असंतोष की आग और कांग्रेस आलाकमान की अनदेखी

Edited By ,Updated: 06 Jun, 2022 05:47 AM

the fire of discontent and ignoring the congress high command

कभी देश की सबसे बड़ी पार्टी रही और सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस में कद्दावर और जनता से जुड़े नेता पार्टी को छोड़कर जा रहे हैं। लेकिन उससे भी बुरी बात यह है कि पार्टी के इस क्षरण को रोकने की कोई कोशिश नहीं की जा रही। कई बार तो ऐसा लगता है कि असंतोष की...

कभी देश की सबसे बड़ी पार्टी रही और सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस में कद्दावर और जनता से जुड़े नेता पार्टी को छोड़कर जा रहे हैं। लेकिन उससे भी बुरी बात यह है कि पार्टी के इस क्षरण को रोकने की कोई कोशिश नहीं की जा रही। कई बार तो ऐसा लगता है कि असंतोष की आग में घी डालकर उसे और भड़काया जा रहा है। अभी राज्यसभा के लिए जिस तरह से कांग्रेस में टिकट वितरण हुआ, उसने नए असंतोष को जन्म दे दिया। हालांकि राज्यसभा में किसे भेजना है किसे नहीं, यह पूरी तरह से हाईकमान के विवेक पर निर्भर करता है। मगर कांग्रेस में जिस तरह से टिकट बांटे गए, उस पर सवाल उठे और यहां तक कहा गया कि यह पार्टी में एक और जी-23 को जन्म देगा। 

जी-23 कांग्रेस के उन असंतुष्ट नेताओं के समूह को कहा जाता है, जिन्होंने विगत में पार्टी हाईकमान पर सवाल उठाए थे। इनमें से कपिल सिब्बल और जितिन प्रसाद जैसे नेता तो पार्टी छोड़कर जा चुके हैं। पार्टी में नाराजगी का यह सिलसिला कम होने की जगह लगातार बढ़ रहा है। गत 29 मई को जैसे ही कांग्रेस ने राज्यसभा के लिए अपने नामों की सूची जारी की, रात 11 बजकर 12 मिनट पर पार्टी के तेज-तर्रार प्रवक्ता पवन खेड़ा का एक ट्वीट आया, ‘शायद मेरी तपस्या में कुछ कमी रह गई।’

पवन खेड़ा के ट्वीट करते ही इसके बहुत से मायने निकाले गए। इसे 3000 बार से ज्यादा रि-ट्वीट किया गया। पार्टी के एक कार्यकत्र्ता ने उन्हें तत्काल जवाब दिया, नहीं सर...आपकी तपस्या में कोई कमी नहीं है। चाटुकारिता आज थोड़ी ज्यादा मजबूत रही। कांग्रेस के तमाम जमीन से जुड़े कार्यकत्र्ता आज निराश हैं, लेकिन विश्वास है कि जल्द ही आप हमें ऊपरी सदन में दिखाई देंगे। कांग्रेस ने अपने जिन 10 नेताओं को राज्यसभा भेजने की सूची जारी की उन पर एक नजर डालने की जरूरत है।

कांग्रेस की राज्यसभा सूची में छत्तीसगढ़ से राजीव शुक्ल और रंजीता रंजन (बिहार की पूर्व सांसद और पप्पू यादव की पत्नी), हरियाणा से अजय माकन, कर्नाटक से जयराम रमेश, मध्यप्रदेश से विवेक तन्खा (प्रसिद्ध वकील और अभी राज्यसभा के सदस्य), महाराष्ट्र से इमरान प्रतापगढ़ी (यू.पी. के युवा शायर और हाल के चुनाव में प्रियंका गांधी के साथी रहे), तमिलनाडु से पी. चिदम्बरम और राजस्थान से मुकुल वासनिक, रणदीप सुर्जेवाला तथा प्रमोद तिवारी का नाम था। इनमें से कुछ ही हैं जो जनता से जुड़े हों और संसद के एक अन्य सदन से जीतने की क्षमता रखते हों। पहली नजर में यह सूची देखकर पार्टी के ही बहुत से लोगों को लगता है कि यह सिर्फ खास वफादारी का ईनाम है। 

