नेता और मतदाता के मन की गति न्यारी

Edited By ,Updated: 20 Apr, 2024 04:16 AM

the speed of mind of leader and voter is unique

हिन्दी के प्रख्यात व्यंग्यकार शरद जोशी की पुस्तक का शीर्षक ‘हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे’ कैसी भी परिस्थिति हो, सटीक ही बैठता है। यह 10-20 या 100-50 साल की स्थिति हो, ऐसा न लगकर महसूस होता है कि युगों से यही सत्य है।

हिन्दी के प्रख्यात व्यंग्यकार शरद जोशी की पुस्तक का शीर्षक ‘हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे’ कैसी भी परिस्थिति हो, सटीक ही बैठता है। यह 10-20 या 100-50 साल की स्थिति हो, ऐसा न लगकर महसूस होता है कि युगों से यही सत्य है। 

सुखद बयार का आनंद ही कुछ और है : चुनावी हवा चल रही है, झौंके से लेकर बादल गरजने और फिर तड़ातड़ मूसलाधार बारिश होने के संकेत मिल रहे हैं। न जाने कब और कहां वर्षा होने लगे, कुछ नहीं कहा जा सकता। सभी तरह के दृश्य बन और बिगड़ रहे हैं। प्रेम, करुणा, भय, आश्चर्य, निराशा और हास्य के प्रसंग उभर रहे हैं। पहले सुख प्राप्त होने जैसा लेकिन तुरंत ही दु:ख जैसा अनुभव होने लगता है। भ्रम इतना कि दूसरे की जुबान से कहे शब्द सुनकर अपनी ही बुद्धि चकराने लगती है। लगता है कि एक विशाल नदी के किनारे खड़े हुए हैं और उसमें आस्था, विश्वास, भरोसा जैसे शब्दों के अक्षर तैरते हुए लगते हैं। जैसे ही आपने नदी में उतरकर उन्हें पकडऩे के लिए हाथ बढ़ाया कि आकाश से बहुत जोर से हंसने और जबरदस्त ठहाका लगने जैसे स्वर उभरते हैं। घबराहट में किनारे पर लौटना चाहते हैं कि तब ही आवाज आती है, ‘हम तुम्हें पहुंचा देते हैं, हम ही हैं जो न्याय दिला सकते हैं। हमें आजमा कर तो देखो, सुरक्षित किनारे तक ले जाएंगे।’ 

लगता है कि हम धकेले जा रहे हैं। अपने साथ धक्का मुक्की होने जैसा लगता है और जैसे ही सोचते हैं कि धकिया कौन रहा है तो आकाश से स्वर उभरता है ‘फिक्र मत कर मेरे यार, गारंटी है तो वारंटी भी है, हमारा इतिहास देख ले, हमारे अलावा कोई नहीं जो इस बलखाती और उफान की ओर बढ़ती नदी में तेरा तिनके का सहारा बन सके। इसे पकड़े रहना, छोडऩा मत, यही तुझे वैतरणी पार कराएगा।’इस माहौल में न तो कोई ऐसा लगता है जिसने शोषण न किया हो और न ही ऐसा जिसकी कथनी और करनी में अंतर न हो। बहुत-सी स्मृतियां आंखों के सामने तैरने लगती हैं। यादों का झरोखा खुल जाता है। स्वयं के साथ या अपनी जान पहचान के लोगों और अपने परिवार और मित्रों के साथ घटी घटनाएं सिनेमा के पर्दे पर चल रही आकृतियों में बदलने लगती हैं। याद आने लगता है कि किस बिचौलिए की मदद से फैसला लेने के अधिकार के घमंड में चूर अधिकारी अर्थात् संतरी से लेकर मंत्री तक पहुंचने की सीढ़ी पर कदम दर कदम बढ़े थे। 

यह जानकारी दी गई कि महोदय या महोदया के पुत्र या पुत्री वैवाहिक बंधन में बंधने वाले हैं। हवन की तैयारियों में व्यस्त है। उसके लिए सामग्री एकत्रित की जा रही है, अब उसमें अपना योगदान करना तो बनता ही है। स्वर्ण आभूषण आते जा रहे हैं। कौन और कितने वजन का अर्पित कर रहा है, इसका पूरा लेखा-जोखा रखने का पक्का प्रबंध है। अब यह तो व्यवहार की बात है, जिसने इतने समर्पण भाव से उपहार दिया, उसे लौटाना भी है।

