राजनीति में सोनिया की सक्रियता बरकरार

Edited By ,Updated: 13 Mar, 2019 03:20 AM

sonia s activism in politics remains intact

1999 से अब तक अपना छठा लोकसभा चुनाव लडऩे जा रही पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (72) की सक्रियता से उनकी रिटायरमैंट की सम्भावनाएं एक बार फिर खारिज होती दिख रही हैं। पिछले वर्ष से ऐसी अफवाहें थीं कि अपने बेटे को स्थापित करने के लिए वह सक्रिय...

1999 से अब तक अपना छठा लोकसभा चुनाव लडऩे जा रही पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (72) की सक्रियता से उनकी रिटायरमैंट की सम्भावनाएं एक बार फिर खारिज होती दिख रही हैं। पिछले वर्ष से ऐसी अफवाहें थीं कि अपने बेटे को स्थापित करने के लिए वह सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लेंगी। ऐसा कहा जा रहा था कि क्योंकि उन्होंने कमान अपने बेटे राहुल गांधी को सौंप दी है तथा अपनी बेटी प्रियंका गांधी वाड्रा की भी सक्रिय राजनीति में एंट्री करवा दी है, ऐसे में राजनीति से रिटायर होने के लिए यह उचित समय है। 

सोनिया गांधी ने स्वयं दिसम्बर 2017 में ही अपनी रिटायरमैंट के संकेत दे दिए थे जब उन्होंने घोषणा की थी कि ‘‘मेरी भूमिका रिटायरमैंट लेना है।’’ हालांकि उसके बाद उन्होंने अपनी सक्रियता कम कर दी है तथा वह पर्दे के पीछे से ही काम कर रही हैं परंतु पार्टी में किसी विवाद की स्थिति में आज भी अंतिम फैसला  वही लेती हैं। बहुत से लोगों का यह कयास था कि वह इस बार लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी। इन अनुमानों के विपरीत उत्तर प्रदेश से उम्मीदवारों की पहली सूची में उनका नाम शामिल था। रायबरेली से सोनिया गांधी की उम्मीदवारी यह साबित करती है कि अभी भी सोनिया गांधी के बिना पार्टी का कोई गुजारा नहीं है क्योंकि पार्टी यह मानती है कि सोनिया गांधी अब भी काफी वोट खींच सकती हैं। 

टलती रही रिटायरमैंट की योजना
सोनिया गांधी 2016 से ही रिटायरमैंट पर विचार कर रही हैं, जब वह 70 साल की हुई थीं। कहा जाता है कि उन्होंने यह बात अपने नजदीकियों से शेयर की थी। हालांकि पार्टी ने उन पर दबाव बनाए रखा जिससे उनकी रिटायरमैंट की योजना टलती गई जब तक कि राहुल गांधी पार्टी अध्यक्ष के तौर पर अच्छी तरह स्थापित न हो जाएं। पिछले डेढ़ साल से सोनिया गांधी ने पार्टी नेताओं से मिलना छोड़ दिया है और वह उनसे मिलने आने वाले लोगों को राहुल गांधी के पास भेज देती हैं।

पिछले एक वर्ष से उनकी सार्वजनिक उपस्थिति बहुत घट चुकी है। उन्होंने पिछले वर्ष 5 राज्य विधानसभाओं के चुनाव में प्रचार नहीं किया। उनकी  अंतिम चुनावी रैली पिछले दिसम्बर में तेलंगाना विधानसभा चुनाव से पहले हैदराबाद में हुई थी। उन्होंने पार्टी की दैनिक गतिविधियों से खुद को पूरी तरह अलग कर लिया है। हालांकि, पुलवामा हमले और बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद तथा वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य ने सोनिया गांधी को अपनी रिटायरमैंट योजना बदलने को मजबूर कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप वह एक बार फिर रायबरेली से चुनाव मैदान में कूद पड़ी हैं। 

