किया गया। ऐसा लग रहा था मानो देश में दुनिया के मुकाबले कोई दूसरा मुद्दा या घटना ही नहीं है, जिसकी रिपोॄटग मीडिया के लिए जरूरी हो। 

हालांकि कुछ स्थानों पर सांप्रदायिक तनाव की छिटपुट घटनाओं का घटित होना चिंता का विषय है, लेकिन कुल मिलाकर यह संतोष की बात कही जा सकती है कि यह धार्मिक आयोजन शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुआ। कबीर नगर और आगरा जिलों में, 22 जनवरी को अयोध्या में ‘प्राण-प्रतिष्ठा’ समारोह से लौटते समय कुछ भगवाधारी मस्जिदों पर चढ़ गए, भगवा झंडे फहराए और बहुत ही ङ्क्षनदनीय भड़काऊ नारे लगाए। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। वैसे पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ्तार कर जेल भी भेजा है। 

मंदिर निर्माण से पहले आर.एस.एस. और जिस तरह से मोदी सरकार ने ‘प्राण-प्रतिष्ठा’ कार्यक्रम की रूप-रेखा तैयार की, उससे साफ है कि इसमें धार्मिक भक्ति से ज्यादा राजनीतिक मकसद की चाहत है। संघ नेताओं, धार्मिक हस्तियों और प्रधानमंत्री सहित पूरी सरकार और भाजपा नेताओं द्वारा दिए गए भाषणों का उद्देश्य स्पष्ट रूप से देश के धर्मनिरपेक्ष और लोकलुभावन संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन करके ‘धर्म-आधारित’ राज्य की स्थापना करना था। 

जब कोई पार्टी ‘एक धर्म’, ‘एक विचारधारा’ और ‘एक नेता’ के इर्द-गिर्द एक आख्यान बनाने की कोशिश करती है, तो उसे समाज में मौजूद अन्य धर्मों, विचारों और परंपराओं के विरोध में एक माहौल बनाना होगा। यह आवश्यक है। लगभग 7000 वर्ष पूर्व जिस राम राज मॉडल को लागू करने का लक्ष्य रखा गया था, वह न केवल वर्तमान परिस्थितियों से बहुत भिन्न था, बल्कि हर दृष्टि से कम विकसित संरचना थी। कृषि उत्पादन बहुत निम्न स्तर पर था। तब सामाजिक विकास बहुत निचले स्तर पर पहुंच गया था। ‘हिन्दू धर्म’ के अलावा कोई अन्य धर्म नहीं था। धर्म के नाम पर झगड़े नहीं होते थे। इसलिए किसी अन्य धर्म के विरोध में नहीं, बल्कि एक ही धर्म को मानने वाले समाज में बुराई और पुण्य, सत्य और असत्य, पाप और पुण्य की दो विपरीत अवधारणाएं होती हैं। 

विवाद और युद्ध अवश्य देखने को मिले। राज्य के विस्तार और आत्मरक्षा के लिए राजाओं द्वारा किए गए हर प्रयास को ‘कुदरत का फरमान’ और ‘धर्म’ माना जाता था। आज के समाज से अलग, आम आदमी संपत्ति के ‘निजी स्वामित्व’ से बहुत दूर है, जिसके साथ संघर्ष किया जा रहा है। प्राकृतिक आपदाएं उसके अस्तित्व के लिए ही आगे बढ़ रही थीं, जंगलों और झोंपडिय़ों में रहने वाले लोगों को अपनी ‘संपत्ति’ की रक्षा के लिए जानवरों को मारने की जरूरत नहीं थी, न ही उन्हें प्राकृतिक जीवन जीते हुए आधुनिक बीमारियों से जूझना पड़ता था। 

शिक्षा ‘धार्मिक विद्यालयों’ (गुरुकुल) में प्रदान की जाती थी। मनुष्य को अभी तक न तो आधुनिक वैज्ञानिक आविष्कारों का ज्ञान था और न ही उनसे होने वाले लाभ-हानि से कोई सरोकार था। समाज का एक बड़ा हिस्सा प्रकृति की गोद में रह रहा था, जहां आॢथक क्षेत्र में असमानता के वर्तमान स्तर की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। सत्ता में रहने वाली पार्टी ने स्वेच्छा से मानवतावादी व्यवस्था का निर्णय लिया था, जिसमें जाति विभाजन एक महत्वपूर्ण हिस्सा था, और समाज के प्रबंधन के लिए कई अन्य अनुष्ठान थे। हालांकि राम मंदिर का निर्माण अधूरा है, लेकिन ‘प्राण-प्रतिष्ठा’ के आयोजकों और प्रधानमंत्री ने मंदिर में ‘राम जी’ की मूर्ति की स्थापना के साथ ‘राम राज’ की शुरुआत की घोषणा की है। इस कार्यक्रम में जिन विशेष अतिथियों को आमंत्रित किया गया था उनमें धार्मिक व्यक्तित्व के लोग भी शामिल थे जिन्होंने सांसारिक जीवन को त्याग कर धार्मिक आचरण में जीने का मार्ग चुना है। 

