Edited By ,Updated: 06 Mar, 2021 03:32 AM
राहुल गांधी और साथी कांग्रेसी या भारतीय जनता पार्टी के नेता इन दिनों बार बार केवल एमरजैंसी के घाव क्यों याद कर रहे हैं? देश की आबादी के एक बड़े आयु वर्ग ने वह दौर देखा नहीं और विभाजन की तरह उस त्रासदी की पुनरावृत्ति अब संभव
राहुल गांधी और साथी कांग्रेसी या भारतीय जनता पार्टी के नेता इन दिनों बार बार केवल एमरजैंसी के घाव क्यों याद कर रहे हैं? देश की आबादी के एक बड़े आयु वर्ग ने वह दौर देखा नहीं और विभाजन की तरह उस त्रासदी की पुनरावृत्ति अब संभव नहीं है? इसलिए मैं तो 1986 की सुर्खियों की याद दिलाना उचित समझता हूं।
मास्टर राहुल के पिता श्री राजीव गांधी सत्ता में थे। एक नहीं अनेक छापे लगातार पडऩे से बम्बई ( अब मुंबई ) को ‘कैपिटल ऑफ रेड्स’ (छापों की राजधानी ) लिखकर छापा जा रहा था। स्वाभाविक है कि किशोर वय के राहुल को उस समय इन नंबरों की जानकारी नहीं रही और राजनीति में प्रवेश के कारण उन्हें राजीव युग के ‘साहसी कदमों’ का रिकार्ड देखने का समय नहीं मिला। उनके अपरिपक्व सलाहकार तो अनजान हैं, लेकिन पार्टी की सर्वोच्च नेता सोनिया गांधीजी को तो याद होगा। मजेदार बात यह है कि अयोध्या में मंदिर के दरवाजे खुलवाने वाले राजीव राज से अब मंदिर निर्माण में लगे भारतीय जनता पार्टी के नेता भी उस दौर में बॉलीवुड की सफाई के लिए हुई छापेमारी की याद नहीं दिला रहे हैं।
हमारे मीडिया के काबिल मित्र तो उस समय की फाइलें देखकर अथवा हम जैसे पुराने पत्रकारों से बात करके क्रांतिकारी प्रिंट, टी.वी. और डिजिटल मीडिया पर नए पुराने तथ्यों को जनता जनार्दन के सामने रख सकते हैं। मेरा उद्देश्य हाल में पड़े छापों को सही या गलत ठहराना अथवा बादशाह सरकार का समर्थन कतई नहीं है। यूं इन दिनों कुछ संपादक गण हमें सलाह देते हैं कि अब उस दौर की बात न करें, नया युग अधिक जागरूक है और वे अभिव्यक्ति की रक्षा के आधुनिक तौर तरीके अधिक अच्छा जानते समझते हैं।
बहरहाल, फिलहाल छापेमारी राजधानी कहे जाने वाले दिनों के कुछ नाम का उल्लेख करना ठीक है। सरकारी, गैर-सरकारी और बॉलीवुड के पुराने स्टूडियो वाले रिकार्ड से आप पुष्टि कर सकते हैं । राजीव राज के प्रारम्भिक वर्षों में ही मुंबई आय कर विभाग ने मुंबई में करीब 6 सौ छापे मारे थे। उस जमाने में बॉलीवुड पर राज करने वाले बड़े निर्माता यश चोपड़ा, गुलशन राय, सुभाष घई सहित अनेक फिल्मी हस्तियों के ठिकानों पर छापे डाले गए। उस समय तो नगदी और काले धन से फिल्मों का धंधा अधिक चलता था। तब आय कर विभाग ने यह राज खोला था कि कई निर्माता हर महीने करीब पचास करोड़ का काला धन बना रहे हैं। इस तरह करोड़ों रुपयों की गड़बड़ी उजागर हुई। जिन लोगों और स्टूडियो पर छापे पड़े, वे सरकार विरोधी नहीं कई सत्ताधारी नेताओं के मित्र थे।
