मंदिर-मस्जिद विवाद : अयोध्या निर्णय से सबक लेना चाहिए

Edited By ,Updated: 27 Nov, 2024 06:21 AM

temple mosque dispute lessons should be learnt from the ayodhya verdict

हमारे राजनेता धार्मिक राजनीति की दलदल के रसातल में पांव रखकर हमेशा चौंकाते रहते हैं। मस्जिद-मंदिर विवाद का उपयोग हमारे नेतागणों द्वारा अपने वोट बैंक की भूख को शांत करने के लिए किया जाता है तथा उनकी एक ही आस्था है और वह है सत्ता। इस बात का इससे बेहतर...

हमारे राजनेता धार्मिक राजनीति की दलदल के रसातल में पांव रखकर हमेशा चौंकाते रहते हैं। मस्जिद-मंदिर विवाद का उपयोग हमारे नेतागणों द्वारा अपने वोट बैंक की भूख को शांत करने के लिए किया जाता है तथा उनकी एक ही आस्था है और वह है सत्ता। इस बात का इससे बेहतर प्रमाण कोई नहीं हो सकता है कि कल तक उत्तर प्रदेश के संभल की अनजानी सी शाही जामा मस्जिद आज विवाद का विषय बनी हुई है। 

उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के संभल में एक अन्य मस्जिद हिन्दू और मुसलमानों के बीच कानूनी लड़ाई का केन्द्र बन गई है। इसके परिणामस्वरूप दंगे हुए, भगदड़ मची, लोगों के वाहन जलाए गए और मौतें हुईं और फलत: इस शहर का जनजीवन ठहर सा गया और यह सब कुछ एक अदालत के न्यायाधीश द्वारा 16वीं सदी में बाबर द्वारा 1526 से 1530 के बीच बनाई गई एक मस्जिद के सर्वेक्षण का आदेश देने के बाद हुआ। इसकी शुरूआत तब हुई, जब एडवोकेट विष्णु जैन, जो ज्ञानवापी मस्जिद कृष्ण जन्म भूमि विवादों में भी वकील हैं, ने दावा किया कि बाबर द्वारा इस जामा मस्जिद का निर्माण कल्कि भगवान के ऐतिहासिक हरिहर मंदिर को तोड़कर किया गया है।

उन्होंने हिन्दू धर्म ग्रंथों को उद्धृत करते हुए कहा कि इस स्थल का हिन्दुओं के लिए धार्मिक महत्व है क्योंकि यह कल्कि का जन्म स्थल है और कलियुग की समाप्ति के बाद भगवान कल्कि प्रकट होंगे। उन्होंने न्यायालय से आग्रह किया कि इस मंदिर का नियंत्रण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को दिया जाए। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भव्य कल्कि धाम की आधारशिला रखी थी। न्यायालय ने इस मस्जिद के सर्वेक्षण का आदेश दिया और इस प्रक्रिया की निगरानी के लिए एडवोकेट्स कमीशन को नियुक्त किया। रोचक तथ्य यह है कि पहला सर्वेक्षण शांतिपूर्ण रहा। मस्जिद समिति ने हिन्दू-मुस्लिम प्रतिनिधियों की उपस्थिति में 9 नवंबर को अपनी सहमति दी, किंतु रविवार को जब अधिकारी दूसरे सर्वेक्षण के लिए वहां पहुंचे तो उपद्रव हो गया। 

हिन्दुओं का दावा है कि बाबरनामा और अबुल फजल की आइने अकबरी में इस बात की पुष्टि की गई है कि जिस स्थल पर आज जामा मस्जिद खड़ी है वहां पर हरिहर मंदिर था। वे 1879 के ब्रिटिश पुरातत्वविद कार्ललाइल की रिपोर्ट का उल्लेख भी करते हैं, जिसमें कहा गया है कि मंदिर के अंदर और बाहर के स्तंभ हिन्दू मंदिरों के स्तंभों की तरह दिखते हैं, इनको छिपाने के लिए उन पर प्लास्टर किया गया है और एक स्तंभ से प्लास्टर हटाने से पता चला कि यह हिन्दू मंदिर वास्तु कला के प्राचीन लाल स्तंभों की तरह हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि मस्जिद की अनेक विशेषताएं और अनेक वस्तुएं इसकी प्राचीनता को दर्शाती हैं और वे हिन्दू मंदिर से जुड़ी हुई हैं। इसके अलावा लेख में यह भी लिखा गया है कि शाही मस्जिद का निर्माण बाबर के दरबारी मीर हिन्दू बेग द्वारा 1526 में एक मंदिर को मस्जिद बनाकर किया गया। इसके बाद पुलिस ने समाजवादी पार्टी के सांसद जियाउर बर्ग और स्थानीय विधायक तथा 6 अन्य लोगों के विरुद्ध हिंसा फैलाने के लिए मामला दर्ज किया है। यह बताता है कि किस प्रकार हमारे नेता राजनीतिक खेल के लिए लोगों की भावनाओं को भड़काते हैं। 

