‘पर्यावरण स्वच्छ’ रखने में योगदान दे रही पिहोवा की ‘सैंसंस पेपर मिल’

Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Feb, 2018 03:33 AM

sonsons paper mill contributing to keeping the clean environment

गत दिनों मुझे हरियाणा राज्य के पिहोवा उपमंडल के गांव बाखली में स्थित सैंसंस पेपर मिल में जाने का अवसर मिला जहां उन्होंने एक रक्तदान शिविर का आयोजन किया था। इस शिविर में 260 लोगों ने रक्तदान किया जिनमें से कुछ लोग ऐसे भी थे जो पहले भी कई बार रक्तदान...

गत दिनों मुझे हरियाणा राज्य के पिहोवा उपमंडल के गांव बाखली में स्थित सैंसंस पेपर मिल में जाने का अवसर मिला जहां उन्होंने एक रक्तदान शिविर का आयोजन किया था। इस शिविर में 260 लोगों ने रक्तदान किया जिनमें से कुछ लोग ऐसे भी थे जो पहले भी कई बार रक्तदान कर चुके थे। 

1993 में स्थापित तथा 40 एकड़ में फैली यह मिल जहां सैमी क्राफ्ट पेपर का उत्पादन करके 500 से अधिक लोगों को रोजगार उपलब्ध करवा रही है वहीं पर्यावरण को दूषित होने से बचाने में भी महत्वपूर्ण योगदान देने के साथ-साथ क्षेत्र के सैंकड़ों किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। मिल के प्रबंधन द्वारा धान के सीजन में किसानों से उनकी फसल के अवशेषों को जलाने की बजाय पर्यावरण को दूषित होने से बचाने के लिए भी जागरूक किया जाता है। इस उद्देश्य के लिए मिल के प्रबंधक धान के सीजन में लगभग 35 से 40 विशेष प्रकार की मशीनों द्वारा किसानों के खेतों में खड़े फसल के अवशेषों को काटकर और उनकी गांठें बांध कर उन्हें मिल में मंगवा लेते हैं। इससे किसानों को पराली जलाने का काम नहीं करना पड़ता और वह उपयोग में भी आ जाती है। 

इस प्रकार वे एक तरफ फसल के अवशेष न जला कर प्रशासन द्वारा लगाए जाने वाले जुर्माने से बचते हैं वहीं पर्यावरण भी दूषित नहीं होता और जमीन की जुताई पर आने वाला प्रति एकड़ 3 से 4 हजार रुपए का खर्च भी बच जाता है क्योंकि फसल के फानों (अवशेषों) के खड़े रहने पर जमीन को जोतने के लिए ट्रैक्टर चलाने पर किसान को डीजल का इस्तेमाल करना पड़ता है। मिल द्वारा किसानों के खेतों में फसल के फानों को काटकर उनकी गांठ बना कर ले जाने के लिए लगाई गई मशीनों के इस्तेमाल से किसानों की मदद हो जाती है। मिल का प्रबंधन लगभग 6 लाख क्विंटल पराली एकत्र करके रख लेता है जिसे बिजली उत्पादन में इस्तेमाल किया जा रहा है। पराली को काटकर गांठ बनाकर लाने वाली एक मशीन की कीमत लगभग 15 लाख रुपए बताई जाती है और ये मशीनें पर्यावरण को दूषित होने से बचाने में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। 

बासमती की पराली से सैमी क्राफ्ट पेपर बनाया जाता है जबकि परमल की गांठों को पावर प्लांट में जला कर बिजली पैदा की जाती है और गेहूं की तूड़ी, सरकंडा, फटी-पुरानी बोरी तथा वेस्ट पेपर का भी पेपर बनाया जाता है। यह मिल सैमी क्राफ्ट पेपर बनाने के साथ-साथ 5 मैगावाट बिजली प्रति घंटा पैदा कर रही है जिसकी इसी मिल में खपत हो जाती है। मिल के प्रबंधकों का कहना है कि यदि हरियाणा सरकार अनुमति दे तो वे इससे भी अधिक मात्रा में बिजली पैदा कर सकते हैं। मिल के भ्रमण के दौरान मैंने वहां पैकिंग पेपर के ढेर और पुराने कागज से भरे हुए ट्रक भी देखे। मुझे बताया गया कि निर्माण प्रक्रिया के दौरान जो कचरा निकलता है उसे भी री-साइकिल करके दोबारा कागज का निर्माण किया जाता है। मिल के प्रबंधकों ने अपने कर्मचारियोंके रहने के लिए मकान बनवा कर भी दिए हैं और उनके भोजन के लिए बहुत ही सुंदर किचन भी बनवाया है। 

मैं पूरी मिल तो देख नहीं पाया परंतु जितनी भी जानकारी मैं यहां आकर प्राप्त कर सका उससे मैं प्रभावित हुए बिना नहीं रहा। इसी कारण मैंने मिल के प्रबंधकों से कहा है कि वे इस तरह की मिलें पंजाब में भी लगाएं। इससे न केवल उत्तरी भारत में पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार होगा बल्कि पंजाब के किसानों को धान के अवशेष जलाने से भी मुक्ति मिलेगी और उनका फालतू खर्च बचेगा। धान के अवशेष से बिजली और कचरे को री-साइकिल करके दोबारा कागज बनाया जा सकेगा। इस प्रकार सैंसंस पेपर मिल के प्रबंधक जहां किसानों की सहायता कर रहे हैं वहीं पर्यावरण की सुरक्षा और पैकिंग पेपर उत्पादन द्वारा लोगों को रोजगार उपलब्ध करने व बिजली का उत्पादन करके कमाई करने के साथ-साथ समाजसेवा के कार्य भी कर रहे हैं।—विजय कुमार

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