चुनाव आयोग की पहल स्वागत योग्य

Edited By Updated: 20 Mar, 2025 06:17 AM

the initiative of the election commission is welcome

विपक्षी नेताओं द्वारा मतदाता सूची की सत्यनिष्ठा पर संदेह व्यक्त किए जाने के मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है। भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी, जो लगातार जीत की ओर अग्रसर हैं, इसे केवल ‘खट्टे अंगूर’ का मामला बता रहे हैं।

विपक्षी नेताओं द्वारा मतदाता सूची की सत्यनिष्ठा पर संदेह व्यक्त किए जाने के मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है। भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी, जो लगातार जीत की ओर अग्रसर हैं, इसे केवल ‘खट्टे अंगूर’ का मामला बता रहे हैं। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने हाल ही में महाराष्ट्र में अप्रैल 2024 के लोकसभा चुनाव और नवंबर 2024 के विधानसभा चुनावों के बीच लगभग 48.8 लाख मतदाताओं के जुडऩे पर सवाल उठाया था। यह संख्या पिछले 5 वर्षों में जोड़े गए लोगों से अधिक थी। चुनाव आयोग ने आंकड़ों पर विवाद नहीं किया था लेकिन दावा किया था कि इनमें से 26.4 लाख नए और 18.29 आयु वर्ग के युवा मतदाता थे। कई लोगों ने इस स्पष्टीकरण को संतोषजनक नहीं पाया था।

दिल्ली चुनाव से ठीक पहले, पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मतदाता सूची में छेड़छाड़ का आरोप लगाया था। उन्होंने दावा किया था कि नई दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र में केवल 15 दिनों में 5,000 से अधिक मतदाताओं के नाम हटा दिए गए और 7,500 ‘फर्जी नाम’ जोड़े गए। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी हाल ही में भाजपा पर चुनाव आयोग की मदद से मतदाता सूची में फर्जी मतदाताओं को पंजीकृत करने का आरोप लगाया था। उन्होंने कई ऐसे उदाहरण दिए थे जिनमें अलग-अलग मतदाताओं के पास एक ही मतदाता फोटो पहचान पत्र (ई.पी.आई.सी.) नंबर था। उन्होंने दावा किया था कि भाजपा ने दिल्ली और महाराष्ट्र में चुनाव जीतने के लिए मतदाता सूची में हेरा-फेरी करके इस रणनीति का इस्तेमाल किया था। इस महीने की शुरूआत में, चुनाव आयोग ने आखिरकार चुनावी प्रणाली में एक गंभीर दोष को स्वीकार किया कि मतदाता पहचान संख्या पूरे देश में अद्वितीय नहीं है और इसे राज्यों में दोहराया जा सकता है। इसने कहा कि दोहराव एक ‘विकेन्द्रीकृत और मैनुअल तंत्र’ से उपजा है,जहां विभिन्न राज्यों ने ऐतिहासिक रूप से मतदाता सूची डेटाबेस को नए प्लेटफार्म पर माइग्रेट करने से पहले ‘समान अल्फान्यूमेरिक शृंखला’ का उपयोग किया था। 

आयोग ने दावा करने की कोशिश की कि मतदाता ई.पी.आई.सी .दोहराव के बावजूद केवल निॢदष्ट मतदान केंद्रों पर ही अपना मत डाल सकते हैं, लेकिन यह इस बात का बचाव करने में विफल रहा कि यह प्रणाली व्यक्तियों को कई स्थानों पर पंजीकरण और मतदान करने से कैसे रोकती है, खासकर जब आम चुनाव कई हफ्तों में कई चरणों में आयोजित किए जाते हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और ओडिशा जैसे बड़े प्रवासी आबादी वाले राज्य डुप्लीकेट वोटिंग से ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं और महाराष्ट्र, कर्नाटक और पंजाब जैसे राज्य भी, जहां प्रवासी लोगों ने खुद को मतदाता के रूप में पंजीकृत किया होगा। 

आयोग की इस स्वीकारोक्ति ने इस संदेह की पुष्टि की है कि देश की चुनावी प्रणाली में राज्य की सीमाओं के पार मतदाताओं के कई पंजीकरण को रोकने के लिए एक मजबूत तंत्र का अभाव है या यहां तक कि एक ही राज्य के भीतर अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों में भी। इसी प्रकाश में चुनाव आयोग द्वारा आधार कार्ड को मतदाता पहचान पत्र से जोडऩे का निर्णय स्वागत योग्य है। इसने एक प्रैस विज्ञप्ति के माध्यम से इस विवादास्पद मुद्दे को संबोधित करने के लिए निर्णायक कार्रवाई की शुरूआत की घोषणा की। इसने कहा कि आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र को जोडऩे का एक कानूनी और सहज तरीका सुनिश्चित करने के लिए जल्द ही तकनीकी परामर्श शुरू हो जाएगा। 

दोनों को जोडऩे से चुनावी अखंडता को काफी बढ़ावा मिल सकता है। एक बड़ा फायदा यह है कि आधार की बायोमैट्रिक सत्यापन प्रणाली डुप्लीकेट पंजीकरण की पहचान करने और उसे खत्म करने में मदद कर सकती है, जिससे व्यक्ति अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों में कई बार मतदान करने से बच सकता है। यह एकीकरण विशेष रूप से प्रतिरुपण मतदान को रोकने में प्रभावी है, जहां मृतक, अनुपस्थित या काल्पनिक मतदाताओं की ओर से मतपत्र डाले जाते हैं। आधार के साथ, सत्यापन प्रक्रिया और अधिक मजबूत हो जाती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि केवल वैध मतदाता ही मतदान कर सकते हैं। एक और लाभ यह है कि आधार कार्ड मतदान की आयु तक पहुंचने से पहले बचपन से ही बनाए जा सकते हैं, जिससे नागरिकों पर नए दस्तावेज आवश्यकताओं को लागू किए बिना मतदाता सत्यापन के लिए एक व्यावहारिक आधार तैयार होता है।

हालांकि, गोपनीयता के मुद्दों और डेटा के संभावित दुरुपयोग पर भी चिंताएं जताई गई हैं। इन चिंताओं को संबोधित किया जाना चाहिए और पर्याप्त सुरक्षा उपाय किए जाने चाहिएं। इसमें कुछ तकनीकी मुद्दे शामिल हो सकते हैं क्योंकि मतदाता पंजीकरण के लिए मौजूदा फार्म में मतदाताओं के लिए अपना आधार कार्ड लिंक करना वैकल्पिक है। वे यह स्पष्टीकरण देकर ऐसा कर सकते हैं कि उनके पास आधार कार्ड नहीं है। अब सवाल यह है कि क्या आधार कार्ड देने से इंकार करने पर किसी व्यक्ति को मतदाता के रूप में पंजीकरण से वंचित किया जा सकता है। यह एक विवादास्पद  मुद्दा है जिसकी बारीकी से जांच की जानी चाहिए।-विपिन पब्बी
 

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