अमिताभ बच्चन तो राजीव के साथ चुनाव जीतकर आए थे, राजेश खन्ना, दिलीप कुमार या निर्माता सुभाष घई, यश चोपड़ा, बी.आर. चोपड़ा आदि कांग्रेस के मित्र माने जाते थे। मेरे मित्र विट्ठल भाई पटेल कांग्रेस के सफल प्रभावी नेता होने के साथ इन निर्माताओं के लिए गीत लिखते थे। उन्होंने तो इंदिरा गांधी के सत्ता काल में भी इन लोगों के साथ काम किया, जरूरत पड़ने पर मदद भी की थी। दूसरी तरफ नेहरू-इंदिरा युग के करीबी बजाज समूह, डालमिया जैन समूह, गोदरेज समूह पर भी छापे पड़े। इसमें कोई शक नहीं कि उस समय और आज भी किसी व्यक्ति या समूह से आय कर की पूछताछ का यह निष्कर्ष नहीं निकलना चाहिए कि उन्होंने अपराध किया है।
आय कर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय और सी बी आई द्वारा अदालत में प्रमाणों के साथ साबित होने पर ही कोई आपराधिक मामला मानकर कानूनी दंड दिया जा सकता है। जहां तक मीडिया समूहों की बात है, कांग्रेस विरोध के लिए चर्चित एक्सप्रैस समूह और गोयनकाजी की चर्चा की जाती है। लेकिन कांग्रेस के प्रधान मंत्रियों से बहुत अच्छे संबंध रखने वाले देश के सबसे बड़े मीडिया संस्थान के प्रमुख अशोक जैन पर विदेशी मुद्रा से जुड़े एक मामले की फाइलें खोलकर आय कर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय से पूछताछ हो रही थी। प्रदेशों में भी कुछ प्रकाशन समूहों का हिसाब किताब टटोला जा रहा था।
इंदिरा राजीव युग की बात आप पुरानी मान सकते हैं। पिछले दो दशकों में माधुरी दीक्षित, सलमान खान, संजय दत्त, एकता कपूर, सोनू निगम, सोनू सूद, रानी मुखर्जी, कैटरीना कैफ आदि के घरों पर भी आय कर के छापे पड़ते रहे हैं। इसे दिलचस्प संयोग कहेंगे कि माला सिन्हा के घर छापों के वर्षों बाद माधुरी दीक्षित के घरों पर काला धन तलाशने के लिए दीवारें तक तोडऩी पड़ी थीं। रिलायंस एंटरटेनमैंट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी शिबाशीष सरकार से भी हिसाब किताब पूछा जा रहा है। अनिल अम्बानी तो राजनीति में भी रहे हैं और कांग्रेस तथा समाजवादी पार्टियों से अधिक घनिष्ठ रिश्ते थे। संभव है वर्तमान सरकार में भी उनके संबंध हों, लेकिन हिसाब किताब, अदालत आदि में तो नियम कानून और न्याय ही साथ देगा।
अनुराग कश्यप और उनके साथ अन्य लोगों के ठिकानों पर छापेमारी में छह-सात सौ करोड़ रुपयों के आय कर का हिसाब खंगाला जा रहा है । अब विवाद इस बात का है कि अनुराग कश्यप और तापसी पन्नू ने कुछ अर्से से सोशल मीडिया पर भाजपा सरकार विरोधी अभियान चला रखा था। लोकतंत्र में यह उनका अधिकार है। वे पूरी तरह राजनीति में नहीं हैं, लेकिन यदि राजनीतिक लड़ाई लडऩा चाहते हैं तो क्या उन्हें अपना दामन साफ नहीं रखना होगा? हिमालय या समुद्र में शूटिंग करने जाने पर क्या खतरों से बचने का इंतजाम नहीं करना पड़ता है? आप यहां काला धन जमा या खर्च कर डमी को तो नहीं खड़ा कर सकेंगे? मीडिया संस्थान चलाएं तो क्या हमें बेईमानी का अधिकार मिल सकता है? सरकार को गालियां देते हुए अपराध करने का हक क्या किसी को मिल सकता है?-आलोक मेहता