आशानुरूप कांग्रेस नेता राहुल ने भाजपा सरकार पर आरोप लगाया है कि वह पक्षपातपूर्ण है और उसका असंवेदनशील दृष्टिकोण है। वह सभी पक्षों को सुने बिना कार्रवाई कर रहे हैं और इस प्रकार स्थिति को और जटिल बना रहे हैं जिस कारण अनेक मौतें हुई हैं, जिसके लिए भाजपा सरकार जिम्मेदार है। यह भाजपा-राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ द्वारा भेदभाव पैदा करने का एक सुनियोजित षड्यंत्र है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी कहा है कि भाजपा की योगी सरकार ने दंगे कराए हैं। जमायत उलेमा ए हिन्द के अध्यक्ष मदनी ने इस सर्वेक्षण को धार्मिक स्थलों के लिए धार्मिक सुरक्षा उपायों का उल्लंघन बताया तो भाजपा ने इसका प्रत्युत्तर यह कहकर दिया कि घमंडिया गठबंधन के नेता लोकसभा चुनावों के बाद लोगों में आक्रोश पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं। यदि न्यायालय कोई आदेश देता है तो उसको लागू किया जाएगा।  मुसलमान इसको एक उकसावे की कार्रवाई मानते हैं जो उनके धार्मिक स्थल की पवित्रता का उल्लंघन करती है। वे 1991 में उच्चतम न्यायालय द्वारा पूजा स्थल अधिनियम में दिए गए निर्णय का उल्लेख करते हैं जिसमें कहा गया था कि 1947 में जो धार्मिक स्थल जिस स्वरूप में था, उसका स्वरूप यथावत रहेगा और उसे बदला नहीं जाएगा। साथ ही वे मस्जिद के ऐतिहासिक ढांचे का उल्लेख भी करते हैं। 

मुस्लिम मौलवियों का कहना है कि हिन्दुत्व ब्रिगेड को एक नया साधन मिल गया है। वे मस्जिदों को तोड़कर मंदिरों पर पुन: दावा कर रहे हैं ताकि हिन्दू बहुसंख्यक उन्हें भावनात्मक मुद्दों पर सत्ता में वापस करने में मदद करें और यह भावनात्मक मुद्दा आस्था और मुस्लिम आक्रांताओं से बदला लेने की आधारशिला पर तैयार किया गया है जो एक इतिहास है। निश्चित रूप से इस मामले में एक लंबा वैचारिक और कानूनी संघर्ष चलेगा। पहले ही 5 स्थलों पर विभिन्न ढांचों को न्यायालयों में चुनौती दी गई है, हालांकि पूजा स्थल अधिनियम अभी भी लागू है। इन स्थलों में वाराणसी, मथुरा, आगरा, मध्य प्रदेश में धार और नई दिल्ली के धार्मिक स्थल शामिल हैं। वस्तुत: इन विवादों से राजनीति जुड़ी हुई है और यह बड़े विवाद का कारण भी बन सकते हैं। इसलिए इनके समाधान के लिए अयोध्या निर्णय से सबक लेना चाहिए। इस निर्णय ने भारत को एकीकृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। नि:संदेह चाहे कोई कितनी भी उकसावे की कार्रवाई क्यों न करे, कानून के शासन की उपेक्षा नहीं की जा सकती।

इन मुद्दों पर अडिय़ल रूख सौहार्द स्थापित करने का फार्मूला नहीं है। बहुलवादी समाज में, जहां पर अनेक धर्म सह अस्तित्व के साथ रह रहे हैं, वहां पर हिन्दुओं और मुसलमानों को न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा करनी होगी अथवा आपस में बैठकर ऐसे मुद्दों का समाधान करना होगा। इसकी शुरुआत विष्णु भक्तों और रहीम भक्तों की राष्ट्र भक्ति की भावना के साथ मिल बैठकर कदम उठा कर करनी चाहिए।-पूनम आई. कौशिश

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