ऐसा भी होता है : यह जो विवरण दिया, वह एक सत्य घटना पर आधारित है। एक-दूसरे की पीठ सहलाने से लेकर खुजली मिटाने तक का तमाशा हर रोज होता है। यह सिलसिला थमना तो दूर, विशाल स्वरूप धारण करने से रुकता ही नहीं। जिसने कोशिश की बीच में आने की, उसे धराशायी होना ही पड़ा। उसका वजूद तक नहीं रहा बशर्ते कि वह भी बहती गंगा में हाथ धोकर या डुबकी लगाकर पवित्र होने का निश्चय न कर ले। ऐसे एक नहीं सैंकड़ों किस्से हवा में बिखरे नजर आएंगे जिनमें अगर किसी ने अपने सम्मान या स्वाभिमान से जीवन जीने की कल्पना की और उसके लिए कोई डील या सौदा नहीं किया तो उसके सपने पर कुठाराघात होना निश्चित मानिए। 

आज यहां और कल वहां, यह पंछी वाला डेरा है, कितना सार्थक लगता है जब कोई बदनाम अपने माथे पर लगा कलंक का टीका मिटाने के लिए किसी से अपना रूमाल, दुपट्टा या कोई भी वस्त्र देने की गुहार लगाता है। इसका अर्थ यही है कि माथा साफ होते ही उस पर दूसरा तिलक लगने वाला है। बहुत शोर करती हवाओं का रुख बदल जाता है और सब कुछ सामान्य होने लगता है जैसे कि कुछ हुआ ही न हो, किसी की चीख तबले की थाप सुनाई देती है और क्रंदन अनेक संगीत वाद्यों का सामूहिक गायन जैसा प्रतीत होता है। 

एक कविता है
मेरे मन में विचारों का तांता लगा हुआ है
एक क्षण में मैं बहुत खुश हूं और तुरंत ही निराशा और घुटन होने लगती है।
मुस्कुराता हूं तो स्वयं की हत्या करने का एहसास होता है।
मेरे सपने, मेरी महत्वाकांक्षाएं साकार होती जाती हैं,
पर फिर अपने ही से घृणा होने लगती है।
कभी सोचने लगता हूं कि हम साथ-साथ होंगे,
उसके बाद श्मशान में पड़ा शव बन जाता हूं। 

चुनाव-एक राष्ट्रीय शौक : हमारे देश की यह विडंबना ही कही जाएगी कि यहां चुनाव को एक शौक की तरह लिया जाता है। उसे पर्व या त्यौहार की चाशनी में लपेटकर परोसा जाता है। हमें यह चुनने का अधिकार दिया जाता है कि हमारे भविष्य का निर्माण या उसके साथ खिलवाड़ करने की जिम्मेदारी किस को दें। यह कौन होगा अर्थात् किसी उम्मीदवार को तय करने में हमारी कोई भूमिका नहीं होती, यह वह लोग तय करते हैं जो अपने नफे-नुकसान का जोड़ घटा कर जनता के सामने आते हैं और घोषित कर देते हैं कि यही है जो हमारा पालनहार और देश का कर्णधार बनेगा। इसी व्यवस्था के कारण चुनाव लडऩे वालों में तरह-तरह का अपराध करने वाले मिल जाएंगे। हत्यारे मिलेंगे तो बलात्कारी भी, घोटाले करने वाले होंगे तो सजा पाए भी होंगे। छिछोरेपन की सभी मर्यादाएं लांघते हुए और अपनी दबंगई के कारण आतंकित करने वाले भी मिलेंगे। आप खोजते रह जाएंगे कि कोई तो ऐसा हो जो बेदाग हो, वास्तव में जनहित के लिए समर्पित हो और जिसके चुने जाने पर अफसोस न हो। 