इससे एक और बड़ा संदेश यह निकलता है कि कांग्रेस हाईकमान चिंतन मनन (उदयपुर समेत) से निकले फैसलों पर अमल नहीं करता। खास तौर पर मनोनयन वाले पदों पर। अगर इस पर अमल किया जाता तो इस लिस्ट में जयराम रमेश और पी. चिदम्बरम जैसे नेताओं के नाम नहीं होते। आलाकमान ने जी-23 को खत्म करने के लिए विवेक तन्खा और मुकुल वासनिक को राज्यसभा की टिकट देकर शांत किया है तो गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा को कांग्रेस के सलाहकार समूह में डाल दिया गया है। आनंद शर्मा और गुलाम नबी आजाद को सांसदी से उपकृत न करने की बात पहले भी चल रही थी। 

कांग्रेस के इस टिकट वितरण से नाराज नेताओं ने सीधे सोनिया गांधी को चिट्ठी भी लिखी। इनमें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य विश्वबंधु राय ने सोनिया गांधी को लिखे पत्र में इमरान प्रतापगढ़ी को महाराष्ट्र के कोटे से टिकट देने पर नाराजगी जताई। उन्होंने पूछा कि मुरादाबाद लोकसभा चुनाव 6 लाख वोटों से ज्यादा हारने वाले इस शख्स पर पार्टी इतनी मेहरबान क्यों है? क्या इनके मुशायरे में इतनी खासियत है कि पार्टी के अन्य योग्य नेताओं की अनदेखी की जाए? 

पार्टी के असंतुष्ट विधायक कुछ खेल करने के मूड में हैं। विश्लेषक यह मानते हैं कि अब कुछ भी हो, कांग्रेस की सुप्रीमो सोनिया गांधी अब गाहे-बगाहे आलाकमान का विरोध करने वालों को पार्टी का भविष्य में नेतृत्व देने वाले राहुल गांधी-प्रियंका गांधी के आसपास नहीं रखना चाहती। यह भी तय है कि पार्टी अब इन्हीं के नेतृत्व में चलनी है तो इन्हीं के अनुसार चलने वाले लोगों को ही प्राथमिकता दी जाएगी। 

इतना ही नहीं पार्टी से नए जुड़ रहे नेताओं को भी आगे बढ़ाने पर कोई काम नहीं हो रहा। हाईकमान के ऐसे ही फैसलों की कीमत पार्टी लगातार चुका रही है। युवा चेहरे लगातार पार्टी छोड़कर जा रहे हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव के अलावा अब हार्दिक पटेल भी पार्टी छोड़कर जा चुके हैं। हार्दिक का पार्टी छोडऩा सबसे बड़ा झटका है। गुजरात में विधानसभा चुनाव अब ज्यादा दूर नहीं है, ऐसे में पाटीदार आंदोलन से उभरे युवा हार्दिक पटेल का कांग्रेस छोड़कर जाना भाजपा के लिए बड़ा तोहफा है। 

गुजरात में 20 फीसदी से ज्यादा पटेल वोट हैं। पटेलों में भी वहां 2 वर्ग हैं, एक कड़वा और दूसरे लेउवा। हार्दिक कड़वा पटेल हैं जो उत्तरी गुजरात में काफी प्रभावशाली हैं। हार्दिक ने पाटीदार आंदोलन में 25 लाख लोगों की भीड़ जुटाकर सब राजनीतिक दिग्गजों को चौंका दिया था, उनके आने से शायद भाजपा फिर से गुजरात में अपना वही रुतबा हासिल कर ले जो 2014 से पहले था।  हैरत की बात तो यह है कि कांग्रेस हाईकमान ऐसे नुक्सान को रोकने के लिए कुछ करता नजर नहीं आती। कांग्रेस मंथन तो हर बार करती है। लंबे-लंबे विचार शिविर होते हैं मगर इनसे निकले निष्कर्षों पर कोई अमल नहीं किया जाता। 

कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी अबूझ पहेली यह है कि लोगों को कैसे पार्टी की विचारधारा से जोड़ा जाए। इसके लिए सबसे बड़ी जरूरत किसी जनोपयोगी विचारधारा पर पहले पार्टी को खुद खड़े होने की है। उसके बाद जनता में विश्वास पैदा करने के लिए कुछ कड़े फैसले भी लेने होंगे, जो नि:संदेह हाईकमान का काम है। पार्टी लंबे समय से नया अध्यक्ष चुनने की कोशिश कर रही है और घूम-फिर कर गांधी परिवार पर लौट आती है।-अकु श्रीवास्तव 
 

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