‘अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों से भी दबाव में हैं शिवराज सिंह चौहान’

Edited By ,Updated: 14 Jan, 2021 05:22 AM

shivraj singh chauhan is also under pressure from his political rivals

भारत के पूर्व दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तथा भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण अडवानी की पीढ़ी के बाद भाजपा के सबसे उच्च नेताओं में से उदारवादी नेता मध्यप्रदेश के तीन बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हैं। एक बार तो चौहान

भारत के पूर्व दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तथा भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण अडवानी की पीढ़ी के बाद भाजपा के सबसे उच्च नेताओं में से उदारवादी नेता मध्यप्रदेश के तीन बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हैं। एक बार तो चौहान भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की दौड़ में भी शामिल थे मगर उन्होंने यह उम्मीदवारी सबसे ज्यादा उग्र नेता तथा अपने समकालीन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चलते छोड़ दी। 

जैसा कि सबको याद है शिवराज सिंह चौहान एक उदारवादी नेता हैं जिन्हें मुस्लिम टोपी पहनने, ईद मनाने और मुस्लिम समुदाय के अन्य पर्वों को मनाने में कोई हिचकिचाहट नहीं। अपने राज्य में वह साम्प्रदायिक मामलों को गंभीरता से तथा सबको समान रख कर सुलझाते हैं। इसमें कोई शंका नहीं कि उन्होंने निकाय, विधानसभा तथा लोकसभा चुनावों में नेतृत्व कर भाजपा को जीत दिलाई। 

शिवराज सिंह चौहान की इन रेखाओं को दिसम्बर 2018 के विधानसभा चुनावों में गंभीर झटका लगा जब कांग्रेस के गठजोड़ वाले नेतृत्व ने कुछ ही मार्जन से शिवराज सिंह को मात दे डाली। ज्योतिरादित्य  सिंधिया के विद्रोह तथा भाजपा के मशीनीकरण को धन्यवाद कहना होगा कि उन्हें फिर से काठी पर बैठने का मौका मिल गया। हालांकि अब वह एक कट्टरवादी नेता के तौर पर उभरे हैं जो शायद इस दबाव में हैं कि उनके ङ्क्षहदुत्व के नर्म रवैये  ने विधानसभा चुनावों में उनके फिर से सत्ता पाने में मुश्किलें खड़ी की थीं। आर.एस.एस. तथा भाजपा ने भी यही सबक सीखा तथा राज्य की सत्ता दोबारा सौंपने से पहले शिवराज सिंह को सचेत किया कि वे एक मौलिक परिवर्तन से गुजरें। 

मध्यप्रदेश में हाल ही की हिंसा के उछलने से निपटने का यह एक स्पष्ट संकेत है कि चौहान के बर्ताव में बदलाव आया है। उनकी सरकार ने स्पष्ट तौर पर ऐसे कार्यकत्र्ताओं के समूह की पीठ थपथपाई है जिन्होंने राम मंदिर के निर्माण के लिए फंड जुटाने के लिए रैलियां निकालीं। ऐसे ही एक समूह पर मुसलमानों के एक समूह ने हमला बोल दिया था। इसके प्रतिशोध में इस समुदाय के सदस्यों के घरों पर धावा बोला गया तथा कई निवासी घायल हो गए। यहां तक कि राज्य सरकार की पुलिस की एक बड़ी टुकड़ी भी कुछ ही दूरी से मूकदर्शक बन सब देखती रही। 

हिंसा में दोनों पक्ष शामिल थे। मुस्लिमों को शायद ज्यादा क्षति पहुंची। वास्तव में दोनों समुदायों के आरोपियों को इसमें घसीटा जाना चाहिए था तथा हिंसा के लिए उन पर मामले दर्ज होने चाहिए थे मगर ऐसा नहीं हुआ। पुलिस ने मामले दर्ज किए और 27 गिरफ्तारियां कीं मगर वे सभी की सभी मुस्लिम समुदायों से थीं। सरकार ने भी इसके प्रति एक उदासीन रवैया अपनाया। पुलिस ने भी हिंसा में शामिल हिंदू समुदायों के सदस्यों पर मामला दर्ज नहीं किया। शिवराज सिंह चौहान की सरकार शायद वास्तव में वह साहसी कदम उठाने की कोशिश में है जो ज्यादातर भाजपा के उग्र नेता करते हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बारे में भी ऐसा ही कहा जाता है। हाल ही में चौहान द्वारा पारित ‘लव जेहाद’ कानून ज्यादा सशक्त है और भेदभावपूर्ण भी है जोकि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा वास्तव में पारित कानून से ज्यादा है। 

मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता के नाम से बुलाया जाने वाला कानून स्वतंत्रता विधेयक 2020 (धार्मिक स्वतंत्रता) है जिसे अंतरधर्म शादियों पर नियंत्रण करने के लिए बनाया गया है, इसके तहत अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति की महिलाओं, नाबालिगों तथा लोगों का जबरन धर्मांतरण करने के लिए 10 सालों की जेल का प्रावधान है। इस विधेयक की एक विशेष धारा के तहत उन लोगों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं है जो अपने पैतृक धर्म में लौट रहे हैं। इसके अनुसार ‘पैतृक धर्म में वापसी’ को धर्मांतरण नहीं माना जाएगा। इसके तहत धार्मिक धर्मांतरण के इरादे से की गई एक शादी को अमान्य करार दिया जाएगा। 

यह स्पष्ट है कि शिवराज सिंह चौहान न केवल आर.एस.एस. या भाजपा से दबाव में हैं बल्कि अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों से भी दबाव में हैं। इनमें ज्योतिरादित्य सिंधिया तथा केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर भी शामिल हैं। अपना राजनीतिक वर्चस्व बचाने के लिए चौहान ने एक खतरनाक यात्रा शुरू की है जिसके नतीजे भी खतरनाक हो सकते हैं।-विपिन पब्बी

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