अपवाद सभी जगह होते हैं, इसलिए यहां भी हैं लेकिन काजल की कोठरी में कैसा ही भलामानुस जाए, वह बाहर निकलने तक भला हो बना रहेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। इसलिए चुनाव ऐसा महंगा शौक है जिसे पूरा करने के लिए धन, बल और एक तरह का ऐसा दिमाग चाहिए जो रंग बदलने में माहिर हो। जब कभी आपको अवसर मिले तो अपने व्यवसाय, रोजगार, काम या वैसे ही घूमने फिरने जाने पर स्थानीय लोगों के मन की बात जानने के लिए उनसे पूछिए कि आपके यहां कैसा चल रहा है। थोड़ा-सा कुरेदने पर बहुत ही ऐसी बातें सुनने को मिलेंगी कि आश्चर्य से आपका मुंह खुला का खुला रह जाएगा। सोचने लगेंगे कि यह कह क्या रहा है, क्या यही सच है? पता चलेगा कि यहां के जो विधायक या सांसद हैं, उनका पढ़ाई-लिखाई से चाहे कोई वास्ता न हो लेकिन भीड़ जुटाने की कला में माहिर हैं। 

यह भी सुनने को मिलेगा कि घर में बहुत ज्यादा लोग थे और पैसे की भी कमी नहीं तो घर में ऐसा लड़का जो निठल्ला है, उसे नेताई करने में डाल दिया । घर परिवार में ऐसे बहुत से काम होते हैं जिनके लिए सरकारी मंजूरी चाहिए होती है तो यह लड़का वही सब करा लिया करेगा। साथ में इलाके के लोग भी प्रभावित होंगे कि देखो जिसे निकम्मा समझते थे, वही सबसे अधिक काम का निकला। 

एक सुझाव है अगर समझ में आए : यह तो सब ही जानते हैं कि चाहे चुनाव का शौक हो अपने क्षेत्र की दशा सुधारने की सोच अंगड़ाई ले रही हो, जो गलत होता दिख रहा हो, उसे ठीक करने की इच्छा या तमन्ना पनप रही हो या फिर यह मन में आ रहा हो कि बहुत कर ली पढ़ाई-लिखाई, डिग्रियां भी ले लीं और अब शिक्षित होकर कुछ ऐसा किया जाए कि तस्वीर बदल सके। अब जैसा कि कहते हैं, सोचने में क्या जाता है, कौन से इसमें पैसे लगते हैं। 

सुझाव यह है कि व्यापार जगत से जुड़े एक निश्चित टर्नओवर हासिल करने के बाद अपने पंख फैलाने को आतुर व्यापारियों पर एक ऐसा टैक्स लगाया जा सकता है जो सिर्फ एक मद में जमा हो और वह है देश में होने वाले चुनावों में उम्मीदवारों द्वारा किया जाने वाला खर्चा। किसी पार्टी को चुनावी फंड या बांड खरीदकर देने से अलग इस व्यवस्था में सरकारी कोष से उन लोगों के चुनाव की फंडिंग की जाए जो राजनीति को अपना करियर बनाना चाहते हैं। एक अलग से चुनाव मंत्रालय जैसे किसी विभाग के गठन के बारे में राज्य और केंद्र सरकार एक पारदर्शी व्यवस्था करने के लिए विधानमंडल और संसद में इसके लिए नियम बना सकते हैं, बाकायदा बजट घोषित कर सकते हैं। 

जिस क्षेत्र में प्रत्याशी को जितनी सुविधाएं जरूरी हैं, वे उसे सरकारी स्तर पर मुहैया करा दी जाएं तो फिर कौन शिक्षित या योग्य तथा राजनीतिक कौशल से 2-2 हाथ कर सकने की क्षमता रखता हो, चुनाव लडऩे से परहेज करेगा। यदि यह व्यवस्था हो जाए तो राजनीतिक चंदे, दो नंबर के पैसे और चुनाव के लिए सभी तरह से धन जुटाने की जरूरत वाली मानसिकता से मुक्ति मिल सकती है। अभी योग्यता को छोड़कर बाकी सब बातों जैसे मतदाताओं को प्रभावित करने की ताकत का ध्यान रखकर उम्मीदवारों का चयन किया जाता है। नई व्यवस्था में बिना पक्षपात, बिना रसूख और बिना किसी भय के चुनाव लडऩे की इच्छा और योग्यता रखने वाले सामने आ सकेंगे।-पूरन चंद सरीन
 

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!