सोनिया का दर्जा ‘कुल माता’ वाला
1998 में सक्रिय राजनीति में आईं सोनिया गांधी अब बहुत अधिक परिपक्व हो चुकी हैं तथा आज पार्टी में उनका दर्जा एक कुल माता का है। वह एक दिग्गज राष्ट्रीय नेता के तौर पर उभरी हैं तथा पार्टी और राष्ट्रीय राजनीति में उनका एक विशिष्ट स्थान है। वह सबसे लम्बे समय (19 वर्ष) तक पार्टी अध्यक्ष रही हैं। उनके नेतृत्व में पार्टी ने 2004 और 2009 का लोकसभा चुनाव जीता। पार्टी को एकजुट रखने में उनकी बड़ी भूमिका मानी जाती है। पार्टी के पुराने और नए नेताओं में संतुलन बनाने के लिए पार्टी उन पर निर्भर है। पार्टी के पुराने नेताओं का दबाव भी उनके लोकसभा चुनाव लडऩे में अहम कारण रहा है। 

यद्यपि राहुल गांधी ने पुराने नेताओं को समायोजित किया है लेकिन उनका मानना है कि नए लोगों सैम पित्रोदा, पार्टी के डाटा एनालसिस विभाग के चेयरमैन प्रवीण चक्रवर्ती तथा जयराम रमेश ने पार्टी पर कब्जा जमा लिया है जिससे वह असहज महसूस कर रहे हैं। पुराने नेता उनके इस दावे को नहीं पचा पा रहे हैं कि वे 3 हफ्तों में 7 लाख बूथ स्तर के कार्यकत्र्ताओं को प्रशिक्षित कर देंगे। सोनिया की रिटायरमैंट योजना को कभी भी अंतिम रूप नहीं दिया जा सका। दिसम्बर 2017 में पार्टी की बागडोर सौंपते समय भी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुर्जेवाला ने कहा था कि सोनिया सिर्फ पार्टी अध्यक्ष पद से रिटायर होंगी, राजनीति से नहीं। सुर्जेवाला ने ट्विटर पोस्ट में कहा था ‘‘उनका आशीर्वाद तथा कांग्रेस विचारधारा के प्रति उनका समर्पण हमेशा हमारा मार्गदर्शन करता रहेगा।’’ 

दूसरे, अन्य विपक्षी पार्टियों से तालमेल बनाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है तथा शरद पवार, ममता बनर्जी, सीताराम येचुरी सहित अन्य नेता आज भी उनका आदर करते हैं। बहुत से गठबंधन सहयोगी राहुल गांधी की बजाय उनसे बातचीत करना पसंद करेंगे। 2004 और 2009 में यू.पी.ए. को एकजुट बनाए रखने की उनकी क्षमता सामंजस्य बिठाने की उनकी ताकत को साबित करती है। इसलिए पार्टी विभिन्न पार्टियों के नेताओं से उनके तालमेल को देखते हुए इन चुनावों से पहले और बाद में गठबंधन से तालमेल बिठाने में उनकी सहायता लेना चाहेगी। 

प्रियंका की राजनीति में एंट्री
तीसरे, सोनिया गांधी ने हाल ही में अपनी पुत्री प्रियंका गांधी वाड्रा को सक्रिय राजनीति में उतारा है। प्रियंका की धमाकेदार एंट्री पुलवामा हमले और बालाकोट एयर स्ट्राइक के कारण ज्यादा प्रचारित नहीं हो पाई। हालांकि ऐसी अफवाहें थीं कि सोनिया गांधी रिटायर हो जाएंगी और प्रियंका रायबरेली से चुनाव लड़ेंगी परंतु अब ऐसा लगता है कि प्रियंका केवल चुनाव प्रचार और पार्टी की मजबूती के लिए कार्य करेंगी। राजनीति में स्थापित होने तक प्रियंका को भी अपनी मां के समर्थन की जरूरत होगी। सोनिया यह सुनिश्चित करना चाहती हैं कि उनके दोनों बच्चे साथ मिलकर काम करें और पार्टी को आगे बढ़ाएं। यही कारण है कि सोनिया गांधी ने पार्टी की सलाहकार तथा राजमाता और कांग्रेस संसदीय दल की नेता यू.पी.ए. चेयरपर्सन के तौर पर अपनी भूमिकाएं बरकरार रखी हैं। कांग्रेस को इस समय उनकी पहले से कहीं ज्यादा जरूरत है क्योंकि हर वोट हर सीट मायने रखती है।-कल्याणी शंकर

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