उनके लिए धार्मिक आस्था का प्रसार ही ‘राम राज’ है। दूसरा वर्ग, जो विशेष रूप से उपस्थित हो रहा था, वे अमीर लोग, कॉर्पोरेट घरानों (अंबानी-अडानी) के अरबपति मालिक, फिल्म अभिनेता, पेशेवर खिलाड़ी, राजनेता थे जो सत्ता और अयोध्या शहर के विकास के इर्द-गिर्द घूमते थे। ‘उद्यमियों’ का एक समूह जो बड़े-बड़े व्यवसाय खोलकर पूंजी जमा करना चाहते हैं, उनके लिए ‘राम राज’ फायदे का सौदा हो सकता है। ऐसे लोगों के लिए पैसों की कमी नहीं होती बल्कि समस्या होती है खर्च की। शायद 7000 साल पहले ‘राम राज’ में बड़े से बड़े अमीर लोग भी अपने समकक्षों के करीब नहीं थे। इस पहली भीड़ में मजदूर और किसान नदारद थे। बाद में, वर्तमान परिस्थितियों में अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए ‘राम राज’ की इच्छा रखने वाले करोड़ों लोगों ने मंदिर के अंदर राम जी की मूर्ति की सजावट देखी है, लेकिन वे ‘राम राज’ में रहना चाहते हैं। सपने का साकार होना अभी भी बाकी है, काफी दूर। 

आज, समाज भौतिक स्थितियों और स्वास्थ्य, शिक्षा में सुधार के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्यम से विकसित हुआ है। कला, संचार, परिवहन के साधन आदि क्षेत्रों में आश्चर्यजनक प्रगति हुई है। लेकिन इस आश्चर्यजनक विकास के असली पात्र यानी मेहनतकश लोग उन सभी सुख-सुविधाओं से वंचित हैं, जिसे उन्होंने खुद ही बनाया है। बेरोजगार लोग दयनीय स्थिति में दिन गुजारते हैं उनके भोजन, इलाज, आवास, शिक्षा, बुढ़ापे में सामाजिक सुरक्षा आदि की क्या व्यवस्था है। 

क्या यह मानवीय सोच से परे है? भले ही प्रधानमंत्री ने लोगों को धोखा देने के लिए अनोखे अंदाज में ‘राम’ का इस्तेमाल किया हो ‘राज’ का जिक्र तो हो चुका है, लेकिन जिस तरह कार्पोरेट घराने 140 करोड़ लोगों को देशी-विदेशी लुटेरों की तरह अंधाधुंध लूटकर अपना खजाना भर रहे हैं, उससे देश के प्राकृतिक खजाने और सार्वजनिक संपत्ति यानी कुल मानव और प्राकृतिक संसाधनों की बर्बादी हो रही है। एक ऐसी घटना जो आदरणीय शब्द ‘राम राज’ को धोखा देती है। कुछ लोग इस निराशा में हैं कि देर-सवेर भाजपा इस ओर रुख अपनाएगी और जनपक्षीय आॢथक विकास का रास्ता चुनेगी। यह आशा और कुछ नहीं बल्कि तृष्णा है। 

संघ-भाजपा और मोदी जी लोगों का ध्यान उनकी वास्तविक जरूरतों और कठिनाइयों से हटाने के लिए अयोध्या जैसे धार्मिक आयोजन को राजनीतिक रंग दे रहे हैं, ताकि लोकसभा चुनाव में 7000 साल पुराने ‘राम’ का जश्न मनाया जा सके। ‘राज’ का जिक्र करके लूट और हर तरह की जबरदस्ती के शिकार लोगों के वोट हासिल किए जा सकते हैं। किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि संघ-भाजपा, चुनावी जीत हासिल करने के लिए, किसी अन्य विवादित धार्मिक स्थल के मुद्दे का इस्तेमाल अयोध्या जैसी कहानी बनाने के लिए करेंगे, या किसी ऐसी घटना का फायदा उठाएंगे जो बहुसंख्यकों के मन में हलचल पैदा कर देगी। क्या धार्मिक अल्पसंख्यकों और प्रगतिशील विचारकों के खिलाफ बड़े संदेह उठते हैं? प्राण-प्रतिष्ठा के अवसर पर श्री रामजी से अधिक प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा की गई है ताकि लोगों के मन में एक विशेष व्यक्ति की छाप पैदा कर वोट हासिल किया जा सके।

वर्तमान परिस्थितियों में ‘राम राज’ का ऐसा मॉडल बनाना चाहिए, जिसमें मनुष्य द्वारा मनुष्य की लूट को समाप्त किया जाए और सभी को जीने योग्य जीवन जीने का अधिकार हो। उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं, रहने योग्य वेतन के साथ स्थायी रोजगार, आवास आदि की प्राप्ति के साथ-साथ जाति-मुक्त समाज, महिलाओं की मुक्ति और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने वाला वातावरण, खर्च किए गए अनुष्ठानों और रीति-रिवाजों से मुक्त समाज का निर्माण हो, ‘आधुनिक राम राज’ का नाम दिया जा सकता है। आइए हम सब मिलकर ऐसे ‘राज’ की स्थापना के लिए प्रयास करें।-मंगत राम पासला

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!